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________________ ज्ञान अध्ययन ६०३ (ख) आचारांग के उद्देशनकाल नव ब्रह्मचर्य अध्ययनों के इक्यावन उद्देशन काल कहे गए हैं। (ख) आयारे उद्देसणकालाइंनवण्हं बंभचेराणं एकावन्नं उद्देसणकाला पण्णत्ता। -सम.सम.५१,सु.१ आयारस्स णं सचूलियागस्स पंचासीइ उद्देसणकाला पण्णत्ता। -सम.सम.८५, सु.१ (ग) आयारस्स पया आयारस्स णं सचूलियागस्स अट्ठारस्स पयसहस्साई पयग्गेणं पण्णत्ताई। -सम. सम.१८,सु.४ (घ) आयारस्स बिईय सुयक्खंधस्स निक्खेवो एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं जं सव्वढेहिं समिए सहिए सदा जए त्ति बेमि। -आ.सु.२, अ.१, उ.१,सु.३३४ २०.(२) सूयगडो प. से किं तं सूयगडे ? उ. सूयगडे णं ससमया सूइज्जति, परसमया सूइज्जति, ससमयपरसमया सूइज्जति, जीवा सूइज्जंति, अजीवा सूइज्जति, जीवाजीवा सूइज्जंति, . लोगे सूइज्जइ, अलोगे सूइज्जइ, लोगालोगे सूइज्जइ। सूयगडे णं जीवा-5जीव-पुण्ण-पावाऽसव-संवर-निज्जरबंध-मोक्खावसाणा पयत्था सूइज्जंति, चूलिका सहित आचारांग सूत्र के पच्चासी उद्देशन काल कहे गए हैं। (ग) आचारांग के पद चूलिका सहित आचारांग सूत्र के पद-प्रमाण से अठारह हजार पद कहे गए हैं। (घ) आचारांग के द्वितीय श्रुतस्कंध का निक्षेप यह उस (सुविहित) भिक्षु या भिक्षुणी के लिए (ज्ञानादि आचार की) समग्रता यह है कि वह समस्त पदार्थों में पंच समितियों से युक्त होकर स्वकल्याण के लिए सदा प्रयत्नशील रहे, यह मैं कहता हूँ। २०. (२) सूत्रकृतांग सूत्र प्र. सूत्रकृत (सूत्रकृतांग सूत्र) में क्या है? उ. सूत्रकृतांग में स्वसिद्धांतों का वर्णन किया गया है, पर-सिद्धांतों का निरूपण किया गया है. स्व-पर सिद्धांतों का प्ररूपण किया गया है, जीव सूचित किए गए हैं, अजीव सूचित किए गए हैं, जीव और अजीव सूचित किए गए हैं, लोक सूचित किया गया है, अलोक सूचित किया गया है, लोक और अलोक सूचित किया गया है। सूत्रकृतांग में जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आम्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध और मोक्ष तक के सभी पदार्थ सूचित किए समणाणं अचिरकालपव्वइयाणं कुसमयमोह-मोहमइमोहियाणं, संदेहजायसहजबुद्धिपरिणामसंसइयाणं पावकरमइलमइगुणविसोहणत्थं, असीतस्स किरियावाइयसयस्स, चउरासीतीए अकिरियावाईणं, सत्तट्ठीए अण्णाणियवाईणं बत्तीसाए वेणइयवाईणं, तिण्हं तेसट्ठाणं अण्णदिट्ठियसयाणं वूह किच्चा ससमए ठाविज्जइ। णाणादिटुंतवयणणिस्सारं सुठु दरिसयंता, जो श्रमण अल्पकाल से ही प्रव्रजित हैं जिनकी बुद्धि मिथ्या (सिद्धांतों) को सुनने से मोहित है, जिनके हृदय तत्व के विषय में सन्देह के उत्पन्न होने से विचलित हो रहे हैं। सहज बुद्धि का परिणमन संशय को प्राप्त हो रहा है, पाप उपार्जन करने वाली मलिन मति के दुर्गुणों का शोधन करने के लिए, क्रियावादियों के एक सौ अस्सी, अक्रियावादियों के चौरासी, अज्ञानवादियों के सड़सठ, विनयवादियों के बत्तीस, इन तीन सौ तिरेसठ अन्य वादियों के व्यूह समूहों को (निरस्त) करके स्व-सिद्धांत स्थापित किया गया है। सूत्रकृतांग के सूत्रार्थ नाना प्रकार के दृष्टान्त युक्त वचनों से (पर-मत के) वचनों को भली भांति निःसार दिखाते हैं, १. इसी प्रकार द्वितीय श्रुतस्कंध के प्रथम से चौदहवें अध्ययन एवं उद्देशकों तक के उपसंहार सूत्र जानने चाहिए।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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