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________________ ६२२ - द्रव्यानुयोग-(१) (प) ज्ञाता धर्मकथांग का निक्षेप हे जम्बू ! अपने युग में धर्म की आदि करने वाले तीर्थंकर स्वयंसंबुद्ध पुरुषोत्तम यावत् सिद्धिप्राप्त श्रमण भगवान् महावीर ने धर्मकथाओं का यह अर्थ कहा है। धर्मकथा नामक (द्वितीय) श्रुतस्कन्ध दस वर्गों में पूर्ण होता है। (प) णायाधम्मकहांगस्स निक्खेवो एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं आइगरेणं तित्थयरेणं सयंसंबुद्धणं पुरिसुत्तमेणं जाव संपत्तेणं धम्मकहाणं अयमंढे पण्णत्ते। धम्मकहासुयक्खंधो समत्तो दसहिं वग्गेहिं। -णाया. सु. २, व. १०,सु.८० २५.(७) उवासगदसाओ प. से किं तं उवासगदसाओ? उ. उवासगदसासु णं उवासयाणं णगराइं उज्जाणाई चेइआइं वणखंडाइं रायाणो अम्मापियरो समोसरणाई, धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइय-परलोइया इढिविसेसा, उवासयाणं सीलव्वय-वेरमण-गुण-पच्चक्खाणपोसहोववास-पडिवज्जणयाओ, सुयपरिग्गहा तवोवहाणाई पडिमाओ, उवसग्गा, संलेहणाओ, भत्तपच्चक्खाणाइं पाओवगमणाई देवलोगगमणाई सुकुलपच्चायाई पुण बोहिलाभो अंतकिरियाओ आघविजंति। उवासगदसासु णं उवासयाणं रिद्धिविसेसा परिसा वित्थरधम्मसवणाणि बोहिलाभअभिगमसम्मत्तविसुद्धया थिरत्तं, मूलगुण-उत्तरगुणाइयारा ठिईविसेसा य, बहुविसेसा पडिमाभिग्गहग्गहणपालणा उवसग्गाहियासणा णिरुवसग्गा य, तवा य विचित्ता, २५.(७) उपासकदशा सूत्र प्र. उपासक दशा में क्या (वर्णन) है? उ. उपासकदशा में उपासकों के नगर, उद्यान, चैत्य, वनखण्ड, राजा, माता-पिता, समवसरण, धर्माचार्य,धर्मकथाओं, इहलौकिक-पारलौकिक ऋद्धि-विशेष, उपासकों के शीलव्रत, पाप-विरमण, गुण-प्रत्याख्यान, पौषधोपवास स्वीकार करना, श्रुत-परिग्रह, तप-उपधान, ग्यारह प्रतिमा, उपसर्ग, संलेखना, भक्तप्रत्याख्यान, पादपोपगमन, देवलोकगमन, सुकुल में जन्म, पुनः बोधिलाभ एवं अन्तक्रिया का कथन किया गया है। उपासकदशा में उपासकों की ऋद्धि-विशेष, परिषद्, विस्तृत धर्म-श्रवण, बोधिलाभ, अभिगम (ज्ञान प्राप्ति), सम्यक्त्व की विशुद्धता, (व्रत की) स्थिरता, मूलगुण और उत्तर गुणों का धारण, उनके अतिचार, स्थिति-विशेष (उपासक पर्याय का काल मान) अनेक प्रकार की प्रतिमाओं एवं अभिग्रहों का ग्रहण और उनका पालन, उपसर्ग सहन या निरुपसर्ग-परिपालन, अनेक प्रकार के विचित्र तप, शीलव्रत, गुणव्रत, वेरमण, प्रत्याख्यान, पौषधोपवास और अपश्चिम मारणान्तिक संलेखना झोसणा से आत्मा को यथाविधि भावित कर, बहुत भक्तों का अनशन तप से छेदन कर, उत्तम देव-विमानों में उत्पन्न होकर, वहाँ से उन श्रेष्ठ विमानों में अनुपम उत्तम सुखों का अनुभव करते हैं, उन्हें भोग कर फिर आयु का क्षय होने पर च्युत होकर और जिनमत में बोधि को प्राप्त कर तथा उत्तम संयम धारण कर, तमोरज के समूह से विप्रमुक्त होकर अक्षय शिव-सुख को प्राप्त होकर सर्व दुःखों से रहित होते हैं, इन सबका और इसी प्रकार के अन्य भी अर्थों का इस (उपासकदशा) में विस्तार से वर्णन किया गया है। उपासकदशा अंग में परिमित वाचनाएं हैं यावत् संख्यात संग्रहणियाँ हैं। अंगों की अपेक्षा यह सातवां अंग है, इसमें एक श्रुतस्कन्ध है, दस अध्ययन हैं, सीलव्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासा, अपच्छिममारणंतिया य संलेहणाझोसणाहिं अप्पाणं जह य भावइत्ता बहूणि भत्ताणि अणसणाए य छेयइत्ता उववण्णा कप्पवरविमाणुत्तमेसु, जह अणुभवंति सुरवरविमाणवरपोंडरीएसु सोक्खाई अणोवमाई कमेण भोत्तूण उत्तमाई तओ आउक्खएणं चुवा समाणा जह जिणमयम्मि बोहिं लभ्रूण य संजमुत्तम तमरयोघविप्पमुक्का उति ज़ह अक्खयं सव्वदुक्खमोक्खं । एए अन्ने य एवमाई (अत्था वित्थरेण य) परूविज्जति। उवासयदसासु णं परित्ता वायणा जाव संखेज्जाओ संगहणीओ। से णं अंगठ्ठयाए सत्तमे अंगे, एगे सुयक्खंधे, दस अज्झयणा,
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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