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________________ विकुर्वणा अध्ययन प. जइ णं भंते ! बली वइरोयणिंदे वैरोयणराया एमहिड्ढीए जाव एवइयं च णं पभू विउव्वित्तए बलिस्स णं वइरोयणस्स सामाणियदेवा के महिड्ढिया जाव केवइयं णं पभू किकुवित्तए? उ. गोयमा ! एवं सामाणियदेवा, तावत्तीसा, लोकपालअग्गमहिसीओ य जहा चमरस्स णवर-साइरेगं जंबुद्दीवे जाव एगमेगाए अग्गमहिसीए देवीए इमे वुइए विसए जाव नो विउव्विस्संति वा। सेवं भंते ! सेवं भंते त्ति, तच्चे गोयमे वायुभूई अणगारे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता नच्चासन्ने जाव पज्जुवासइ। तए णं से दोच्चे गोयमे अग्गिभूई अणगारे समणे भगवं महावीरं वंदइ नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासि-- प. जइणं भंते ! बली वइरोयणिंदे वइरोयणराया एमहिड्ढीए जाव एवइयं च णं पभू विकुवित्तए धरणे णं भंते ! नागकुमारिंदे नागकुमारराया के महिड्ढीए जाव केवइयं चणं पभू विकुवित्तए? उ. गोयमा ! धरणे णं नागकुमारिंदे नागकुमारराया एमहिड्ढीए जाव से णं तत्थ चोयालीसाए भवणावाससयसहस्साणं, छहं सामाणियसाहस्सीणं, तायत्तीसाए तायत्तीसगाणं, चउण्डं लोगपालाणं, छह अग्गमहिसीणं सपरिवाराणं, तिण्हं परिसाणं, सत्तण्हं अणियाणं, सत्तण्हं अणियाहिवईणं, चउवीसाए आयरक्खदेवसाहस्सीणं अन्नेसिं च णं जाव विहरइ। एवइयं च णं पभू विउव्वित्तए से जहानामए जुवई जुवाणे जाव पभू केवलकप्पं जंबुद्दीवं जाव तिरियमसंखेज्जे दीवे-समुहे बहूहिँ नागकुमारीहिं जाव नो विउव्विस्सई प्र. भंते ! यदि वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि इतनी महाऋद्धि वाला है यावत् उसकी इतनी विकुर्वणा शक्ति है तो उस वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि के सामानिक देव कितनी बड़ी ऋद्धि वाले हैं, यावत् उनकी विकुर्वणाशक्ति कितनी है? उ. गौतम ! बलि के सामानिक देव, त्रायस्त्रिंशक देव एवं लोकपाल तथा अग्रमहिषियों की ऋद्धि आदि का वर्णन चमरेन्द्र के सामानिक देवों की तरह समझना चाहिए। विशेष-इनकी विकुर्वणा शक्ति सातिरेक जम्बूद्वीप के स्थल तक को भर देने की है यावत् प्रत्येक अग्रमहिषी की इतनी विकुर्वणाशक्ति विषयमात्र कही है यावत् वे विकुर्वणा करेंगी भी नहीं, यहां तक पूर्ववत् समझ लेना चाहिए। भंते ! जैसे आप कहते हैं, वह इसी प्रकार है, भंते ! यह इसी प्रकार है यों कहकर तृतीय गौतम ! वायुभूति अनगार ने श्रमण भगवान महावीर स्वामी को वंदन नमस्कार किया और वंदन नमस्कार करके न अतिदूर और न अतिनिकट रहकर यावत् वे पर्युपासना करने लगे। तत्पश्चात् द्वितीय गौतम (गोत्रीय) अग्निभूति अणगार ने श्रमण भगवान महावीर को वंदन नमस्कार किया वंदन नमस्कार करके इस प्रकार कहाप्र. भंते ! यदि वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि इस प्रकार की महाऋद्धि वाला है यावत् इतनी विकुर्वणा करने में समर्थ है, तो भंते ! नागकुमारेन्द्र नागकुमारराज धरण कितनी बड़ी ऋद्धि वाला है ? यावत् कितनी विकुर्वणा करने में समर्थ है? उ. गौतम ! वह नागकुमारेन्द्र नागकुमारराज धरणेन्द्र महाऋद्धि वाला है यावत् वह चवालीस लाख भवनावासों पर, छह हजार सामानिक देवों पर, तेतीस त्रायस्त्रिंशक देवों पर, चार लोकपालों पर, परिवार सहित छह अग्रमहिषियों पर, तीन परिषदाओं पर, सात सेनाओं पर, सात सेनाधिपतियों पर और चौबीस हजार आत्मरक्षक देवों पर तथा अन्य अनेक देवों और देवियों पर आधिपत्य आदि करता हुआ रहता है और इतनी विकुर्वणा करने में समर्थ है जैसे युवा पुरुष अपने हाथ से युवती स्त्री के हाथ को पकड़ता है। उसी प्रकार यावत् वह अपने द्वारा वैक्रियकृत बहुत से नागकुमार देवों और नागकुमारदेवियों से सम्पूर्ण जम्बूद्वीप को भरने में समर्थ है और तिर्यग्लोक के असंख्यात द्वीप समुद्रों जितने स्थल को भरने की शक्ति वाला है। परन्तु विकुर्वणा नहीं करेगा। धरणेन्द्र के सामानिक देव, त्रायस्त्रिंशक देव, लोकपाल और अग्रमहिषियों की ऋद्धि आदि का वर्णन चमरेन्द्र के वर्णन की तरह कह लेना चाहिए। विशेष-इन सबकी विकुर्वणा शक्ति संख्यात द्वीप समुद्रों के स्थल को भरने की समझनी चाहिए। इसी प्रकार स्तनितकुमारों पर्यन्त सभी भवनपतिदेवो वाणव्यंतर और ज्योतिष्कदेवों के सम्बन्ध में कहना चाहिए। विशेष-दक्षिण दिशा के सभी इन्द्रों के विषय में द्वितीय गौतम (गोत्रीय) अग्निभूति अनगार पूछते हैं और उत्तर दिशा के सभी इन्द्रों के विषय में तृतीय गौतम वायुभूति अनगार पूछते हैं। वा। सामाणिय-तायत्तीस-लोगपाल अग्गमहिसीओ य तहेव जहा चमरस्स। णवर-संखिज्जे दीव-समुद्दे भाणियव्वं । एवं जाव थणियकुमारा, वाणमंतर जोइसिया वि। णवरं-दाहिणिल्ले सव्वे अग्गीभूई पुच्छइ, उत्तरिल्ले सव्वे वाउभूई पुच्छइ।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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