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________________ ६१४ २४. (६) णाया धम्मकहाओ प. से किं तं णायाधम्मकहाओ ? उ. णायाधम्मकहासु णं णायाणं णगराई उज्जाणाई चेइयाई वणखंडा रायाणो अम्मापियरो समोसरणाहं धम्मायरिया धम्मकहाओ, इहलोइया-परलोइया इड्डीविसेसा भोगपरिच्याया पव्वज्जाओ सुयपरिग्गहा तवोवहाणाई परियागा संलेहणाओ भत्तपच्चक्खाणाई पाओयगमणाई देवलोगगमणाई सुकुलपच्चायाई पुण बोहिलाभो अंतकिरियाओ य आघविज्जति । नायाधम्मकहाणं पव्वइयाणं विणयकरणजिणसामि - सासणवरे संजमपइण्णा पालणधिइ मइववसाय दुब्बलणं, तवनियम-तवोवहांणरणदुद्धरभरभग्गा णिस्सहा णिसिद्धाणं, धोरपरीसहपराजियाणं, सहपारद्धरुद्धसिद्धालय मग्गनिग्गयाणं, विसयसुहतुच्छ आसावसदोसमुच्छियाणं, विराहियचरित्त - नाण - दंसण - जइगुणविविहप्पयार निस्सारसुन्नयाणं, संसार अपारदुक्ख दुग्गड़-भवविविहपरंपरापवंचा। धीराण य जियपरीसह कसाय सेण्ण-धिइ-धणियसंजमउच्छाहनिच्छियाणं, आराहिय नाण - दंसण - चरित्त - जोग - निस्सल्ल - सुद्धसिद्धालयमग्गमभिमुहाणं, सुरभवण-विमाणसुक्खाई अणोवमाई भुत्तूण चिरं च भोगभोगाणि ताणि दिव्वाणि महरिहाणि, तओ य कालक्कमचुयाणं जह य पुणो लद्धसिद्धिमग्गाणं अंतकिरिया । धीरकरणकारणाणि चलियाण य सदेवमाणुस्स बोधण अनुसासणाणि गुण-दोस-दरिसणाणि, दिट्ठतए पच्चये य सोऊण लोगमुणिणो जहयट्ठियसासणम्मि, जर मरणनासणकरे आराहि असंजमा य सुरलोगपड़िनियत्ता संव्यदुक्खमोक् एए अण्णे य एवमाइ अत्था वित्धरेण समासिज्जति । उवेंति जह सासयं सिवं २४. (६) ज्ञाताधर्मकथा सूत्र प. ज्ञाताधर्मकथा सूत्र में क्या है? द्रव्यानुयोग - (१) उ. ज्ञाताधर्मकथा में उदाहरण रूप में कहे गए पुरुषों के नगर, उद्यान, चैत्य, वनखण्ड, राजा, उनके माता-पिता, समवसरण, धर्माचार्य, धर्मकथा इहलौकिक पारलौकिक ऋद्धि-विशेष भोग-परित्याग प्रव्रज्या, श्रुत-परिग्रह, तप उपधान, दीक्षापर्याय, संलेखना भक्तप्रत्याख्यान, पादपोपगमन, देवलोक गमन, सुकुल में पुनर्जन्म, पुनः बोधिलाभ और अन्त क्रियाओं का वर्णन है। 1 ज्ञाता धर्मकथा में विनय मूल जिनशासन में प्रव्रजित होकर भी संयम प्रतिज्ञा के पालन करने में जिनकी धृति, मति और व्यवसाय दुर्बल है, तप के नियम और तप के परिपालन रूप कर्म युद्ध के दुर्धर भार से परांमुख हो गए हैं, अत्यन्त अशक्त होकर संयम पालन करने का संकल्प छोड़कर निकल चुके हैं, जो घोर परीषहों से पराजित हो चुके हैं, संयम के साथ प्रारम्भ किए गये मोक्ष मार्ग के अवरुद्ध हो जाने पर जो उस मार्ग से बाहर निकल गए हैं। जो इन्द्रियों के तुच्छ विषय-सुखों की आशा के वश होकर दोषों से मूर्च्छित हो रहे हैं, ज्ञान, दर्शन, चारित्र रूप यति-गुणों को विराधित कर जो विविध प्रकार से निःसार और शून्य संयम वाले हैं, जो संसार के अपार दुःखों की और नरक, तिर्यञ्चादि नाना दुर्गतियों की भवपरम्परा के प्रपंच में पड़े हुए हैं, ऐसे पतित पुरुषों की कथाएं हैं। तथा जो धीर है वे परीषहों और कषायों की सेना को जीतने वाले हैं, जो धर्म के धनी हैं, वे संयम में उत्साह रखने और बल-वीर्य को प्रकट करने में दृढ़ निश्चय बाले हैं, जो ज्ञान, दर्शन, चारित्र की आराधना करने वाले हैं, योग ( दण्डों से) और मिथ्यादर्शनादि शल्यों से रहित होकर शुद्ध निर्दोष सिद्धान्त के मार्ग की ओर अभिमुख हैं, तथा जो देव-भवनों और देव - विमानों के अनुपम सुखों भोग-उपभोगों को चिरकाल तक भोग कर कालक्रम के अनुसार वहाँ से च्युत हो पुनः यथायोग्य मुक्ति के मार्ग को प्राप्त कर अन्तक्रिया करते हैं उनका वर्णन है। जो समाधिमरण के समय कर्म-वश विचलित हो गए हैं, उनको देवों और मनुष्यों के द्वारा धैर्य धारण कराने में कारणभूत बोधवचनों और अनुशासनों को, संयम के गुण एवं दोष दर्शक दृष्टान्तों को तथा बोधि के कारणभूत वाक्यों को सुनकर शुकपरिव्राजक आदि ने भी जरा-मरण का नाश करने वाले जिन-शासन को स्वीकार करके स्थित होकर संयम की आराधना की, पुनः देवलोक में उत्पन्न हुए, वहाँ से आकर शाश्वत सुख और सर्वदुःखों से विमोक्ष को प्राप्त किया। अन्य भी ऐसी अनेक महापुरुषों की कथाएं इस अंग में विस्तार से कही गई है।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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