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________________ ज्ञान अध्ययन २. भेयग्घाए दुवे य पडिवत्ती। ३. चत्तारि मुहुत्तगईए, हुंति तइयंमि पडिवत्ती॥३॥ -सूरिय. पा.१,सु.६ ५१. दसमेपाहुडे बावीसं पाहुडपाहुडाणं विसय परूवणं १. आवलिय, २. मुहत्तग्गो, ३. एवं भागा य, ४. जोगस्स। ५. कुलाई, ६. पुण्णमासी य, ७. सन्निवाए य, ८. संठिई ॥१॥ ९. तारग्गं च, १०. नेता य, - ६४७ ) २. द्वितीय प्राभृत के द्वितीय प्राभृत-प्राभृत में भेदघात और कर्णकला से सम्बन्धित दो प्रतिपत्तियां हैं। ३. द्वितीय प्राभृत के तृतीय प्राभृत-प्राभृत में सूर्य की मुहूर्त गति से सम्बन्धित चार प्रतिपत्तियां हैं। ५१. दशम प्राभृत के बावीस प्राभृत-प्राभृतों के विषयों का प्ररूपण (दसवें प्राभृत के-) १. प्रथम प्राभृत-प्राभृत में नक्षत्रों के क्रम का कथन। २. द्वितीय प्राभृत-प्राभृत में नक्षत्रों के मुहूर्तों का कथन। ३. तृतीय प्राभृत-प्राभृत में नक्षत्रों के पूर्वादि दिग्विभागों का कथन। ४. चतुर्थ प्राभृत-प्राभृत में नक्षत्रों के योग प्रारम्भ आदि का कथन। ५. पंचम प्राभृत-प्राभृत में नक्षत्रों के कुल आदि का कथन। ६. छठे प्राभृत-प्राभृत में पूर्णमासियों में नक्षत्रादि के योगों का कथन। ७. सातवें प्राभृत-प्राभृत में पूर्णिमा और अमावास्या में नक्षत्रों के समान योगों का कथन। ८. आठवें प्राभृत-प्राभृत में नक्षत्रों की संस्थिति का कथन। ९. नौवें प्राभृत-प्राभृत में नक्षत्रों के ताराओं की संख्या का कथन। १०. दसवें प्राभृत-प्राभृत में नक्षत्रों के नेताओं अहोरात्र पूर्ण करने . वाले नक्षत्रों का कथन। ११. ग्यारहवें प्राभृत-प्राभृत में चन्द्रमण्डल का नक्षत्रों से सम्बन्ध का कथन। १२. बारहवें प्राभृत-प्राभृत में नक्षत्रों के अधिपति देवताओं का कथन। १३. तेरहवें प्राभृत-प्राभृत में मुहूर्तों के नामों का कथन। १४. चौदहवें प्राभृत-प्राभृत में दिन और रात्रि के नामों का कथन। १५. पन्द्रहवें प्राभृत-प्राभृत में तिथियों के नामों का कथन १६. सोलहवें प्राभृत-प्राभृत में नक्षत्रों के गोत्रों का कथन। १७. सत्रहवें प्राभृत-प्राभृत में नक्षत्र दोष निवारक भोजनों का कथन। १८. अठारहवें प्राभृत-प्राभृत में सूर्य और चन्द्र की गति का कथन। १९. उन्नीसवें प्राभृत-प्राभृत में मासों के नामों का कथन। २०. बीसवें प्राभृत-प्राभृत में संवत्सरों का कथन। २१. इक्कीसवें प्राभृत-प्राभृत में ज्योतिष्कों के द्वारों का कथन। २२. बावीसवें प्राभृत-प्राभृत में चन्द्र सूर्य के साथ नक्षत्रों के योगों का कथन। दसवें प्राभृत में ये बावीस "प्राभृत-प्राभृत" हैं। ११. चंदमग्गत्ति-यावरे। १२. देवता य अज्झयणे, १३. मुहुत्ताणं नामाइ य॥२॥ १४. दिवसा-राइवुत्ता य, १५. तिहि, १६. गोत्ता, १७. भोयणाणि य। १८. आइच्चचार, १९. मासा य, २०. पंच संवच्छराइ य॥३॥ २१. जोइस्स य दाराई, २२. नक्खत्ता विजये विय। -दसमे पाहुडे एए, बावीसं पाहुड-पाहुडा ॥४॥ -सूरिय. पा.१.,सु.७ ५२. सूरियपण्णत्ति सुत्तस्स उवसंहारो इइ एस पाहुडत्था, अभव्वजणहिययदुल्लहा इणमो। उक्कित्तिया भगवइ, जोइसरायस्स पण्णत्ती॥ ५२. सूर्य प्रज्ञप्ति सूत्र का उपसंहार यह भगवती ज्योतिष राज प्रज्ञप्ति कही गई है, इसमें कहे गए प्राभृतों के अर्थ अयोग्य अविनयी हृदयों के लिए दुर्लभ हैं। १. चंद.पा.१.सु.१-७
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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