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________________ ४३० जहा वाणमंतराणं तहा जोइसियाणं'। द्रव्यानुयोग-(१) जितनी अवगाहना वाणव्यन्तरों की है, उतनी ही ज्योतिष्क देवों की है। प्र. भंते ! सौधर्मकल्प के देवों की शरीरावगाहना कितनी कही गई है? प. सोहम्मयदेवाणं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता,तं जहा १.भवधारणिज्जा य,२.उत्तरवेउव्विया य। १. तत्थ णं जा सा भवधारणिज्जा सा जहण्णेण अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेण सत्त रयणीओ। २. तत्थ णं जा सा उत्तरवेउव्विया सा जहण्णेण अंगुलस्स संखज्जइभागं, उक्कोसेण जोयणसयसहस्सं। जहा सोहम्मे तहाईसाणे कप्पे विभाणियव्वं। प. सणंकुमारे णं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? .उ. गोयमा ! भवधारणिज्जा जहण्णेण अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेण छ रयणीओ३। उत्तरवेउव्विया जहा सोहम्मे। जहा सणंकुमारे तहा माहिंदे। प. बंभलोग-लंतएसु णं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! भवधारणिज्जा जहण्णेण अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेण पंच रयणीओ। उ. गौतम ! दो प्रकार की कही गई है, यथा १. भवधारणीया, २. उत्तरवैक्रिया। १. इनमें से भवधारणीय शरीर की जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट सात रलि है। २. उत्तरवैक्रिय शरीर की अवगाहना जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग और उत्कृष्ट एक लाख योजन प्रमाण है। ईशानकल्प में भी देवों की अवगाहना का प्रमाण सौधर्मकल्प जितना ही जानना चाहिए। प्र. भंते ! सनत्कुमार कल्प के देवों की शरीरावगाहना कितनी कही गई है? उ. गौतम ! भवधारणीया शरीरावगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट छह रलि प्रमाण है। उत्तरवैक्रिया अवगाहना सौधर्म कल्प के बराबर है। सनत्कुमारकल्प जितनी अवगाहना माहेन्द्रकल्प में जाननी चाहिए। . प्र. भंते ! ब्रह्मलोक और लान्तक कल्पों में शरीरावगाहना कितनी कही गई है? उ. गौतम ! भवधारणीया शरीर की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट अवगाहना पांच रनि प्रमाण है। उत्तरवैक्रिया अवगाहना का प्रमाण सौधर्मकल्पवत् है। प्र. भंते ! महाशुक्र और सहस्रार कल्पों में शरीरावगाहना कितनी कही गई है? उ. गौतम ! भवधारणीया अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट चार रनि प्रमाण है। उत्तरवैक्रिया शरीरावगाहना सौधर्मकल्प के समान ही है। प्र. भंते ! आनत-प्राणत-आरण-अच्युत कल्पों में शरीरावगाहना कितनी कही गई है? उ. गौतम ! भवधारणीया अवगाहना जघन्य अंगुल के , असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट तीन रनि प्रमाण है। उत्तरक्रिया शरीरावगाहना का प्रमाण सौधर्म कल्पवत् है। प्र. भंते ! ग्रैवेयक देवों की शरीरावगाहना कितनी कही गई है? उत्तरवेउव्विया जहा सोहम्मे। प. महासुक्कसहस्सारेसु णं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! भवधारणिज्जा जहण्णेण अंगुलस्स असंखेज्जइ भाग, उक्कोसेण चत्तारि रयणीओ, उत्तरवेउव्विया जहा सोहम्मे। प. आणत-पाणत-आरण-अच्चुएसु णं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! भवधारणिज्जा जहण्णेण अंगुलस्स असंखेज्जइ भागं, उक्कोसेण तिण्णि रयणीओ५। उत्तरवेउब्विया जहा सोहम्मे। प. गेवेज्जयदेवाणं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! गेवेज्जयदेवाणं एगे भवधारणिज्जए सरीरए, उ. गौतम ! ग्रैवेयक देवों के एकमात्र भवधारणीया शरीर ही होता है। १. (क) जीवा. पडि.१ सु.४२ (ख) ठाणं अ.७ सु.५७८ २. ठाणं अ.७सु.५७८ ३. ठाणं अ.६ सु. ५३२/२ ४. ठाणं.अ.४, उ.४,सु. ३७५/२ ५. ठाणं.अ.३, उ.२,सु.१५९
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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