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________________ इन्द्रिय अध्ययन प. ५. पुढविकाइयाणं भंते ! फासिंदिए कइपएसोगाढे पणते ? उ. गोयमा ! असंखेज्जपएसोगाढ़े पण्णत्ते । प. ६ एएसि णं भंते! पुढविकाइयाणं फासिंदियस्स ओगाहण-एसट्टयाए कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा ? उ. गोयमा ! सव्वत्थोवे पुढविकाइयाणं फासिंदिए ओगाहणट्टयाए, से चैव परसट्ट्याए अनंतगुणे । प. पुढविकाइयाणं भंते ! फसिंदियस्स केवइया कक्खडगरुयगुणा पण्णत्ता ? उ. गोयमा ! अनंता । एवं मउयलहुयगुणा वि प. एएसि णं भंते ! पुढविकाइयाणं फासिंदियस्स कक्खड-गरुयगुण मउय-लहुयगुणाण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा ? उ. गोयमा ! सव्वत्योचा पुढविकाइयाणं फार्मेदियस्स कक्खड - गरुयगुणा, तस्स चेव मउय-लहुयगुणा अनंतगुणा । दं. १३-१६ एवं आउक्काइयाण वि जाव वणफइकाइयाणं।' णवर संठाणे इमो विसेसो दबो आउवकाइयाणं विदुगबिंदुठाणसंठिए पण्णत्ते, उक्काइयाणं सूईकलावसंठाणसंठिए पण्णत्ते, वाउक्काइयाणं पडागासंठाणसंठिए पण्णत्ते, वणम्फइकाइयाणं णाणासंठाणसंठिए पण्णत्ते। प. दं. १७. बेदियाणं भंते! कइ इंदिया पण्णत्ता ? उ. गोयमा ! दो इंदिया पण्णत्ता, तं जहा १. जिब्भिंदिए य, २ . फासिंदिए य । २ दोन्हं पि इंदियाणं संठाणं, बाहल्लं, पोहत्तं पदेसा, ओगाहणा य जहा ओहियाणं भणिया तहा भाणियव्या । णवर फार्सदिए हुडसठाणसंढिए पण्णत्ते त्ति इमोविसेसो प. एएसि णं भंते बेदियाण जिम्मिंदिय फासेदियाणं ओगाहणट्ट्याए पएसट्ट्याए ओगाहणपएसट्ठाए कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा ? उ. गोयमा ! ओगाहणट्ट्याए सव्वत्थोवे बेइंदियाणं जिम्मिंदिए । ओगाहणट्ट्याए फासिंदिए संखेज्जगुणे । १. जीवा. पडि. १ सु. १४-२६ ४८३ प्र. ५. भन्ते ! पृथ्वीकायिकों की स्पर्शेन्द्रिय कितने प्रदेशों में अवगाढ कही गई है ? उ. प्र. गौतम असंख्यातप्रदेशों में अग्रगाढ कही गई है। ६. भन्ते इन पृथ्वीकायिकों की स्पर्शेन्द्रिय अवगाहना की • अपेक्षा और प्रदेशों की अपेक्षा से कौन किससे अल्प यावत् विशेषाधिक है? उ. गौतम ! पृथ्वीकायिकों की स्पर्शेन्द्रिय अवगाहना की अपेक्षा सबसे कम है, प्रदेशों की अपेक्षा से अनन्तगुणी हैं। प्र. भन्ते ! पृथ्वीकायिकों की स्पर्शेन्द्रिय के कर्कश गुरु गुण कितने कहे गए हैं ? उ. गौतम ! वे अनन्त कहे गए हैं। इसी प्रकार मृदु-लघु गुणों के विषय में भी समझना चाहिए। प्र. भन्ते ! इन पृथ्वीकायिकों की स्पर्शेन्द्रिय के कर्कश - गुरु गुणों और मृदु-लघु गुणों में से कौन किससे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं? उ. गौतम ! पृथ्वीकायिकों के स्पर्शेन्द्रिय के कर्कश और गुरु गुण सबसे कम हैं और उसी के मृदु लघु गुण अनन्तगुने हैं। प्र. उ. दं. १३-१६. इसी प्रकार अष्कायिकों से वनस्पतिकायिकों पर्यन्त का कथन करना चाहिए। विशेष- किन्तु इनके संस्थान के विषय में यह विशेषता समझ लेनी चाहिए अप्कायिकों की स्पर्शेन्द्रिय जल बिन्दु के आकार की कही है, तेजस्कायिकों की स्पर्शेन्द्रिय सूचीकलाप के आकार की कही है, वायुकायिकों की स्पर्शेन्द्रिय पताका के आकार की कही है, वनस्पतिकायिकों की स्पर्शेन्द्रिय का आकार नाना प्रकार का कहा गया है। नं. १७. भनो द्वीन्द्रिय जीवों के कितनी इन्द्रियां कही गई है ? गौतम ! दो इन्द्रियां कही गई हैं, यथा १. जिह्वेन्द्रिय, २ . स्पर्शेन्द्रिय । दोनों इन्द्रियों के संस्थान, बाहल्य, पृथुत्व, प्रदेश और अवगाहना के विषय में जैसे समुच्चय के संस्थानादि के विषय में कहा है वैसा ही कहना चाहिए। विशेष - यह है कि इनकी स्पर्शेन्द्रिय हुण्डकसंस्थान वाली कही गई है। प्र. भन्ते इन द्वीन्द्रियों की जिद्वेन्द्रिय और स्पर्शेन्द्रिय में से अवगाहना की अपेक्षा से, प्रदेशों की अपेक्षा से तथा अवगाहना और प्रदेशों की अपेक्षा से कौन किससे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं ? उ. गौतम ! अवगाहना की अपेक्षा से द्वीन्द्रियों की जिह्वेन्द्रिय सबसे कम है, अवगाहना की अपेक्षा से स्पर्शेन्द्रिय संख्यातगुणी है। २. जीवा. पडि. १ सु. २८
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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