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________________ ६०४ विविहवित्थराणुगमपरमसब्भावगुणविसिट्ठा, मोक्खपोयारगा, उदारा अण्णाणतमंधकारदुग्गेसु दीवभूआ सोवाणा चैव सिद्धिसुगड़गिहुत्तमस्स क्खिोभनियकंपा सूयगडस्स णं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणुओगदारा, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुतीओ सेणं अंगट्टयाए दोच्चे अंगे दो सुक्खधा तेवीस अज्झयणा, " तेत्तीस उद्देसणकाला, " तेत्तीस समुद्देसणकाला छत्तीस पदसहस्साई पयग्गेणं पण्णत्ताई, संखेज्जा अक्खरा जाव उवदंसिज्जति, से एवं आया, एवं नाया एवं विण्णाया, एवं चरणकरण परूवणा आघविज्जइ जाव उवदंसिज्जइ । सेतं सूगडे' । (क) सूयगडे अज्झयणा -सम. सु. १३७ तेवीसं सुयगडज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा १. समए, २. वेयालिए, ३. उवसग्गपरिण्णा, ४. इत्थीपरिण्णा, ५. नरयविभत्ती, ६. महावीरथुई, ७. कुसीलपरिभासिए, ८. वीरिए, ९. धम्मे १०. समाही, ११. मग्गे, १२. समोसरणे, १४. गंथे, १६. गाथा २ १८. किरियाठाणा, १३. आहतहिए, १५. जमईए, १७. पुंडरीए, १९. आहारपरिण्णा २०. अपच्चक्खाण किरिआ, २२. अइहज्जे, २१. अणगारसुयं, २३. णालंदइज्जं । - सम. सम. २३, सु. १ १. से किं तं सूयगडे ? सूयगडे णं लोए सूइज्जइ, अलोए सूइज्जइ, लोयालोए सूइज्जइ, जीवा इज्जति, अजीया सहजति जीवाजीवा इज्जति, ससमए सूइज्जइ, परसमए सूइज्जइ, ससमय-परसमए सूइज्जइ । सूयगडे णं असीतस्स किरियावादिसयस्स चउरासीईए अकिरियावादीणं, सत्तट्ठीए अण्णाणियवादीगं, बत्तीसाए बैगइयवादीणं, तिच्हं तेसद्वाणं, पावादुयसयाणं वूहं किच्चा ससमए ठाविज्जइ । सूयगडे णं परित्ता वायणा जाव संखेज्जाओ पडिवत्तीओ। द्रव्यानुयोग - (१) विविध प्रकार से विस्तृत व्याख्या युक्त और परम सद्भावगुण रूप से विशिष्ट है, मोक्षमार्ग के प्रदर्शक हैं, उदार, प्रगाढ़ ज्ञान अन्धकार में दुर्गमतत्वज्ञान का बोध कराने के लिए दीपक स्वरूप है, सिद्धि और सुगति रूपी उत्तम गृह के लिए सोपान के समान, प्रवादियों के विक्षोभ से रहित और निष्प्रकम्प अर्थ किए गए हैं। सूत्रकृतांग की वाचनाएं परिमित हैं, संख्यात अनुयोगद्वार हैं, संख्यात प्रतिपत्तियां हैं, संख्यात वैष्टक (छंद) है, संख्यात श्लोक है, संख्यात व्याख्याए हैं, अंगों की अपेक्षा यह दूसरा अंग हैं - 7 इसके दो श्रुतस्कन्ध हैं तेईस अध्ययन हैं, तेतीस उद्देशनकाल हैं, तेतीस समुद्देशनकाल हैं, छत्तीस हजार पद प्रमाण कहे गए हैं। संख्यात अक्षर हैं यावत् उदाहरण देकर समझाए गए हैं, सूत्रकृतांग के अध्ययन से आत्म वस्तु स्वरूप का ज्ञाता एवं विज्ञाता हो जाता है। इसी प्रकार इस सूत्र में चरणकरण की प्ररूपणा कही गई है। यावत् उदाहरण देकर समझाए गए हैं। यह सूत्रकृतांग का वर्णन है। (क) सूत्रकृतांग के अध्ययन सूत्रकृतांग के तेईस अध्ययन कहे गए हैं, २. वैतालिक, ४. स्त्रीपरिज्ञा, १. समय, ३. उपसर्गपरिज्ञा ५. नरकविभक्ति, ७. कुशीलपरिभाषित ९. धर्म, ११. मार्ग, १३. यथातथ्य, १५. यमतीत, १७. पुण्डरीक, १९. आहारपरिज्ञा, २१. अनगारश्रुत, २३. नालन्दीय। यथा ६. महावीरस्तुति, ८. वीर्य, १०. समाधि, १२. समवसरण, १४. ग्रन्थ, १६. गाथा, १८. क्रियास्थान, २०. अप्रत्याख्यानक्रिया, २२. आर्द्रकीय सेणा अंगट्टयाए विइए अंगे दो सुयवधा तेवीस अन्या तेतीस उद्देसकाला तेतीस समुद्देसणकाला, F छत्तीसं पदसहस्साणि पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा जाव उवदंसिज्जति । से एवं आया, एवं नाया, एवं विण्णाया, एवं चरणकरणपरूवणा आघविज्जइ, - नंदी. सु. ८४ तं सूगडे । २. सम. सम. १६ सु. १
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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