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________________ पासणया अध्ययन : आमुख पासणया शब्द जैन आगमों में प्रयुक्त एक विशिष्ट शब्द है, जिसमें ज्ञान एवं दर्शन का समावेश हो जाता है। ज्ञान एवं दर्शन का समावेश 'उपयोग' शब्द में भी होता है किन्तु उपयोग एवं पासणया (पश्यता) में भेद है। उपयोग में ज्ञान एवं दर्शन के समस्त भेदों का ग्रहण होता है, जबकि पासणया में मतिज्ञान एवं अचक्षुदर्शन का ग्रहण नहीं होता। पासणया के लिए हिन्दी में पश्यता शब्द का प्रयोग हुआ है जो बौद्धदर्शन में प्रचलित विपश्यना से अलग अर्थ रखता है। पासणया शब्द का वास्तविक अर्थ क्या है यह शोध का विषय है, किन्तु इसके सम्बन्ध में आगमों में जो तथ्य संकलित हैं उनसे ज्ञात होता है कि यह उपयोग से भिन्न है। उपयोग की भांति पासणया के दो भेद प्रतिपादित हैं-साकारपासणया और अनाकार पासणया। साकारपश्यता (पासणया) छह प्रकार की हैश्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यायज्ञान, केवलज्ञान, श्रुत अज्ञान और विभंगज्ञान । मतिज्ञान एवं मतिअज्ञान को पासणया के भेदों में नहीं गिना गया है। इससे विदित होता है कि साकार पासणया के अन्तर्गत मात्र वर्तमानकाल को विषय करने वाले आभिनिबोधिक (मति) ज्ञान एवं मतिअज्ञान का समावेश नहीं होता। पासणया त्रैकालिक विषयों से सम्बद्ध है। अनाकार पश्यता के तीन प्रकार हैं-चक्षुदर्शन, अवधिदर्शन और केवलदर्शन। इसमें अचक्षुदर्शन का समावेश नहीं होता, क्योंकि वह शेष तीन दर्शनों की अपेक्षा अपरिस्फुट होता है। अनाकारपश्यता में उन्हीं तीन दर्शनों का समावेश है जिनमें विशदता या परिस्फुटता है। चौबीस दण्डकों में पासणया का विचार करने पर ज्ञात होता है कि एकेन्द्रिय जीवों में एक मात्र श्रुत अज्ञान साकार पश्यता पायी जाती है। द्वीन्द्रिय एवं त्रीन्द्रिय जीवों में श्रुतज्ञान या श्रुतअज्ञान साकारपश्यता मिलती है। चतुरिन्द्रिय जीवों में श्रुतज्ञान एवं श्रुतअज्ञान साकारपश्यता के अतिरिक्त चक्षुदर्शन अनाकारपश्यता भी उपलब्ध होती है क्योंकि वे चक्षुइन्द्रिय युक्त होते हैं। नैरयिकों, देवों एवं पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों में श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, श्रुतअज्ञान एवं विभंगज्ञान के भेद से चार प्रकार की साकारपश्यता तथा चक्षुदर्शन और अवधिदर्शन के भेद से दो प्रकार की अनाकार पश्यता हो सकती है। मनुष्यों में साकार पश्यता के छहों तथा अनाकार पश्यता के तीनों भेद पाए जाते हैं। यह कथन समुच्चय से है, प्रत्येक जीव की अपेक्षा उसमें भिन्नता रहती है। जीव में पायी जाने वाली साकारपश्यता के आधार पर वह साकारपश्यी तथा अनाकारपश्यता के आधार पर वह अनाकारपश्यी कहा जाता है। ( ५७२ )
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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