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________________ ५६० पाई। ११. लेसागई, १२. लेस्साणुवायगई, १३. उद्दिसपविभत्तगई, १४. चउपुरिसपविभत्तगई, १५. वंकगई, १६. पंकगई, १७. बंधणविमोयणगई। प. १.से किं तं फुसमाणगई? उ. फुसमाणगई जण्णं परमाणुपोग्गले दुपएसिय जाव अणंतपएसियाणं खंधाणं अण्णमण्णं फुसित्ताण गई पवत्तइ। से तं फुसमाणगई। प. २.से किं तं अफुसमाणगई ? उ. अफुसमापगई जण्णं एएसिं चेव अफसित्ता णं गई पवत्तइ। सेतं अफुसमाणगई। प. ३.से किं तं उवसंपज्जमाणगई? उ. उवसंपज्जमाणगई जण्णं रायं वा, जुवराय वा, ईसरं वा, तलवरं वा, माडंबियं वा, कोडुंबियं वा, इब्भं वा सेठिं वा, सेणावई वा, सत्थवाहं वा उवसंपज्जित्ता णं गच्छइ। सेतं उवसंपज्जमाणगई। प. ४.से किं तं अणुवसंपज्जमाणगई? उ. अणुवसंपज्जमाणगई जण्णं एएसिं चेव अण्णमण्णं अणुवसंपज्जित्ता णं गच्छइ। से तं अणुवसंपज्जमाणगई। प. ५.से किं तं पोग्गलगई? उ. पोग्गलगई जण्णं परमाणुपोग्गलाणं जाव __ अणंतपएसियाणं खंधाणं पवत्तइ। से तं पोग्गलगई। प. ६.से किं तं मंड्यगई? उ. मंडूयगई जण्णं मंडूए उप्फिडिया उफ्फिडिया गच्छइ। द्रव्यानुयोग-(१) ११. लेश्यागति, १२. लेश्यानुपातगति, १३. उद्दिश्यप्रविभक्तगति, १४. चतुःपुरुषप्रविभक्तगति, १६. पंकगति, १७. बन्धनविमोचनगति। प्र. १. स्पृशमानगति किसे कहते हैं ? उ. परमाणुपुद्गल की अथवा द्विप्रदेशी यावत् अनन्तप्रदेशी स्कन्धों की एक दूसरे को स्पर्श करते हुए जो गति होती है, वह स्पृशमानगति है। यह स्पृशमानगति का वर्णन है। प्र. २. अस्पृशमानगति किसे कहते हैं? उ. जो इन परमाणु पुद्गलों से लेकर अनन्तप्रदेशी स्कन्धों को परस्पर स्पर्श किए बिना ही जो गति होती है वह अस्पृशद्गति है। यह अस्पृशमानगति का स्वरूप है। प्र. ३. उपसम्पद्यमानगति किसे कहते हैं ? उ. उपसम्पद्यमानगति ऐसी है जिसमें व्यक्ति राजा, युवराज, ईश्वर (ऐश्वर्यशाली) तलवर (किसी नृप द्वारा नियुक्त पट्टधर शासक) माडम्बिक (मण्डलाधिपति) इभ्य (धनाढ्य) सेठ, सेनापति या सार्थवाह को आश्रय करके (उनके सहयोग या सहारे से) गमन करता हो। यह उपसम्पद्यमान गति का स्वरूप है। प्र. ४. अनुसम्पद्यानगति किसे कहते है ? उ. इन्हीं पूर्वोक्त (राजा आदि) का परस्पर आश्रय न लेकर जो गति होती है वह अनुसम्पद्यमान गति है। यह अनुसम्पद्यमान गति का स्वरूप है। प्र. ५. पुद्गलगति किसे कहते हैं? उ. परमाणु पुद्गलों की यावत् अनन्तप्रदेशी स्कन्धों की गति पुद्गल गति है। यह पुद्गलगति का स्वरूप है। प्र. ६. मण्डूकगति किसे कहते हैं ? उ. मेंढक जो उछल-उछल कर गति करता है वह मण्डूकगति कहलाती है। यह मण्डूकगति का स्वरूप है। प्र. ७. नौकागति किसे कहते हैं ? उ. जैसे नौका पूर्व वैताली (तट) से दक्षिण वैताली की ओर जलपथ से जाती है, अथवा दक्षिण वैताली से पश्चिम वैताली की ओर जलपथ से जाती है ऐसी गति नौकागति है। यह नौकागति का स्वरूप है। प्र. ८. नयगति किसे कहते हैं ? उ. नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ और एवं भूत इन सात नयों की जो प्रवृत्ति है अथवा सभी नय जो मानते हैं वह नयगति है। यह नयगति का स्वरूप है। प्र. ९. छायागति किसे कहते हैं? से तं मंडूयगई। प. ७.से किं तं णावागई? उ. णावागई जण्णं णावा पुव्ववेयालीओ दाहिणवेयालिं जलपहेणं गच्छइ, दाहिणवेयालीओ वा अवरवेयालिं जलपहेणं गच्छइ। से तंणावागई। प. ८.से किं तं णयगई ? उ. णयगई जण्णं णेगम-संगह-ववहार-उज्जुसुय-सह समभिरूढ-एवंभूयाणं णयाणं जा गई, अहवा सव्वणया विजं इच्छंति। सेतंणयगई। प. ९.से किं तं छायागई?
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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