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________________ ज्ञान अध्ययन ६१५ धर्मकथाओं के दस वर्ग हैं। उनमें से एक-एक धर्मकथा में पाँच-पाँच सौ आख्यायिकाएं हैं, एक-एक आख्यायिका में पाँच-पाँच सौ उपाख्यायिकाएं है, एक-एक उपाख्यायिका में पाँच-पाँच सौ आख्यायिकाउपाख्यायिकाएं हैं। इस प्रकार सब मिलाकर साढ़े तीन करोड़ कथाएं कही गई है। दस धम्मकहाणं वग्गा। तत्थ णं एगमेगाए धम्मकहाए पंच पंच अक्खाइयासयाई, एगमेगाए अक्खाइयाएपंच पंच उवक्खाइयासयाई, एगमेगाए उवक्खाइयाएपंच पंच अक्खाइयउवक्खाइयासयाई, एवामेव सपुव्वावरेणं अद्धट्ठाओ अक्खाइयाकोडीओ भवंतीति मक्खायाओ। णायाधम्मकहासु णं परित्ता वायणा जाव संखेज्जाओ संगहणीओ। से णं अंगठ्ठयाए छठे अंगे, दो सुयक्खंधा, एगूणतीसं अज्झयणा। ते समासओ दुविहा पण्णत्ता, तं जहा१. चरिया य, २ कप्पिया य। एगूणतीसं उद्देसणकाला, एगूणतीसं समुद्देसणकाला, संखेज्जाइं पयसयसहस्साइं पयग्गेणं पण्णत्ता, संखेज्जा अक्खरा जाव उवदंसिज्जति। से एवं आया, एवं णाया, एवं विण्णाया, एवं चरण करण परूवणा आघविज्जति जाव उवदंसिज्जति। ज्ञाताधर्मकथा में परिमित वाचनाएं हैं यावत् संख्यात संग्रहणियां हैं। अंगों में यह छठा अंग है, इसमें दो श्रुतस्कन्ध हैं और उन्तीस अध्ययन हैं, वे संक्षेप में दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. चरित, २. कल्पित। ज्ञाताधर्मकथा में उन्तीस उद्देशन-काल हैं, उन्तीस समुद्देशन-काल हैं, पद-गणना की अपेक्षा संख्यात हजार पद हैं, संख्यात अक्षर है यावत् उदाहरण देकर समझाए गए हैं। इसका सम्यक् अध्ययन करने वाला तदात्मरूप ज्ञाता एवं विज्ञाता हो जाता है। इस प्रकार इस अंग में चरण करण की विशिष्ट प्ररूपणा की है यावत् उपदर्शन किया है। यह ज्ञाताधर्मकथा का वर्णन है। (क) ज्ञाताधर्मकांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध का उपोद्घात उस काल और उस समय में चम्पा नाम की नगरी थी-यहाँ नगरी का वर्णन करना चाहिए। उस चम्पा नगरी के बाहर उत्तर-पूर्व के दिशा भाग (ईशान कोण) में पूर्णभद्र नाम का चैत्य (बाग)था। यहाँ चैत्य का वर्णन जानना चाहिए। उस चम्पा नगरी में कोणिक नाम का राजा रहता था। यहाँ राजा का वर्णन करना चाहिए। उस काल और उस समय में श्रमण भगवान् महावीर के अन्तेवासी आर्य सुधर्मा नाम के स्थविर जो उत्तम जाति एवं उत्तम कुल के थे। सेतं णायाधम्मकहाओ।' -सम.,सु.१४१ (क) णायाधम्मकहांगस्स पढम सुयक्खंधस्स उक्खेवो तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नयरी होत्थावण्णओ। तीसे णं चंपाए नयरीए बहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए पुण्णभद्दे नामं चेइए होत्था-वण्णओ। तत्थ णं चंपाए नयरीए कोणिए नाम राया होत्थावण्णओ। तेण कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी अज्जसुहम्मे नाम थेरे जाइ संपण्णे कुल संपण्णे, १. प. से किं तं णायाधम्मकहाओ? उ. णायाधम्मकहासु णं णायाणं णगराइं उज्जाणाई चेइआइं वणसंडाइं समोसरणाई रायाणो अम्मापियरो धम्मकहाओ धम्मायरिया इहलोग-परलोगिया रिद्धि-विसेसा भोगपरिच्चागा पव्यज्जाओ परियागा सुयपरिग्गहा तवोवहाणाई संलेहणाओ भत्तपच्चक्खाणाई पाओवगमणाई देवलोगगमणाई सुकुलपच्चायाईओ पुणबोहिलाभा अंतकिरियाओ य आघविति। दस धम्मकहाणं वग्गा तत्थ णं एगमेगाए धम्मकहाए पंच पंच अक्खाइयासयाई, एगमेगाए अक्खाइयाएपंच पंच उवक्खाइयासयाई, एगमेगाए उवक्रवाइयाए पंच पंच अक्वाइओवक्रवाइयासयाई, एवमेव सपुव्वावरेणं अद्भुठाओ कहाणगकोडीओ भवंतिति मक्खायं। णाया धम्मकहाणं परित्ता वायणा जावसंखेज्जाओ संगहणीओ। से णं अंगठ्याए छठे अंगे, दो सुयक्खंधा, एगूणवीसं णायज्झयणा, एगूणवीसं उद्देसणकाला, एगूणवीसं समुद्देसणकाला, संखेज्जाई पयसहस्साई, पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा जाय उवदंसिर्जति। से एवं आया, एवं नाया एवं विण्णाया एवं चरण-करण परूवणा आघवज्जिइ। सेतं णाया धम्मकहाओ। -नदी.सु. ८८
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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