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प. से भंते! किं ऊसिओदयं गच्छइ, पतोदयं गच्छइ ?
उ. गोयमा ! ऊसिओदय पि गच्छ, पतोदयं पि गच्छ
प से भंते! किं एगओपडागं गच्छइ, दुहओपडागं गच्छ ?
उ. गोयमा ! एगओपडागं गच्छइ, णो दुहओपडागं गच्छइ ।
प. से णं भंते! किं वाउकाए पडागा ?
उ. गोयमा ! वाउकाए णं से, णो खलु सा पडागा।
- विया. स. ३, उ. ४, सु. ६-७
३०. बलागस्स इत्थिआइ रूव परिणमण परूवणं
प. पभू णं भंते! बलाहगे एवं महं इत्विरूवं वा जाय संदमणिय वा परिणामेत्तए ?
उ. हंता, गोयमा ! पभू ।
प. पभू णं भंते ! बलाहए एगं महं इत्थिरूवं परिणामेत्ता अगाई जोयणाई गमित्तए ?
उ. हंता, गोयमा ! पभू ।
प से भंते! किं आयढीए गच्छइ, परिड्ढीए गच्छइ ?
उ. गोयमा ! णो आयड्ढीए गच्छइ, परिड्ढीए गच्छइ ।
एवं णो आयकम्मुणा, परकम्मुणा । नो आयपयोगेणं, परप्पयोगेणं ।
सिओदयं वा गच्छ, पतोदयं वा गच्छइ ।
प. से णं भंते! किं बलाहए इत्थी ?
उ. गोयमा ! बलाहए णं से, णो खलु सा इत्थी । एवं पुरिसे, आसे, हत्थी ।
प. पभू णं भंते ! बलाहए एवं महे जाणरूवं परिणामेत्ता अगाई जोयणाई गमित्तए ?
उ. गोयमा ! जहा इत्थिरूवं तहा भाणियव्वं ।
वरं - एगओ चक्कवालं पि, दुहओ चक्कवालं पि भाणियव्वं ।
जुग्ग
- गिल्लि थिल्लि सीया-संदमाणियाणं तहेव ।
- विया, स. ३, उ. ४, सु ८-११
द्रव्यानुयोग - (१)
प्र. भन्ते ! क्या वह वायुकाय उच्छित (उन्नत) पताका के आकार से गति करता है या पतित (पड़ी झुकी हुई) पताका के आकार से गति करता है ?
उ. गौतम ! वह उच्छितपताका और पतित-पताका इन दोनों के आकार से गति करता है।
प्र. भन्ते ! क्या वायुकाय एक दिशा में एक पताका के समान रूप बनाकर गति करता है अथवा दो दिशाओं में दो पताकाओं के समान रूप बनाकर गति करता है ?
उ. गौतम ! वह एक पताका के समान रूप बनाकर गति करता है, किन्तु दो दिशाओं में दो पताकाओं के समान रूप बनाकर गति नहीं करता है।
प्र. भन्ते ! उस समय क्या वह वायुकाय है या पताका है ? उ. गौतम ! वह वायुकाय है, किन्तु पताका नहीं है।
३०. बलाहक का स्त्री आदि रूपों के परिणमन का प्ररूपण
प्र. भन्ते ! क्या बलाहक (मेघ पंक्ति) एक बड़ा स्त्रीरूप यावत् स्यन्दमानिका (छोटी पालकी) रूप में परिणत होने में समर्थ है ?
उ. ही गौतम! ऐसा होने में समर्थ है।
प्र. भन्ते ! क्या बलाहक एक बड़े स्त्रीरूप में परिणत होकर अनेक योजन तक जाने में समर्थ है ?
उ. हाँ, गौतम ! वह ऐसा होने में समर्थ है।
प्र. भन्ते ! क्या वह बलाहक आत्मऋद्धि से गति करता है या परऋद्धि से गति करता है ?
उ. गौतम ! वह आत्मऋद्धि से गति नहीं करता, परऋद्धि से गति करता है।
उसी तरह वह आत्मकर्म (स्वक्रिया से) और आत्मप्रयोग से गति नहीं करता, किन्तु परकर्म से और परप्रयोग से गति करता है।
वह उच्छ्रितपताका या पतित पताका दोनों में से किसी एक के आकार रूप से गति करता है।
प्र. भन्ते ! उस समय क्या वह बलाहक है या स्त्री है ? उ. गौतम ! वह बलाहक है, स्त्री नहीं है।
इसी तरह बलाहक पुरुष, अश्व या हाथी नहीं है।
प्र. भन्ते ! क्या वह बलाहक, एक बड़े यान (शकट-गाड़ी) के रूप में परिणत होकर अनेक योजन तक जा सकता है ?
उ. गौतम ! जैसे स्त्री के सम्बन्ध में कहा, उसी तरह यान के सम्बन्ध में भी कहना चाहिए।
विशेष- यह यान के एक और चक्र (पहिया) वाला होकर भी चल सकता है और दोनों ओर चक्र वाला होकर भी चल सकता है।
इसी तरह युग्य, गिल्ली, दिल्लि शिविका और स्वन्तमानिका के रूपों के सम्बन्ध में भी जानना चाहिए।