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________________ ज्ञान अध्ययन ६२५ ता यथा सेत्तं अंतगडदसाओ। -सम.,सु.१४३ यह अन्तकृत्दशा का वर्णन है। (क) अंतगडदसांगस्स उक्खेवो (क) अन्तकृद्दशांग का उपोद्घातप. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव प्र. भन्ते ! यदि श्रमण भगवान् महावीर यावत् सिद्धगति नामक सिद्धिगइणामधेयं ठाणं संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स स्थान प्राप्त द्वारा सातवें अंग उपासकदशा का यह अर्थ कहा उवासगदसाणं अयमठे पण्णत्ते, गया है तोअट्ठमस्स णं भंते ! अंगस्स अंतगडदसाणं के अट्ठे भन्ते ! आठवें अंग अन्तकृद्दशा का क्या अर्थ कहा गया है? पण्णत्ते? उ. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव उ. जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर यावत् सिद्धगति नामक स्थान सिद्धिगइणामधेयं ठाणं संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स प्राप्त द्वारा आठवें अंग अन्तकृद्दशा के आठ वर्ग कहे गए है। अंतगडदसाणं अट्ठ वग्गा पण्णत्ता। प. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव प्र. भन्ते ! यदि श्रमण भगवान् महावीर यावत् सिद्धगति नामक सिद्धिगइणामधेयं ठाणं संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स स्थान प्राप्त द्वारा अन्तकृद्दशा के आठ वर्ग कहे गये हैं तो अंतगडदसाणं अट्ठ वग्गा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते ! भन्ते ! अन्तकृद्दशा के प्रथम वर्ग के कितने अध्ययन कहे वग्गस्स अंतगडदसाणं कइ अज्झयणा पण्णत्ता.? गए हैं? उ. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव उ. जम्बू ! श्रमण भगवान् महावीर यावत् सिद्धगति नामक स्थान सिद्धिगइणामधेयं ठाणं संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स प्राप्त द्वारा आठवें अंग अन्तकृदशा के प्रथम वर्ग के दस अंतगडदसाणं पढमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पण्णत्ता, अध्ययन कहे गये हैं, तं जहा१.गोयम, २. समुद्द, ३. सागर, ४. गंभीरे चेव होइ, १. गौतम, २. समुद्र, ३. सागर, ४. गंभीर, ५. स्तिमित, ५.थिमिये य, ६. अयले, ७. कंपिल्ले खलु, ८. अक्खोभ, ६. अचल, ७. कांपिल्य, ८. अक्षोभ, ९. प्रसेनजित, ९.पसेणइ,१०.विण्हू।।१।। १०. विष्णु। प. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव प्र. भन्ते ! यदि श्रमण भगवान महावीर यावत सिद्धगति नामक सिद्धिगइणामधेयं ठाणं संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स स्थान प्राप्त द्वारा आठवें अंग अन्तकदशा के प्रथम वर्ग के अंतगडदसाणं पढमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पण्णत्ता, दस अध्ययन कहे गए हैं तोपढमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स अंतगडदसाणं पढमस्स भन्ते ! अन्तकृद्दशा के प्रथम वर्ग के प्रथम अध्ययन का क्या वग्गस्स के अट्ठे पण्णत्ते? अर्थ कहा गया है? उ. एवं खलु जंबू! -अंत. अ.१, सु. ३-८ उ. जम्बू ! (आगे का कथानक धर्मकथानुयोग में देखें।) (ख) पढमज्झयणस्स णिक्खेवो (क) प्रथम अध्ययन का निक्षेपएवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव जम्बू ! श्रमण भगवान् महावीर यावत् सिद्धगति नामक स्थान सिद्धिगइणामधेयं ठाणं संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स प्राप्त द्वारा आठवें अंग अन्तकृद्दशा के प्रथम वर्ग के प्रथम अंतगडदसाणं पढमस्स वग्गस्स पढमस्स अज्झयणस्स अध्ययन का यह अर्थ कहा गया है। अयमढे पण्णत्ते,२ त्ति बेमि। -अंत.व.१,सु.२५ ऐसा मैं कहता हूँ। अंतगडदसाणं निक्खेवो (ग) अन्तकृद्दशा का निक्षेपएवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर यावत् सिद्धगति नामक स्थान सिद्धिगइणामधेयं ठाणं संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स प्राप्त द्वारा आठवें अंग अन्तकृद्दशा का यह अर्थ कहा गया अंतगडदसाणं अयमढे पण्णत्ते३ त्ति बेमि। है, ऐसा मैं कहता हूँ। -अंत.व.८,सु.१५ १. से किं तं अंतगडदसाओ? अंतगडदसासु णं अंतगडाणं णगराई उज्जाणाई चेइयाई वणसंडाई समोसरणाई रायाणो अम्मा-पियरो'धम्मकहाओ धम्मायरिया इहलोग-परलोइया इड्ढिविसेसा भोगपरिच्चाया, पव्यज्जाओ परियागा सुयपरिग्गहा तवोवहाणाई संलेहणाओ भत्तपच्चक्खाणाई पाओवगमणाई अंतकिरियाओ य आघविज्जति जाव उवदसिज्जति। अंतगडदसासुणं परित्ता वायणा जावसंखेज्जाओ संगहणीओ। से णं अंगठ्ठयाए अट्ठमे अंगे, एगे सुयक्वंधे, अट्ठ वग्गा, अट्ठ उद्देसणकाला, अट्ठ समुद्देसणकाला,संखेज्जाइं पयसहस्साई पदग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा जाव उवदंसिज्जंति। सेत्तं अंतगडदसाओ। नंदी., सु.९० २. इसी प्रकार सभी वर्ग एवं अध्ययनों के उपोद्घात और उपसंहार सूत्र समझ लेने चाहिए। ३. इसी प्रकार अणुत्तरोपपातिकदशा और विपाकसूत्र के सभी अध्ययनों के उपसंहार सूत्र हैं। (ग)
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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