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________________ ४३३ शरीर अध्ययन प. आणयदेवस्स णं भंते ! मारणंतियसमुग्धाएणं समोहयस्स तेयगसरीरस्स के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! सरीरपमाणमेत्ता विक्खंभ बाहल्लेणं, आयामेणं जहण्णेण अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेण अहे जाव अहेलोइयगामा, तिरियं जाव मणूसखेत्ते। उड्ढं जाव अच्चुओ कप्पो। एवं जाव आरणदेवस्स। प्र. भंते ! मारणान्तिक समुद्घात से समवहत आनत देव के तैजस् शरीर की अवगाहना कितनी बड़ी कही गई है? उ. गौतम ! विष्कम्भ और वाहुल्य की अपेक्षा से शरीर प्रमाण होती है, आयाम की अपेक्षा से जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की, उत्कृष्ट नीचे की ओर अधोलौकिक ग्राम तक की, तिरछी मनुष्यक्षेत्र तक की, ऊपर अच्युतकल्प तक की होती है। इसी प्रकार आरण देव पर्यन्त तक की अवगाहना समझ लेनी चाहिए। अच्युतदेव की भी इन्हीं के समान होती है। विशेष-ऊपर अपने-अपने विमानों तक की अवगाहना होती है। प्र. भंते ! मारणान्तिक समुद्घात से समवहत ग्रैवेयक देव के तैजस् शरीर की अवगाहना कितनी बड़ी कही गई है? अच्चुयदेवस्स विएवं चेव। णवरं-उड्ढे जाव सगाई विमाणाई। प. गेवेन्जगदेवस्स णं भंते ! मारणंतियसमुग्घाएणं समोहयस्स तेयगसरीरस्स के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! सरीरपमाणमेत्ता विक्खंभ बाहल्लेणं, आयामेणं जहण्णेण विज्जाहरसेढीओ, उक्कोसेण जाव अहेलोइयगामा, तिरियं जाव मणूसखेत्ते, उड्ढं जाव सयाई विमाणाई। अणुत्तरोववाइयस्स वि एवं चेव। -पण्ण.प.२१,सु. १५४५-१५५१ ३६. कम्मग सरीरस्स ओगाहणा जहा तेयगा सरीरस्स ओगाहणा भणिया तहेव निरवसेसं भाणियव्वं जाव अणुत्तरोववाइय त्ति। -पण्ण. प. २१, सु.१५५२ ३७. सिद्धगयस्स जीवस्स उक्किट्ठा जीवपएसोगाहणा पंचधणुसइयस्स णं अंतिमसारीरियस्स सिद्धिगयस्स साइरेगाणि तिण्णि धणुसयाणि जीवप्पदेसोगाहणा पण्णत्ता। -सम.सम.१०४ सु.१३ ३८. चउवीसदंडएसुओगाहणठाणाप. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु एगमेगंसि निरयावासंसि नेरइयाणं केवइया ओगाहणाठाणा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! असंखेज्जा ओगाहणाठाणा पण्णत्ता,तं जहा जहण्णिया ओगाहणा, पएसाहिया जहणिया ओगाहणा, दुप्पएसाहिया जहणिया ओगाहणा जाव असंखेज्जपएसाहिया जहणिया ओगाहणा, तप्पाउग्गुक्कोसिया ओगाहणा। एएणं गमेणं जाव अणुत्तरा। -विया.स.१.उ.५,सु.१०(३६) उ. गौतम ! विष्कम्भ और बाहल्य की अपेक्षा से शरीर प्रमाण मात्र होती है, आयाम की अपेक्षा से जघन्य विद्याधर श्रेणियों तक की और उत्कृष्ट नीचे की ओर अधोलौकिक ग्राम तक की, तिरछी मनुष्य क्षेत्र तक की, ऊपर अपने अपने विमानों तक की अवगाहना होती है। अनुत्तरोपपातिक देव की तैजस् शरीरावगाहना भी इसी प्रकार समझनी चाहिए। ३६. कार्मण शरीर की अवगाहना जैसे तैजस् शरीर की अवगाहना का कथन किया उसी प्रकार अनुत्तरौपपातिक देवों पर्यन्त (कार्मण शरीर की अवगाहना का) कथन करना चाहिए। ३७. सिद्धगत जीव की उत्कृष्ट जीव प्रदेशावगाहना पांच सौ धनुष की अवगाहना वाले चरमशरीरी जीवों के सिद्ध होने पर उनके जीव प्रदेशों की अवगाहना कुछ अधिक तीन सौ धनुष की कही गई है। ३८. चौबीस दण्डकों में अवगाहना स्थानप्र. भंते ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नारकवासों में से एक-एक नारकावास में रहने वाले नारकों के अवगाहना स्थान कितने कहे गए हैं? उ. गौतम ! उनके अवगाहना स्थान असंख्यात कहे गए हैं, यथा जघन्य अवगाहना, प्रदेशाधिक जघन्य अवगाहना, द्विप्रदेशाधिक जघन्य अवगाहना यावत् असंख्यातप्रदेशाधिक जघन्य अवगाहना, यथायोग्य उत्कृष्ट अवगाहना इसी प्रकार के गमक अनुत्तर विमान पर्यन्त कहना चाहिए। १. (क) सम.सु. १५२ (ख) सम.सु.१५५
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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