SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 621
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५१४ १४. जे देवा सिरिकतं सिरिमहिअं सिरिसोमणसं लंतयं काविट्ठ महिंद महिंदोकतं महिंदुत्तरवडेंसगं विमाण देवत्ताए उववण्णा ते णं देवा चोद्दसहिं अद्धमासेहिं आणमंति वा जाब नीससंति वा । -सम. सम. १४, सु १५-१६ १५. जे देवा णंद सुणंद णंदावत्तं दिव्यमं णंदकतं णंदवणं णंदलेस जाव णंदुत्तरवडेंसगं विमाणं देवताए उववण्णा, ते णं देवा पण्णरसह अद्धमासाणं आणमति वा जाव नीससति था। -सम. सम. १५, सु. १३-१४ १६. जे देवा आयतं वियावत्तं नंदियायतं महानदियावत्तं अंकुसं अंकुसपलंबं भदं सुभदं महाभदं सव्वाओभद्द भदुत्तरवडेंसगं विमाणं देवत्ताए उबवण्णा, ते णं देवा सोलसण्डे अद्धमासाणं आणमति वा जाव नीससंति वा । -सम. सम. १६, सु. १३-१४ १७. जे देवा सांमाणं सुसामाणं महासामाणं परमं महापउमं कुमुदं महाकुमुदं नलिणं महाणलिणं पोंडरीयं महापोंडरीय सुक्कं महासुक्कं सीह सीहकंत सीहविय भाविय विमाण देवताए उबवण्णा ते णं देवा सत्तरसहिं अद्धमासेहिं आणमंति वा जाव नीति था। -सम. सम. १७, सु. १८-१९ १८. जे देवा काल सुकाल महाकाल अंजण रिट्ठे साल समाणं दुमं महादुमं विसालं सुसालं पउमं पउमगुम्मं कुमुदं कुमुदगुम्मं नलिणं नलिणगुम्मं पुंडरीयं पुंडरीयगुम्म सहस्सारवडेंसन विमाणं देवत्ताए उबवण्णा, ते णं देवा अट्ठारसहिं अद्धमासेहिं आणमति वा जाब नीससंति था। -सम. सम. १८, सु. १५-१६ १९. जे देवा आणतं पाणतं गतं विणतं घणं झुसिरं इद इंदोकंत इंदुत्तरवडेंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा-, णं देवा एगूणवीसाए अद्धमासाणं आणमंति वा जाव नीससंति वा । - सम. सम. १९, सु, १२-१३ २०. जे देवा सातं विसातं सुविसायं सिद्धत्थं उप्पलं रुइलं तिगिच्छं दिसासोवत्थियं वद्धमाणयं पलंबं पुष्कं पुप्फावत्तं पुप्फर्कतं पुप्फवण्णं पुष्फलेसं पुप्फज्झयं पुप्फसिंगं पुप्फसिट्टं पुप्फकूडं पुप्फुत्तरवडेंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा, ते णं देवा वीसाए अर्द्धमासाणं आणमंति वा जाव नीससंति वा । -सम. २०, सु. १४-१५ २१. जे देवा सिरिवच्छं सिरिदामगंडं मल्लं किट्ठि चावोण्णयं आरणवडेंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा देवा एक्कवीसाए अद्धमासाणं आणमंति वा जाव नीससंति वा । -सम. सम. २१, सु. ११-१२ २२. जे देवा महितं विस्सुतं विमलं पभासं वणमालं अच्चुवडेंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा-, ते णं देवा बावीसं अद्धमासाणं आणमंति वा जाव नीससति था। - सम. सम. २२, सु. ११-१२ द्रव्यानुयोग - (१) १४. जो देव श्रीकान्त, श्रीमहित, श्रीसौमनस, लान्तक, कापिष्ठ, महेन्द्र, महेन्द्रावकान्त और महेन्द्रोत्तरावतंसक विमानों में उत्पन्न होते हैं वे देव चौदह पक्षों से श्वासोच्छ्वास ग्रहण करते हैं और छोड़ते हैं। १५. जो देव नन्द, सुनन्द, नन्दावर्त्त, नन्दप्रभ, नन्दकान्त, नन्दवर्ण, नन्दलेश्य यावत् नन्दोवत्तरावतंसक विमानों में उत्पन्न होते हैं ये देव पन्द्रह पक्षों से श्वासोच्छ्वास ग्रहण करते हैं और छोड़ते हैं। १६. जो देव आवर्त, व्यावर्त, नन्द्यावर्त, महानन्द्यावर्त, अंकुश, अंकुशप्रलंब, भद्र, सुभद्र, महाभद्र, सर्वतोभद्र और भद्रोत्तरावतंसक विमानों में उत्पन्न होते हैं वे देव सोलह पक्षों से श्वासोच्छ्वास ग्रहण करते हैं और छोड़ते हैं। १७. जो देव सामान सुसामान, महासामान, पद्म, महादूम, कुमुद, महाकुमुद, नलिन, महानलिन, पौडरीक, महापौडरीक, शुक्ल, महाशुक्ल, सिंह, सिंहावकान्त, सिंहवीत और भावित विमानों में उत्पन्न होते हैं ये देव सतरह पक्षों से श्वासोच्छ्वास ग्रहण करते हैं और छोड़ते हैं। १८. जो देव काल, सुकाल, महाकाल, अंजन, रिष्ट, शाल, समान, हुम, महाद्रुम, विशाल, सुशाल, पद्म पद्मगुल्म, कुमुद्द, कुमुदगुल्म, नलिन, नलिनगुल्म, पुंडरीक, पुंडरीकगुल्म और सहस्रारावतंसक विमानों में उत्पन्न होते हैं 7 वे देव अठारह पक्षों से श्वासोच्छ्वास ग्रहण करते हैं और छोड़ते हैं। १९. जो देव आनत, प्राणत, नत विनत, घन, झुषिर, इन्द्र, इन्द्रावकान्त और इन्द्रोत्तरावतंसक विमानों में उत्पन्न होते हैंये देव उन्नीस पक्षों से श्वासोच्छ्वास ग्रहण करते हैं और छोड़ते हैं। , २०. जो देव सात विसात, सुविसात, सिद्धार्थ, उत्पल रुचिर तिमिच्छ, दिशासीवस्तिक, वर्द्धमानक, प्रलंब, पुष्प, सुम पुष्पावर्त्त पुष्पप्रभ, पुष्पकान्त, पुष्पवर्ग, पुष्यतेश्य पुष्पध्वज, पुष्पभृंग, पुष्पसृष्ट, पुष्पकूट और पुष्पोत्तरावतंसक विमानों में उत्पन्न होते हैं " वे देव वीस पक्षों से श्वासोच्छ्वास ग्रहण करते हैं और छोड़ते हैं। २१, जो देव श्रीवत्स श्रीदामगंड, माल्य, कृष्टि, चापोत्रत और आरण्यावतंसक विमानों में उत्पन्न होते हैं ये देव इक्कीस पक्षों से श्वासोच्छ्वास ग्रहण करते हैं और छोड़ते हैं। J २२. जो देव महित विश्रुत, विमल प्रभास, वनमाल और अच्युतावतंसक विमानों में उत्पन्न होते हैं। वे देव बाईस पक्षों से श्वासोच्छ्वास ग्रहण करते हैं और छोड़ते हैं।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy