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________________ ( ४८४ )४८४ पएसट्ट्याए सव्वत्थोवे बेइंदियाणं जिभिंदिए पएसट्ठयाए फासेंदिए संखेज्जगुणे। ओगाहणपएसट्ठयाए सव्वत्थोवे बेइंदियस्स जिभिदिए ओगाहणपएसट्टयाए फासिंदिए संखेज्जगुणे। फासेंदियस्स ओगाहणट्ठयाएहितो जिभिदिए पएसट्ठयाए अणंतगुणे, पएसट्ठयाए फासिंदिए संखेज्जगुणे। प. बेइंदियाणं भंते ! जिब्भिंदियस्स केवइया कक्खड-गरुयगुणा पण्णत्ता? उ. गोयमा! अणंता। एवं फासेंदियस्स वि, द्रव्यानुयोग-(१) प्रदेशों की अपेक्षा से सबसे कम द्वीन्द्रिय की जिह्वेन्द्रिय है, प्रदेशों की अपेक्षा से-उनकी स्पर्शेन्द्रिय संख्यातगुणी है। . अवगाहना और प्रदेशों की अपेक्षा से द्वीन्द्रियों की जिह्वेन्द्रिय सबसे अल्प है, अवगाहना और प्रदेशों की अपेक्षा से स्पर्शेन्द्रिय संख्यातगुणी अधिक है, स्पर्शेन्द्रिय की अवगाहना से जिह्वेन्द्रिय प्रदेशों की अपेक्षा से अनंतगुणी है। प्रदेशों की अपेक्षा से स्पर्शेन्द्रिय संख्यातगुणी है। प्र. भन्ते ! द्वीन्द्रियों की जिह्वेन्द्रिय के कितने कर्कश-गुरुगुण कहे गए हैं? उ. गौतम ! वह अनन्त है। इसी प्रकार इनकी स्पर्शेन्द्रिय के भी अनन्त गुण समझने चाहिए। इसी प्रकार मृदु-लघु गुण भी अनन्त समझने चाहिए। प्र. भन्ते ! इन द्वीन्द्रियों की जिह्वेन्द्रय और स्पर्शेन्द्रिय के कर्कश गुरुगुणों, मृदु-लघुगुणों तथा कर्कश गुरुगुण और मृदु लघु गुणों में से कौन किससे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं ? एवं मउय-लहुयगुणा वि। प. एएसि णं भंते ! बेइंदियाणं जिब्भिंदिए-फासेंदियाणं कक्खड-गरुयगुणाणं-मउय-लहुयगुणाणं कक्खडगरुयगुण-मउय-लहुयगुणाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा? उ. गोयमा ! सव्वत्थोवा बेइंदियाणं जिब्भिंदियस्स कक्खड-गरुयगुणा, फासेंदियस्स कक्खड-गरुयगुणा अणंतगुणा, फासेंदियस्स कक्खड-गरुयगुणेहिंतो तस्स चेव मउय-लहुयगुणा अणंतगुणा, जिभिंदियस्स मउय-लहुयगुणा अणंतगुणा। दं.१८-१९. एवं जाव चरिंदिय त्ति।' णवरं-इंदियपरिवुड्ढी कायव्वा। तेइंदियाणं घाणेंदिय थोवे, चउरिंदियाणं चक्विंदिए थोवे। सेसंतंचेव। दं. २०-२१. पंचिंदिय-तिरिक्खजोणियाणं मणूसाण य जहाणेरइयाणं। णवरं-फासिदिए छव्विहसंठाणसंठिए पण्णत्ते,तं जहा उ. गौतम ! सबसे अल्प द्वीन्द्रियों के जिह्वेन्द्रिय के कर्कश गुरुगुण हैं, (उनसे) स्पर्शेन्द्रिय के कर्कश गुरुगुण अनन्तगुणे हैं। स्पर्शेन्द्रियके कर्कश गुरुगुणों से उसी के मृदु लघुगुण अनन्तगुणे हैं। उससे भी जिह्वेन्द्रिय के मूदु लघुगुण अनन्तगुणे हैं। द. १८-१९. इसी प्रकार चतुरिन्द्रियों पर्यन्त कहना चाहिए। विशेष-इन्द्रिय की परिवृद्धि करनी चाहिए। त्रीन्द्रिय जीवों की घ्राणेन्द्रिय थोड़ी होती है। चतुरिन्द्रिय जीवों की चक्षुइन्द्रिय थोड़ी होती है। शेष सभी कथन पूर्ववत् है। द. २०-२१. पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों और मनुष्यों की इन्द्रियों के संस्थानादि सम्बन्धी कथन नारकों के समान समझना चाहिए। विशेष-उनकी स्पर्शेन्द्रिय छह प्रकार के संस्थानों वाली कही गई है, यथा-- १.समचतुरन, २. न्यग्रोधपरिमण्डल, ३. सादि, ४. कुब्जक, ५. वामन, ६.हुण्डका दं. २२-२४. वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों का इन्द्रिय संबंधी कथन असुरकुमारों के समान समझना चाहिए। १७. इंद्रियों की अवगाहना के भेद और चौबीस दंडकों में प्ररूपण प्र. भन्ते ! इन्द्रियावग्रहण कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! इन्द्रियावग्रहण पांच प्रकार का कहा गया है, यथा १. समचउरंसे, २. णग्गोहपरिमंडले, ३. साती, ४.खुज्जे,५.वामणे,६.हुंडे। दं. २२-२४. वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणियाणं जहा असुरकुमाराणं। -पण्ण. प.१५, उ.१, सु. ९८३ ९८९ १७. इंदिय ओगाहणा भेया चउवीसदंडएमय परूवणं प. कइविहाणं भंते ! इंदिय ओगाहणा पण्णत्ता? उ. गोयमा !पंचविहा इंदियओगाहणा पण्णत्ता,तं जहा १. जीवा. पडि. सु. २९-३० २. जीवा. पडि.१ सु. ३५-४१ ३. जीवा. पडि.१ सु. ४२
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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