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________________ प्रयोग अध्ययन ५५७ ८. उववायगई भेयप्पभेया प. ४. से किं तं उववायगई? उ. उववायगई तिविहा पण्णत्ता, तं जहा १. खेत्तोववायगई, २. भवोववायगई, ३. णोभवोववायगई। प. से किं तं खेत्तोववायगई? उ. खेत्तोववायगई पंचविहा पण्णत्ता,तं जहा १. णेरइयखेत्तोववायगई, २. तिरिक्खजोणियखेत्तोववायगई, ३. मणूसखेत्तोववायगई, ४. देवखेत्तोववायगई, ५. सिद्धखेत्तोववायगई। प. से किं तं णेरइयखेत्तोववायगई? उ. णेरइयखेत्तोववायगई सत्तविहा पण्णत्ता,तं जहा १. रयणप्पहापुढविणेरइयखेत्तोववायगई जाव ७. अहेसत्तमापुढविणेरइयखेत्तोववायगई। से तंणेरइयखेत्तोववायगई। प. से किं तं तिरिक्खजोणिय खेत्तोववायगई? उ. तिरिक्खजोणिय-खेत्तोववायगई पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा१. एगिदिय-तिरिक्खजोणिय-खेत्तोववायगई जाव ५. पंचेंदिय-तिरिक्खजोणिय-खेत्तोववायगई। से तं तिरिक्खजोणिय-खेत्तोववायगई। प. से किं तं मणूसखेत्तोववायगई? उ. मणूस-खेत्तोववायगई दुविहा पण्णत्ता, तं जहा १. सम्मुच्छिम-मणूस-खेत्तोववायगई, २. गब्भवक्कंतिय-मणुस्स-खेत्तोववायगई। से तं मणूस-खेत्तोववायगई। प. से किं तं देवखेत्तोववायगई? उ. देवखेत्तोववायगई चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा १. भवणवइ देव-खेत्तोववायगई जाव ४. वेमाणिय देव-खेत्तोववायगई। से तं देवखेत्तोववायगई। प. से किं सिद्धखेत्तोववायगई ? उ. सिद्धखेत्तोववायगई अणेगविहा पण्णत्ता,तं जहा जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवयवाससपक्खि सपडिदिसिं सिद्धखेत्तोववायगई, जंबुद्दीवे दीवे चुल्लहिमवंत-सिहरिवा सहरपव्वयसपक्विं सपडिदिसिं सिद्धखेत्तोववायगई, ८. उपपातगति के भेद-प्रभेद-- प्र. ४. उपपातगति कितने प्रकार की है ? उ. उपपातगति तीन प्रकार की कही गई है, यथा १. क्षेत्रोपपातगति, २. भवोपपातगति, ३. नोभवोपपातगति। प्र. क्षेत्रोपपातगति कितने प्रकार की है? उ. क्षेत्रोपपातगति पाँच प्रकार की कही गई है, यथा १. नैरयिकक्षेत्रोपपातगति, २. तिर्यञ्चयोनिकक्षेत्रोपपातगति, ३. मनुष्यक्षेत्रोपपातगति, ४. देवक्षेत्रोपपातगति, ५. सिद्धक्षेत्रोपपातगति। प्र. नैरयिकक्षेत्रोपपातगति कितने प्रकार की है ? उ. नैरयिकक्षेत्रोपपातगति सात प्रकार की कही गई है, यथा १. रत्नप्रभापृथ्वीनैरयिकक्षेत्रोपपातगति यावत् ७. अधःसप्तमपृथ्वीनैरयिकक्षेत्रोपपातगति। यह नैरयिक क्षेत्रोपपातगति की प्ररूपणा हुई। प्र. तिर्यञ्चयोनिकक्षेत्रोपपातगति कितने प्रकार की है? उ. तिर्यञ्चयोनिकक्षेत्रोपपातगति पांच प्रकार की कही गई है, यथा१. एकेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकक्षेत्रोपपासगति यावत् ५. पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकक्षेत्रोपपातगति। यह तिर्यञ्चयोनिकक्षेत्रोपपातगति की प्ररूपणा हुई। प्र. मनुष्यक्षेत्रोपपातगति कितने प्रकार की है ? उ. मनुष्यक्षेत्रोपपातगति दो प्रकार की कही गई है, यथा १. सम्मुर्छिम मनुष्य-क्षेत्रोपपातगति, २. गर्भज मनुष्य-क्षेत्रोपपातगति। यह मनुष्यक्षेत्रोपपातगति की प्ररूपणा हुई। प्र. देवक्षेत्रोपपातगति कितने प्रकार की है? उ. देवक्षेत्रोपपातगति चार प्रकार की कही गई है, यथा १. भवनपतिदेव-क्षेत्रोपपातगति यावत् ४. वैमानिकदेव-क्षेत्रोपपातगति। यह देवक्षेत्रोपपातगति की प्ररूपणा हुई। प्र. सिद्धक्षेत्रोपपातगति कितने प्रकार की है? उ. सिद्धक्षेत्रोपपातगति अनेक प्रकार की कही गई है, यथा जम्बूद्वीप नामक द्वीप में भरत और ऐरवत वर्ष (क्षेत्र) की सब दिशाओं और सब विदिशाओं में सिद्धक्षेत्रोपपातगति होती है। जम्बूद्वीप नामक द्वीप में क्षुद्र हिमवान् और शिखरी वर्षधरपर्वत की सब दिशाओं में और विदिशाओं में सिद्धक्षेत्रोपपातगति होती है। जम्बूद्वीप नामक द्वीप में हेमवत और हैरण्यवतवर्ष में सब दिशाओं और विदिशाओं में सिद्धक्षेत्रोपपातगति होती है। जंबुद्दीवे दीवे हेमवय-हेरण्णवयवाससपक्विं सपडिदिसिं सिद्धखेत्तोववायगई,
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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