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________________ प्रयोग अध्ययन उ. णो भवोववायगई दुविहा पण्णत्ता,तं जहा १. पोग्गलणोभवोववायगई २. सिद्धणोभवोववायगई य। प. से किं तं पोग्गलणोभवोववायगई ? उ. पोग्गलणोभवोववायगई जण्णं परमाणुपोग्गले लोगस्स पुरथिमिल्लाओ चरिमंताओ पच्छिमिल्लं चरिमंतं एगसमएणं गच्छइ, पच्छिमिल्लाओ वा चरिमंताओ पुरथिमिल्लं चरिमंतं एगसमएणं गच्छइ, दाहिणिल्लाओ वा चरिमंताआ उत्तरिल्लं चरिमंतं एगसमएणं गच्छइ, एवं उत्तरिल्लाओ दाहिणिल्लं, उवरिल्लाओ हेट्ठिल्लं, हेट्ठिल्लाओवा उवरिल्लं। - ५५९ ) उ. नोभवोपपातगति दो प्रकार की कही गई है, यथा १. पुद्गल-नोभवोपपातगंति, २. सिद्ध-नोभवोपपातगति। प्र. पुद्गल नोभवोपपातगति क्या है ? उ. जो पुद्गल परमाणु लोक के पूर्वी चरमान्त अर्थात् छोर से पश्चिमी चरमान्त तक एक ही समय में गमन करता है। पश्चिमी चरमान्त से पूर्वी चरमान्त तक एक समय में गमन करता है। दक्षिणी चरमान्त से उत्तरी चरमान्त तक एक समय में गति करता है। उत्तरी चरमान्त से दक्षिणी चरमान्त तक तथा ऊपरी चरमान्त से निचले चरमान्त तक एवं निचले चरमान्त से ऊपरी चरमान्त तक एक समय में ही गति करता है। यह पुद्गल नोभवोपपातगति कहलाती है। प्र. सिद्ध नोभवोपपातगति कितने प्रकार की है? उ. सिद्ध नोभवोपपातगति दो प्रकार की कही गई है, यथा १. अनन्तरसिद्ध नोभवोपपातगति, २. परम्परसिद्ध नोभवोपपातगति। प्र. अनन्तरसिद्ध नोभवोपपातगति कितने प्रकार की है? उ. अनन्तरसिद्ध नोभवोपपातगति पन्द्रह प्रकार की कही गई है, यथा१. तीर्थसिद्ध-अनन्तरसिद्ध-नोभवोपपातगति यावत् १५. अनेकसिद्ध-अनन्तरसिद्ध-नोभवोपपातगति। यह अनन्तरसिद्ध-नोभवोपपातगति का प्ररूपण हुवा। प्र. परम्परसिद्ध-नोभवोपपातगति कितने प्रकार की है? उ. परम्परसिद्ध-नोभवोपपातगति अनेक प्रकार की है, यथा से तं पोग्गल णोभवोववायगई। प. से किं तं सिद्धणोभवोववायगई? उ. सिद्धणोभवोववायगई दुविहा पण्णत्ता,तं जहा १. अणंतरसिद्धणोभवोववायगई य २. परंपरसिद्धणोभवोववायगई य। प. से किं तं अणंतरसिद्धणोभवोववायगई? उ. अणंतरसिद्धणोभवोववायगई पन्नरसविहा पण्पत्ता, तं जहा१. तित्थसिद्धअणंतरसिद्धणोभवोववायगई य जाव १५.अणेगसिद्धअणंतरसिद्धणोभवोववायगई य। सेत्तं अणंतरसिद्धणोभवोववायगई। प. से किं तं परंपरसिद्धणोभवोववायगई? उ. परंपरसिद्धणोभवोववायगई अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहाअपढमसमयसिद्धणोभवोववायगई एवं - दुसमय . सिद्धणोभवोववायगई जाव अणंतसमयसिद्धणोभवोववायगई। से तं परंपरसिद्धणोभवोववायगई। सेत्तं सिद्धणोभवोववायगई सेत्तं णोभवोववायगई। सेत्तं उववायगई। -पण्ण. प. १६. सु. १०९२-११०४ ९. सत्तरसविहाविहायगई प. ५.से किं तं विहायगई? उ. विहायगई सत्तरसविहा पण्णत्ता,तं जहा १. फुसमाणगई, २. अफुसमाणगई, ३. उवसंपज्जमाणगई, ४. अणुवसंपज्जमाणगई, ५. पोग्गलगई, ६. मंडूयगई, ७. गावागई, ८. णयगई, ९. छायागई, १०. छायाणुवायगई, अप्रथमसमयसिद्ध-नोभवोपपातगति एवं द्विसमयसिद्धनोभवोपपातगति यावत् अनन्तसमयसिद्ध-नोभवोपपातगति। यह परम्परसिद्ध-नोभवोपपातगति का प्ररूपण हुआ। यह सिद्ध-नोभवोपपातगति का वर्णन हुआ। साथ ही नोभवोपपातगति की प्ररूपणा हुई। यह उपपातगति का वर्णन पूर्ण हुआ। सत्तरह प्रकार की विहायोगतिप्र. ५.विहायोगति कितने प्रकार की है? उ. विहायोगति सत्तरह प्रकार की कही गई है, यथा १. स्पृशमानगति, २. अस्पृशमानगति, ३. उपसम्पद्यमानगति, ४. अनुपसम्पद्यमानगति, ५. पुद्गलगति, ६. मण्डूकगति, ७. नौकागति, ८. नयगति, ९. छायागति, १०. छायानुपातगति,
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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