SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 632
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भाषा अध्ययन प. ५.जाई कालओ गेण्हइ, ताई किं एगसमयठिइयाई गेण्हइ, दुसमयठिइयाइं गेण्हइ जाव असंखेज्जसमयठिइयाई गेण्हइ ? उ. गोयमा ! एगसमयठिइयाई पि गेण्हइ, दुसमयठिइयाई पि गेण्हइ जाय असंखेज्जसमयठिइयाई पि गेण्हइ। प. ६.जाई भावओ गेण्हइ, ताई किं वण्णमंताईं गेण्हइ, गंधमंताई गेण्हइ, रसमंताई गेण्हइ, फासमंताई गेण्हइ? उ. गोयमा ! वण्णमंताई पिगेण्हइ जाव फासमंताई पि गेण्हइ। प. ७.जाइं भावओ वण्णमंताइं गेण्हइ, ताई किं एगवण्णाइं गेण्हइ जाव पंचवण्णाई गेण्हइ? उ. गोयमा ! गहणदव्याई पडुच्य एगवण्णाई पि गेण्हइ जाव पंचवण्णाई पि गेण्हइ, सव्वरगहणं पडुच्चणियमा पंचवण्णाइं गेण्हइ,तं जहा१. कालाई,२.नीलाई,३.लोहियाई, ४. हालिद्दाई,५.सुक्किलाई। प. ८.जाई वण्णओ कालाई गेण्हइ, ताई किं एगगुणकालाई गेण्हइ जाव अणंतगुणकालाई गेण्हइ? उ. गोयमा ! एगगुणकालाई पि गेण्हइ जाव अणंतगुणकालाई पि गेण्हइ। एवं जाव सुक्किलाई पि। - ५२५ । प्र. ५. जिनको काल से ग्रहण करता है तो क्या एक समय की स्थिति वालों को ग्रहण करता है, दो समय की स्थिति वालों को ग्रहण करता है यावत् असंख्यात समय की स्थिति वालों को ग्रहण करता है? उ. गौतम ! एक समय की स्थिति वालों को भी ग्रहण करता है, दो समय की स्थिति वालों को भी ग्रहण करता है यावत् असंख्यात समय की स्थिति वालों को भी ग्रहण करता है। प्र. ६. जिनको भाव से ग्रहण करता है तो क्या वर्ण वालों को ग्रहण करता है, गन्ध वालों को ग्रहण करता है, रस वालों को ग्रहण करता है, या स्पर्श वालों को ग्रहण करता है? उ. गौतम ! वह वर्ण वालों को भी ग्रहण करता है यावत् __ स्पर्श वालों को भी ग्रहण करता है। प्र. ७. भाव से जिन वर्ण वालों को ग्रहण करता है तो क्या वह एक वर्ण वालों को ग्रहण करता है यावत् पाँच वर्ण वालों को ग्रहण करता है ? उ. गौतम ! ग्रहण किए जाने वाले द्रव्यों की अपेक्षा से एक वर्ण वालों को भी ग्रहण करता है यावत् पांच वर्ण वालों को भी ग्रहण करता है। सभी द्रव्यों के ग्रहण करने की अपेक्षा सेनियमतः पांचों वर्णों वालों को ग्रहण करता है, यथा१. काले, २. नीले, ३. लाल, ४. पीले, ५. शुक्ल। प्र. ८. वर्ण से जिन काले वर्ण वालों को ग्रहण करता है तो क्या वह एक गुण काले को ग्रहण करता है यावत् अनन्तगुण काले को ग्रहण करता है? उ. गौतम ! एक गुण काले वर्ण वालों को भी ग्रहण करता है यावत् अनन्तगुण काले वर्ण वालों को भी ग्रहण करता है। इसी प्रकार यावत् शुक्ल वर्ण वालों को भी ग्रहण करता है। प. ९.जाइं भावओ गंधमंताई गेण्हइ, ताई किं एगगंधाई गेण्हइ दुगंधाइं गेण्हइ? उ. गोयमा ! गहणदव्याई पडुच्च एगगंधाई पि गेण्हइ, दुगंधाइं पि गेण्हइ सव्वग्गहणं पडुच्चणियमा दुगंधाइं गेण्हइ। प. १०.जाई गंधओ सुब्भिगंधाई गेण्हइ, ताई किं एगगुणसुब्भिगंधाइं गेण्हइ जाव अणंतगुणसुब्भिगंधाई गेण्हइ? प्र. ९. भाव से वह गन्ध वालों को ग्रहण करता है तो क्या एक गन्ध वालों को ग्रहण करता है, दो गन्ध वालों को ग्रहण करता है? उ. गौतम ! ग्रहण किए जाने वाले द्रव्यों की अपेक्षा से एक गन्ध वालों को भी ग्रहण करता है, दो गन्ध वालों को भी ग्रहण करता है सभी को ग्रहण करने की अपेक्षा से नियमतः दो गन्ध वालों को निश्चित रूप से ग्रहण करता है। प्र. १०. गन्ध से सुगन्ध वालों को ग्रहण करता है तो क्या वह एक गुण सुगन्ध वालों को ग्रहण करता है यावत् अनन्तगुण सुगन्ध वालों को ग्रहण करता है?
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy