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________________ इन्द्रिय अध्ययन एवं सुरूवा पोग्गला, दुरूवत्ताए परिणमति, दुरूवा पोग्गला, सुरूवत्ताए परिणमंति, एवं सुगंधा पोग्गला, दुब्मिगंधत्ताए परिणमंति, दुगंधा पोग्गला, सुभिगंधत्ताए परिणमंति, एवं सुरसा पोग्गला, दुरसत्ताए परिणमंति, दुरसा पोग्गला, सुरसत्ताए परिणमंति, एवं सुफासा पोग्गला, दुफासत्ताए परिणमंति दुफासा पोग्गला, सुफासत्ताए परिणमति' । -जीवा. पडि. ३, सु. १८९ ८. इंदियलद्धी भेया चउवीसदंडएसु य परूवणंप. कविहाणं भंते! इंदियद्धीपण्णत्ता ? उ. गोयमा पंचविहा इंदियद्धी पणत्ता तं जहा१. सोइंदियलद्धी जाव ५. फासिंदियलद्धी । २ , दं. १-२४ एवं नेरइयाणं जाव वेमाणियाणं । वरं - जस्स जइ इंदिया तस्स तावइया लद्धी भाणियव्वा । - पण्ण. प. १५, उ. २, सु. १०११ ९. इंदियउवओगद्धा भेया चउवीसदंडएसु य परूवणंप. कइविहा णं भंते! इंदिय उवओगद्धा पण्णत्ता ? उ. गोयमा ! पंचविहा इंदिय उब ओगद्धा पण्णत्ता, तं जहा १. सोइंदिय उवओगद्धा जाव ५. फासिंदिय उवओगद्धा, दं. १-२४ एवं नेरइयाणं जाय बेमाणियाणं। णवरं जस्स जइ इंदिया तस्स तावइया उवओगद्धा भाणियव्वा । - पण्ण. प. १५, उ. २. सु. १०१२ १०. इंदिय उवओगद्धाए अप्पबहुत्तं प. एएसि णं भते ! सोइदिय चक्विंदिय-वाणिदियजिब्भिदिय-फासिंदियाणं जहण्णियाए उवओगद्धाए, उक्कोसियाए उवओगद्धाए, हक्क उवओगद्धाए कयरे कपरेहिंतो अप्पा या जाब विसेसाहिया वा ? उ. गोयमा ! १ सव्यत्थोया चक्लिदियरस जहणिया उवओगद्धा, २. सोइंदियस्स जहण्णिया उवोगद्धा विसेसाहिया, ३. घाणिदियस्स जहण्णिया उवओगद्धा विसेसाहिया, १. विया. स. ३, उ. ९, सु. १ ४७९ इसी प्रकार सुरूप के पुद्गल दुरूप में परिणत होते हैं। दुरूप के पुद्गल मुरूप में परिणत होते हैं। इसी प्रकार सुगन्ध के पुद्गल दुर्गन्ध के रूप में परिणत होते हैं। दुर्गन्ध के पुद्गल सुगन्ध के रूप में परिणत होते हैं। इसी प्रकार सुरस के पुद्गल दुरस के रूप में परिणत होते हैं। दुरस के पुद्गल सुरस के रूप में परिणत होते हैं। इसी प्रकार सुस्पर्श के पुद्गल दुस्पर्श के रूप में परिणत होते हैं। दुस्पर्श के पुद्गल सुस्पर्श के रूप में परिणत होते हैं। ८. इन्द्रियलब्धि के भेद और चौबीसदंडकों में प्ररूपण प्र. भंते! इन्द्रियलब्धि कितने प्रकार की कही गई है? उ. गौतम ! इन्द्रियलब्धि पांच प्रकार की कही गई है, यथा १. श्रोत्रेन्द्रियलब्धियायत् ५. स्पर्शेन्द्रियलब्धि | दं. १-२४ इसी प्रकार नैरयिकों से वैमानिकों पर्यन्त जानना चाहिए। विशेष- जिसके जितनी इन्द्रियाँ हों, उसके उतनी ही इन्द्रियलब्ध कहनी चाहिए। ९. इन्द्रियोपयोग काल के भेद और चौबीसदंडकों में प्ररूपणप्र. भंते! इन्द्रियों के उपयोग का काल कितने प्रकार का कहा गया है ? उ. गौतम ! इन्द्रियों के उपयोग का काल पांच प्रकार का कहा गया है, यथा१. श्रोत्रेन्द्रिय उपयोग काल यावत् ५ स्पर्शेन्द्रिय उपयोगकाल दं. १-२४ इसी प्रकार नैरयिकों से वैमानिकों पर्यन्त कहना चाहिए। विशेष- जिसके जितनी इन्द्रियां हों, उसके उतने ही इन्द्रिय उपयोगकाल कहने चाहिए। १०. इन्द्रियों के उपयोगकाल का अल्पबहुत्व प्र. भंते! इन श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, जिह्वेन्द्रिय और स्पर्शेन्द्रिय के जघन्य उपयोगकाल, उत्कृष्ट उपयोगकाल और जघन्योत्कृष्ट उपयोग काल में कौन किससे अल्प यावत् विशेषाधिक है? उ. गौतम ! १ चक्षुरिन्द्रिय का जघन्य उपयोग काल सबसे अल्प है, २. (उससे) श्रोत्रेन्द्रिय का जघन्य उपयोगकाल विशेषाधिक है, ३. ( उससे) घ्राणेन्द्रिय का जघन्य उपयोगकाल विशेषाधिक है, २. विया. स. ८, उ. २, सु. ९०
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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