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________________ उच्छ्वास अध्ययन ५०७ १७. उस्सास-अज्झयणं १७. उच्छ्वास-अध्ययन सूत्र | सूत्र १. चउवीसदंडएसु उस्सास-नीसास परूवणं तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नगरे होत्था, वण्णओ, सामी समोसढे, परिसा निग्गया, धम्मो कहिओ परिसा पडिगया। तेणं कालेणं तेणं समएणं जेठे अंतेवासी जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी प. जे इमे भंते ! बेइंदिया, तेइंदिया, चउरिंदिया, पंचिंदिया जीवा एएसि णं आणामं वा पाणामं वा उस्सासं वा नीसासं वा जाणामो पासामोजे इमे पुढविकाइया जाव वणस्सइकाइया एगिदिया जीवा एएसि णं आणामं वा, पाणामं वा, उस्सासं वा, निस्सासं वाण जाणामो,ण पासामो। एए वि य णं भंते ! जीवा आणमंति वा, पाणवंति वा, ऊससंति नीससंति वा? उ. हता, गोयमा ! एए वि य णं जीवा आणमंति वा जाव नीससंति वा। प. किं यं भंते ! एए जीवा आणमंति वा जाव नीससंति वा? उ. गोयमा ! दव्वओ णं अणंतपएसियाई दव्वाई, खेत्तओ णं असंखेज्जपएसोगाढाई, कालओ अन्नयरट्ठिईयाई, भावओ वण्णमंताई, गंधमंताई, रसमंताइ, फासमंताई, आणमंति वा जाव नीससंति वा। १. चौवीसदंडकों में उच्छ्वास-निःश्वास का प्ररूपण उस काल और उस समय में राजगृह नामक नगर था, उसका वर्णन करना चाहिए। (एकदा) (भगवान् महावीर) स्वामी (वहां) पधारे। (उनका धर्मोपदेश सुनने के लिए) परिषद् निकली (भगवान् ने) धर्मोपदेश दिया। (धर्मोपदेश सुनकर) परिषद् वापिस लौट गई। उस काल और उस समय में (श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के) ज्येष्ठ अन्तेवासी (शिष्य) (श्री इन्द्रभूति गौतम अनगार) यावत्भगवान् की पर्युप ना करते हुए इस प्रकार बोलेप्र. भन्ते ! जो ये द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय जीव हैं उनके आणपाण और श्वासोच्छ्वास को (हम) जानते देखते हैं, किन्तु जो ये पृथ्वीकाय से वनस्पतिकाय पर्यन्त के एकेन्द्रिय जीव हैं उनके आणपाण और श्वासोच्छवास को हम न जानते हैं और न देखते हैं। तो भन्ते ! क्या ये पृथ्वीकायादि एकेन्द्रिय जीव श्वासोच्छ्वास ग्रहण करते हैं और छोड़ते हैं ? उ. हाँ, गौतम ! ये पृथ्वीकायादि एकेन्द्रिय जीव श्वासोच्छ्वास ग्रहण करते हैं और छोड़ते हैं। प्र. भन्ते ! ये (पृथ्वीकायादि एकेन्द्रिय)जीन, किस प्रकार के द्रव्यों को श्वासोच्छ्वास के रूप में ग्रहण करते हैं और छोड़ते हैं ? उ. गौतम ! द्रव्य की अपेक्षा अनन्त प्रदेश वाले द्रव्यों को, क्षेत्र की अपेक्षा असंख्य प्रदेशों में रहे हुए द्रव्यों को, काल की अपेक्षा किसी भी प्रकार की स्थिति वाले द्रव्यों को, भाव की अपेक्षा वर्ण वाले, गन्ध वाले, रस वाले और स्पर्श वाले द्रव्यों को श्वासोच्छ्वास के रूप में ग्रहण करते हैं और छोड़ते हैं। प्र. भन्ते ! वे पृथ्वीकायादि एकेन्द्रिय जीव भाव की अपेक्षा वर्ण वाले जिन द्रव्यों को श्वासोच्छ्वास के रूप में ग्रहण करते हैं और छोड़ते हैं तो क्या एक वर्ण वाले यावत् पांच वर्ण वाले द्रव्यों को श्वासोच्छ्वास के रूप में ग्रहण करते हैं और छोड़ते हैं ? उ. गौतम ! जैसा कि आहारपद में कथन किया है वैसा ही यहां समझना चाहिए यावत् वे तीन, चार, पांच दिशाओं की ओर से श्वासोच्छ्वास के पुद्गलों को ग्रहण करते हैं और छोड़ते हैं। प्र. भन्ते ! नैरयिक किस प्रकार के पुद्गलों को श्वासोच्छ्वास के रूप में ग्रहण करते हैं और छोड़ते हैं ? उ. गौतम ! पूर्ववत् वैमानिक पर्यन्त जानना चाहिए। वे नियमतः श्वासोच्छ्वास के रूप में ग्रहण करते हैं और छोड़ते हैं। समुच्चय जीवों और एकेन्द्रियों के लिए व्याघात और निर्व्याघात की अपेक्षा श्वासोच्छ्वास का कथन करना चाहिए। शेष नियमतः छहों दिशाओं से ग्रहण करते हैं और छोड़ते हैं। प. जाई भावओ वण्णमंताई आणमंति जाब नीससति, ताई किं एगवण्णाई जाव पंचवण्णाई जाव आणमंति वा जाव नीससंति वा? उ. गोयमा ! आहारगमो नेयव्यो' जाव ति-चउ-पंचदिसिं। प. किंणं भंते ! नेरइया आणमंति वा जाव नीससंति वा? उ. गोयमा ! तं चेव जाव वेमाणिया नियमा-आणमंति वा जाव नीससंति वा जीवा एगिंदिया वाघाय-निव्याघाय भाणियव्वा। सेसा नियमा छद्दिसिं। १. आहार अध्ययन में (पण्ण. प.२८) देखें।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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