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________________ ६३० द्रव्यानुयोग-(१) प्र. भन्ते ! यदि श्रमण भगवान् महावीर यावत् सिद्धगति नामक स्थान प्राप्त द्वारा दसवें अंग प्रश्नव्याकरण के दो श्रुतस्कन्ध कहे गए हैं तो भन्ते ! प्रथम श्रुतस्कन्ध के कितने अध्ययन कहे गए हैं ? उ. जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर यावत् सिद्धगति नामक स्थान प्राप्त द्वारा प्रथम श्रुतस्कन्ध के पांच अध्ययन कहे गए हैं। प्र. भन्ते ! द्वितीय श्रुतस्कन्ध के कितने अध्ययन कहे गए हैं? उ. जंबू ! पूर्ववत् पांच अध्ययन कहे गए हैं। प्र. भन्ते ! इन आश्रव और संवरों का श्रमण भगवान महावीर यावत् सिद्धगति नामक स्थान प्राप्त द्वारा क्या अर्थ कहा है ? प. जइ णं भन्ते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव सिद्धिगइणामधेयं ठाणं संपत्तेणं दसमस्स अंगस्स पण्हावागरणस्स दो सुयक्खंधा पण्णत्ता, पढमस्स णं भन्ते ! सुयक्खंधस्स कइ अज्झयणा पण्णत्ता? उ. जंबू ! पढमस्स णं सुयक्खंधस्स समणेणं भगवया महावीरेणं जाव सिद्धिगइणामधेयं ठाणं संपत्तेणं पंच अज्झयणा पण्णत्ता। प. दोच्चस्स णं भन्ते! सुयक्खंधस्स कइ अज्झयणा पण्णत्ता? उ. जंबू ! एवं चेव पंच अज्झयणा पण्णत्ता, प. एएसि णं भन्ते ! अण्हय संवराणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव सिद्धिगइणामधेयं ठाणं संपत्तेणं के अट्ठे पण्णत्ते? तए णं अज्ज सुहम्मेहेरे जंबू नामेणं अणगारेणं एवं वुत्ते समाणे जंबू अणगारं एवं वयासीउ. इणमो अण्हय संवर विणिच्छयं,पवयणस्स णिस्संदं। वोच्छामि णिच्छयत्थं, सुभासियत्थं महेसीहिं॥ __-पण्ह. सु. १, अ. १, सु.१ (ख) पण्हावागरणस्स उवसंहारो पण्हावागरणे एगो सुयक्खंधो, दस अज्झयणा एक्कसरगा दससु चैव दिवसेसु उद्दिसिज्जति। एगतरेसु आयंबिलेसु निरुद्धेसु आउत्तभत्तपाणएणं। -पण्ह.सु.२, अ.५, सु.२३ २९.(११) विवागसुयं प. से किं तं विवागसुयं? उ. विवागसुए णं सुकडदुक्कडाणं कम्माणं फलविवागे आघविज्जंति। से समासओ दुविहे पण्णत्ते,तं जहा१. दुहविवागे चेव,२.सुहविवागे चेव। तत्थ णं दस दुहविवागाणि, दस सुहविवागाणि। तब आर्य सुधर्मा स्थविर ने जंबू नामक अणगार की इस बात को सुनकर जंबू अणगार से इस प्रकार कहाउ. महर्षियों (तीर्थंकरों, गणधरों) द्वारा निश्चित रूप से कहे गए उन आश्रव संवर का भली भांति निश्चय कराने वाले प्रवचन के सार को मैं कहूंगा। (ख) प्रश्नव्याकरण सूत्र का उपसंहार प्रश्नव्याकरण सूत्र में एक श्रुतस्कन्ध है। दस अध्ययन एक सरीखे हैं और दस दिनों में ही इसका उद्देशन (वांचन) किया जाता है। उपयोगपूर्वक भक्त पान का निरोध करके एकान्तर आयम्बिल के तप पूर्वक इसका वांचन किया जाता है। २९.(११) विपाकसूत्र प्र. विपाकसूत्र में क्या (वर्णन) है? उ. विपाकसूत्र में सुकृत और दुष्कृत कर्मों का फल-विपाक कहा गया है। यह विपाक संक्षेप में दो प्रकार का कहा गया है, यथा१. दुःख-विपाक, २. सुख-विपाक। दुःख-विपाक में दस अध्ययन हैं और सुख-विपाक में भी दस अध्ययन हैं। प्र. (१) दुःख विपाक के अध्ययनों में क्या वर्णन है ? उ. दुःख-विपाक में दुष्कृतों के (दुःखरूप फलों को भोगने वालों के) नगर, उद्यान, चैत्य, वनखण्ड, राजा, माता-पिता, समवसरण, धर्माचार्य, धर्मकथाएं नगर-गमन, संसार प्रबन्ध आदि दुःख परम्पराओं को भोगने का वर्णन किया गया है। यह दुःख-विपाक का वर्णन है। प्र. (२) सुख-विपाक के अध्ययनों में क्या वर्णन है ? उ. सुख-विपाक में सुकृतों के (सुखरूप फलों को भोगने वालों के) नगर, उद्यान, चैत्य, वनखण्ड, राजा, माता-पिता, समवसरण, धर्माचार्य, धर्मकथाएं, इहलौकिक-पारलौकिक-ऋद्धिविशेष, भोगपरित्याग, प्रव्रज्या, श्रुत-परिग्रह, तप-उपधान, दीक्षा-पर्याय, प. (१) से किं तं दुहविवागाणि? उ. दुहविवागेसु णं दुहविवागाणं नगराई उज्जाणाई चेइयाई वणखंडाई रायाणो अम्मा-पियरो-समोसरणाई धम्मायरिया धम्मकहाओ नगरगमणाई संसारपबंधे दुहपरंपराओय आघविज्जति। सेतं दुहविवागाणि। प. (२) से किं तं सुहविवागाणि? उ. सुहविवागेसु सुहविवागाणं णगराई उज्जाणाई चेइयाई वणखंडाइं रायाणो अम्मा-पियरो समोसरणाई धम्मायरिया धम्मकहाओ. इहलोइय-परलोइय इड्ढिविसेसा भोगपरिच्चाया पव्वज्जाओ सुयपरिग्गहा तवोवहाणाइं परियागा
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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