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________________ शरीर अध्ययन ४०. ओरालियसरीरस्स संठाणं ४०. औदारिक शरीर का संस्थानप. ओरालियसरीरेणं भंते ! किं संठिए पण्णत्ते? प्र. भंते ! औदारिक शरीर का संस्थान किस प्रकार का कहा गया है? उ. गोयमा ! णाणासंठाणसंठिएपण्णत्ते। उ. गौतम ! वह नाना संस्थान वाला कहा गया है। - प. एगिंदिय ओरालियसरीरेणं भंते ! किं संठिए पण्णत्ते? प्र. भंते ! एकेन्द्रिय औदारिक शरीर संस्थान (आकार) किस प्रकार का कहा गया है? उ. गोयमा ! णाणासंठाणसंठिए पण्णत्ते। उ. गौतम ! वह नाना संस्थान वाला कहा गया है। प. पुढविक्काइय एगिदिय ओरालियसरीरे णं भंते ! किं प्र. भंते ! पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय औदारिक शरीर का संस्थान संठाण संठिए पण्णत्ते? किस प्रकार का कहा गया है? उ. गोयमा ! मसूरचंदसंठाणसंठिए पण्णत्ते।' उ, गौतम ! वह मसूर-चन्द्र अर्थात् मसूर की दाल जैसे संस्थान वाला कहा गया है। एवं सुहुम पुढविक्काइयाण वि। इसी प्रकार सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों का भी संस्थान कहना चाहिए। बायराण विएवं चेव। बादर पृथ्वीकायिकों का भी इसी प्रकार समझना चाहिए। पज्जत्तापज्जत्ताण वि एवं चेव। पर्याप्तक और अपर्याप्तक का भी इसी प्रकार समझना चाहिए। प. आउक्काइय एगिंदिय ओरालियसरीरे णं भंते ! किं प्र. भंते ! अकायिक एकेन्द्रिय औदारिक शरीर का संस्थान किस संठाण संठिए पण्णत्ते? प्रकार का कहा गया है? उ. गोयमा ! थिबुगबिंदुसंठाणसंठिए पण्णत्ते। , गौतम ! स्तिबुकबिन्दु अर्थात् स्थिर जलबिन्दु जैसा कहा गया है। एवं सुहुम बायर पज्जत्तापज्जत्ताण वि।२ इसी प्रकार का संस्थान अप्कायिकों के सूक्ष्म, बादर, पर्याप्तक और अपर्याप्तक शरीर का समझना चाहिए। प. तेउक्काइय-एगिंदिय ओरालियसरीरे णं भंते ! किं संठाण प्र. भंते ! तेजस्कायिक एकेन्द्रिय औदारिक शरीर का संस्थान ___संठिए पण्णते? किस प्रकार का कहा गया है? उ. गोयमा ! सूईकलावसंठाणसंठिए पण्णत्ते। . उ. गौतम ! तेजस्कायिकों के शरीर का संस्थान सूइयों के ढेर के जैसा कहा गया हैं। एवं सुहुम-बायर-पज्जत्तापज्जत्ताण वि।३ इसी प्रकार सूक्ष्म, बादर, पर्याप्तक और अपर्याप्तक का भी समझना चाहिए। वाउक्काइयाणं पडागासंठाणसंठिए पण्णत्ते। वायुकायिक जीवों का संस्थान पताका के समान है। एवं सुहुम-बायर-पज्जत्तापज्जताण वि।। इसी प्रकार का संस्थान सक्ष्म. बादर पर्याप्तक और अपर्याप्तक का भी समझना चाहिए। वणस्सइकाइयाणं णाणासंठाणसंठिए पण्णत्ते। वनस्पतिकायिकों के शरीर का संस्थान नाना प्रकार का कहा गया है। एवं सुहुम-बायर-पज्जत्तापज्जत्ताण वि।५ इसी प्रकार सूक्ष्म, बादर, पर्याप्तक और अपर्याप्तक का भी समझना चाहिए। प. बेइंदिय-ओरालियसरीरे णं भंते ! किं संठाणसंठिए प्र. भंते ! द्वीन्द्रियऔदारिक शरीर का संस्थान किस प्रकार का पण्णत्ते? कहा गया है? उ. गोयमा ! हुंडसंठाणसंठिए पण्णत्ते। उ. गौतम ! वह हुंडक संस्थान वाला कहा गया है। एवं पज्जत्तापज्जत्ताण वि।६ इसी प्रकार इनके पर्याप्तक और अपर्याप्तक का भी संस्थान कहना चाहिए। एवं तेइंदिय-चउरिंदियाण वि। इसी प्रकार त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय का संस्थान भी समझना चाहिए। प. तिरिक्खजोणिय-पंचेंदिय-ओरालियसरीरे णं भंते ! किं प्र. (१) भंते ! तिर्यञ्च योनिक पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर का संठाण संठिए पण्णत्ते? संस्थान किस प्रकार का कहा गया है? १. जीवा.पडि.१.सु. १३(४) ४. जीवा. पडि.१,सु.२६ ७. जीवा. पडि.१,सु.२९ २. जीवा. पडि.१,सु.१६-१७ ५. अणित्थं संठिया-जीवा.पडि.१,सु.१८ ८. जीवा. पडि.१,सु.३० ३. जीवा. पडि.१,सु.२५ ६. जीवा. पडि.१.सु.२८
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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