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________________ ५२६ उ. गोयमा ! एगगुणसुब्भिगंधाई पि गेण्हइ जाव अणंतगुणसुब्भिगंधाई पि गेण्हइ। एवं दुब्मिगंधाई पि गेण्हइ। प. ११.जाई भावओ रसमंताई गेण्हइ, ताइंकिं एगरसाइं गेण्हइ जाव किं पंचरसाइं गेण्हइ? उ. गोयमा ! गहणदव्याई पडुच्च एगरसाई पिगेण्हइ जाव - पंचरसाई पि गेण्हइ, सव्वग्गहणं पडुच्च णियमा पंचरसाइं गेण्हइ। प. १२.जाई रसओ तित्तरसाइं गेण्हइ, ताई कि एगगुणतित्तरसाइं गेण्हइ जाव अणंतगुणतित्तरसाईं गेण्हइ? उ. गोयमा ! एगगुणतित्तरसाइं पि गेण्हइ जाव अणंतगुणतित्तरसाइं पिगेण्हइ। एवं जाय महुरो रसो। प. १३.जाई भावओ फासमंताई गेण्हइ, ताई कि एगफासाई गेण्हइ जाव अट्ठफासाइं गेण्हइ? उ. गोयमा ! गहणदव्याई पडुच्च णो एगफासाइंगेण्हइ दुफासाइं गेण्हइ जाव चउफासाई पि गेण्हइ, णो पंचफासाईं गेण्हइ जाव णो अट्ठफासाई पि गेण्हइ। सव्वग्गहणं पडुच्चणियमा चउफासाइं गेण्हइ,तं जहा१. सीयफासाइं गेण्हइ, २. उसिणफासाइं गेण्हइ, ३. णिद्धफासाई गेण्हइ, ४. लुक्खफासाई गेण्हइ। प. १४.जाई फासओ सीयाई गेण्हइ, ताई किं एगगुणसीयाई गेण्हइ जाव अणंतगुणसीयाइं गेण्हइ? उ. गोयमा ! एगगुणसीयाई पि गेण्हइ जाव द्रव्यानुयोग-(१) उ. गौतम ! वह एक गुण सुगन्ध वालों को भी ग्रहण करता है, यावत् अनन्तगुण सुगन्ध वालों को भी ग्रहण करता है। इसी प्रकार वह दो गुण दुर्गन्ध वालों को भी ग्रहण करता है। प्र. ११. भाव से वह रस वालों को ग्रहण करता है तो क्या वह एक रस वालों को ग्रहण करता है यावत् पांच रस वालों को ग्रहण करता है? उ. गौतम ! ग्रहण किए जाने वाले द्रव्यों की अपेक्षा से एक रस वालों को भी ग्रहण करता है यावत् पांच रस वालों को भी ग्रहण करता है। सभी को ग्रहण करने की अपेक्षा से पांच रस वालों को निश्चित रूप से ग्रहण करता है। प्र. १२.भाव से वह तिक्त रस वालों को ग्रहण करता है तो क्या एक गुण तिक्त रस वालों को ग्रहण करता है यावत् अनन्तगुण तिक्त रस वालों को ग्रहण करता है? उ. गौतम ! एक गुण तिक्त रस वालों को भी ग्रहण करता है, यावत् अनन्तगुण तिक्त रस वालों को भी ग्रहण करता है। इसी प्रकार यावत् मधुर रस वालों को भी ग्रहण करता है। प्र. १३. भाव से वह स्पर्श वालों को ग्रहण करता है तो क्या एक स्पर्श वालों को ग्रहण करता है यावत् आठ स्पर्श वालों को ग्रहण करता है? उ. गौतम ! ग्रहण किए जाने वाले द्रव्यों की अपेक्षा से एक स्पर्श वालों को ग्रहण नहीं करता है, दो स्पर्श वालों को ग्रहण करता है यावत् चार स्पर्श वालों को ग्रहण करता है, पांच स्पर्श वालों को भी ग्रहण नहीं करता है यावत् आठ स्पर्श वालों को भी ग्रहण नहीं करता है। सभी को ग्रहण करने की अपेक्षा सेचार स्पर्श वालों को निश्चित रूप से ग्रहण करता है, यथा१. शीतस्पर्श वालों को ग्रहण करता है, २. उष्णस्पर्श वालों को ग्रहण करता है, ३. स्निग्धस्पर्श वालों को ग्रहण करता है, ४. रूक्षस्पर्श वालों को ग्रहण करता है। प्र. १४. स्पर्श से वह शीतस्पर्श वालों को ग्रहण करता है तो क्या एक गुण शीतस्पर्श वालों को ग्रहण करता है यावत् अनन्तगुण शीतस्पर्श वालों को ग्रहण करता है ? उ. गौतम ! वह एक गुण शीतस्पर्श वालों को भी ग्रहण करता है, यावत् अनन्तगुण शीतस्पर्श वालों को भी ग्रहण करता है। इसी प्रकार उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष स्पर्श वालों को यावत् अनन्तगुण रूक्षादि स्पर्श वालों को भी ग्रहण करता है। अणंतगुणसीयाइं पि गेण्हइ। एवं उसिण-णिद्ध-लुक्खाई जाव अणंतगुणाई पि गेण्हइ।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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