SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 708
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्ञान अध्ययन ६०१ (११-१२) गमिक-अगमिक श्रुतप्र. गमिक श्रुत क्या है? उ. दृष्टिवाद ममिक श्रुत है। प्र. अगमिक श्रुत क्या है? उ. कालिक श्रुत (दृष्टिवाद के सिवाय) अगमिक श्रुत है। यह गमिक श्रुत है, यह अगमिक श्रुत है। (१३-१४) अंगप्रविष्ट अंगबाह्य श्रुत अथवा वह (श्रुत) संक्षेप में दो प्रकार का कहा गया है, यथा१. अंगप्रविष्ट, २. अंगबाह्य। (११-१२) गमिय-अगमियसुयंप. से किं तं गमियं? . उ. गमियं दिट्ठिवाओ। प. से किं तं अगमियं? उ. अगमियं कालियं सुयं। सेतं गमियं, सेत अगमियं। -नंदी.सु.७९ (क) (१३-१४) अंगपविट्ठ अंगबाहिर सुयं अहवा तं (सुयं) समासओ दुविहं पण्णत्तं,तं जहा१. अंगपविजेंच, २. अंगबाहिरं च। -नंदी.सु.७९ (ख) १८. अंगपविट्ठसुयभेया प. से किं तं अंगपविट्ठ? उ. अंगपविट्ठ दुवालसविहं पण्णत्तं,तं जहा१. आयारो, २. सूयगडो, ३. ठाणं, ४. समवाओ, ५. विवाहपन्नत्ती, . ६. नायाधम्मकहाओ, ७. उवासगदसाओ, ८. अंतगडदसाओ, ९. अणुत्तरोववाइयदसाओ, १०. पण्हावागरणाई, ११. विवागसुयं, १३. दिठिवाओ।२ -नंदी. सु. ८२ अंगपविट्ठसुयस्स वित्थरओ परूवणं१९. (१) आयारो प. से किं तं आयारे? उ. आयारे णं समणाणं निग्गंथाणं आयार-गोयर-विणय वेणइय-ट्ठाण-गमण-चंकमण-पमाण- जोगजुंजण-भासा समिति-गुत्ती-सेज्जोवहि-भत्त-पाण-उग्गम-उप्पायणएसणाविसोहि सुद्धासुद्ध ग्गहण-वय णियम- तवोवहाणसुप्पसत्थमाहिज्जइ। १८. अंगप्रविष्ट श्रुत के भेद प्र. अंगप्रविष्ट श्रुत कितने प्रकार का है ? उ. अंगप्रविष्ट बारह प्रकार का कहा गया है, यथा १. आचार (आचारांग सूत्र) २. सूत्रकृतांगसूत्र ३. स्थानांगसूत्र ४. समवायांग सूत्र ५. व्याख्याप्रज्ञप्ति (भगवतीसूत्र) ६. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र ७. उपासकदशांग सूत्र ८. अंतकृत्दशांग सूत्र ९. अनुत्तरोपपातिकदशांगसूत्र १०. प्रश्नव्याकरण सूत्र ११. विपाक सूत्र १२. दृष्टिवाद सूत्र। से समासओ पंचविहे पण्णत्ते,तं जहा१. णाणायारे, २. दंसणायारे, ३. चरित्तायारे, ४. तवायारे, ५. वीरियायारे। आयारस्स णं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणुओगदारा, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तिओ, से णं अंगठ्ठयाए पढमे अंगे अंगप्रविष्टश्रुत का विस्तार से प्ररूपण१९. (१) आचारांग सूत्र प्र. आचार (आचारांग सूत्र) में क्या है? उ. आचारांग सूत्र में श्रमण निर्ग्रन्थों के आचार, गोचर, विनय, वैनयिक, स्थान, गमन, चंक्रमण, प्रमाण, योग-युंजन (योगों का व्यापार) भाषा-समिति, गुप्ति, शय्या, उपधि, भक्त-पान, उद्गम, उत्पादन, एषणा-विशुद्धि, शुद्ध-ग्रहण, अशुद्ध-ग्रहण, व्रत, नियम और तप उपधान इन सबका सुप्रशस्त (स्पष्ट) कथन किया गया है। संक्षेप में आचार पांच प्रकार का कहा गया है, यथा१. ज्ञानाचार, २. दर्शनाचार, ३. चारित्राचार, ४. तपाचार, ५. वीर्याचार। आचारांग की परिमित वाचनाएं हैं, संख्यात (उपक्रम आदि) अनुयोगद्वार हैं, संख्यात प्रतिपत्तियां (मतान्तर) हैं, संख्यात वेष्टक (छन्द) हैं, संख्यात श्लोक हैं, संख्यात नियुक्तियां (व्याख्यायें) हैं। अंग की दृष्टि से यह प्रथम अंग है। १. ठाणं अ.२, उ.१,सु.६०/२१ २. राय.स.२४१ ३. प. से किं तं आयारे? उ. आयारे ण समणाणं निग्गंथाणं आयारगीयर जाव सव्वा दुवालसंग परूवणा भाणियव्या जहा नंदीए। जाव सुत्तत्यो खलु पढमो बीओ निजुत्तिमीसओ भणिओ। तइओ य निरवसेसो एस विही होइ अणुयोगे॥१॥ -विया.स.२५,उ.३,सु.११६
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy