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________________ ४७४ प. पाणिदिए णं भंते ! किं संठिए पण्णत्ते? उ. गोयमा ! अइमुत्तग-संठाणसंठिए पण्णत्ते, प. जिभिदिए णं भंते ! किं संठिए पण्णत्ते, उ. गोयमा ! खुरप्प-संठाणसंठिए पण्णत्ते, प. फासिदिएणं भंते ! किं संठिए पण्णत्ते? उ. गोयमा !णाणासंठाणसंठिए पण्णत्ते। । -पण्ण.प.१५, उ.१.सु.९७४ २. विविहा इंदियत्था चत्तारि इंदियत्था पुट्ठा वेदेति, तं जहा द्रव्यानुयोग-(१) प्र. भन्ते ! घ्राणेन्द्रिय किस आकार की कही गई है? उ. गौतम ! वह अतिमुक्तकपुष्प के आकार की कही गई है। प्र. भन्ते ! जिह्वेन्द्रिय किस आकार की कही गई है? उ. गौतम ! वह खुरपे के आकार की कही गई है। प्र. भन्ते ! स्पर्शेन्द्रिय किस आकार की कही गई है? उ. गौतम ! वह नाना प्रकार के आकार की कही गई है। २. इन्द्रियों के विविध अर्थ चार इन्द्रियों के विषय इन्द्रियों से स्पृष्ट होने पर संवेदित होते हैं, यथा१. श्रोत्रेन्द्रियविषय, २.घ्राणेन्द्रियविषय, ३. रसनेन्द्रियविषय, ४. स्पर्शेन्द्रियविषय। १.सोतिंदियत्थे,२.घाणिंदियत्थे, ३.जिभिंदियत्थे, ४.फासिंदियत्थे। -ठाणं.४, उ.३, सु.३३४ (३) छ इंदियत्था पण्णत्ता,तं जहा१.सोतिंदियत्थे जाव ५.फासिंदियत्थे',६.नोइंदियत्थे। -ठाणं अ.६.सु. ४८६ दस इंदियत्थाऽतीता पण्णत्ता, तंजहा१. देसेणवि एगे सद्दाई सुणिंसु। २. सव्वेणवि एगे सद्दाइं सुणिंसु। ३. देसेणवि एगे रूवाई पासिंसु। ४. सव्वेणवि एगे रूवाइं पासिंसु। ५. देसेणवि एगे गंधाइं जिंधिंसु। ६. सव्वेणवि एगे गंधाई जिंघिसु। ७. देसेणवि एगे रसाइं आसादेंसु। ८. सव्वेणवि एगे रसाइं आसादेंसु। ९. देसेणवि एगे फासाई पडिसंवेदें। १०. सव्वेणवि एगे फासाई पडिसंवेदेंसु। इन्द्रियों के अर्थ (विषय) छ प्रकार के कहे गए हैं, यथा१.श्रोत्रेन्द्रिय का अर्थ यावत् ५. स्पर्शेन्द्रिय का अर्थ, ६. नो-इन्द्रिय का अर्थ। इन्द्रियों के अतीतकालीन विषय दश कहे गये हैं, यथा१. अनेक जीवों ने शरीर के एक देश से भी शब्द सुने थे। २. अनेक जीवों ने शरीर के सर्व देश से भी शब्द सुने थे। ३. अनेक जीवों ने शरीर के एक देश से भी रूप देखे थे। ४. अनेक जीवों ने शरीर के सर्व देश से भी रूप देखे थे। ५. अनेक जीवों ने शरीर के एक देश से भी गन्ध सूंघे थे। ६. अनेक जीवों ने शरीर के सर्व देश से भी गन्ध सूंघे थे। ७. अनेक जीवों ने शरीर के एक देश से भी रस चखे थे। ८. अनेक जीवों ने शरीर के सर्व देश से भी रस चखे थे। ९. अनेक जीवों ने शरीर के एक देश से भी स्पर्शों का वेदन किया था। १०. अनेक जीवों ने शरीर के सर्व देश से भी स्पर्शों का वेदन किया था। इन्द्रियों के वर्तमानकालीन विषय दश कहे गये हैं, यथा१. अनेक जीव शरीर के एक देश से भी शब्द सुनते हैं। २. अनेक जीव शरीर के सर्व देश से भी शब्द सुनते हैं। ३. अनेक जीव शरीर के एक देश से भी रूप देखते हैं। ४. अनेक जीव शरीर के सर्व देश से भी रूप देखते हैं। ५. अनेक जीव शरीर के एक देश से भी गन्ध सूंघते हैं। ६. अनेक जीव शरीर के सर्व देश से भी गन्ध सूंघते हैं। ७. अनेक जीव शरीर के एक देश से भी रस चखते हैं। ८. अनेक जीव शरीर के सर्व देश से भी रस चखते हैं। ९. अनेक जीव शरीर के एक देश से भी स्पर्शी का वेदन करते हैं। १०. अनेक जीव शरीर के सर्व देश से भी स्पर्शी का वेदन करते हैं। दस इंदियत्था पडुप्पण्णा पण्णत्ता,तं जहा१. देसेणवि एगे सद्दाइं सुणेति। २. सब्वेणवि एगे सद्दाइं सुणेति। ३. देसेणवि एगे रूवाइंपासंति। ४. सव्वेणवि एगे रूवाइंपासंति। ५. देसेणवि एगे गंधाई जिंघति। ६. सव्वेणवि एगे गंधाई जिंघति। ७. देसेणवि एगे रसाइं आसादेंति। ८. सब्वेणवि एगे रसाइं आसादेंति। ९. देसेणवि एगे फासाई पडिसंवेदेति। १०. सव्वेणवि एगे फासाइं पडिसंवेदेति। १. ठाणं अ. ५ उ.३ सु.४४३
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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