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________________ ४०४ द्रव्यानुयोग-(१) - प्र. यदि कर्मभूमिक गर्भज मनुष्य पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है तो उ. प. जइ कम्मभूमग-गब्भवक्कंतिय-मणूस-पंचेंदिय वेउव्वियसरीरेकिं संखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतिय-मणूसपंचेंदिय-वेउव्वियसरीरे, असंखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतिय-मणूसपंचेंदिय-वेउव्वियसरीरे? गोयमा ! संखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतियमणूस-पंचेंदिय-वेउव्वियसरीरे, णो असंखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतिय-मणूस -पंचेंदिय-वेउव्वियसरीरे। प. जइ संखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतिय-मणूस पंचेंदिय-वेउव्वियसरीरेकिं पज्जत्तय-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमगगब्भवक्कंतिय-मणूस-पंचेंदिय-वेउव्वियसरीरे, अपज्जत्तय-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतिय -मणूस-पंचेंदिय-वेउव्वियसरीरे? उ. गोयमा ! पज्जत्तय संखेज्जवासाउय-कम्मभूमग गब्भवक्कंतिय-मणूस-पंचेंदिय-वेउब्वियसरीरे, णो अपज्जत्तय-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमग गब्भवक्कंतिय-मणूस-पंचेंदिय-वेउव्वियसरीरे। प. जइ देवपंचेंदिय-वेउव्वियसरीरे किं भवणवासि देवपंचेंदिय-वेउब्वियसरीरे जाव वेमाणिय-देवपंचेंदिय वेउब्वियसरीरे? उ. गोयमा ! भवणवासि-देव पंचेंदिय-वेउव्वियसरीरे वि जाव वेमाणियदेव पंचेंदिय-वेउव्वियसरीरे वि। क्या संख्येय वर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्य पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है या असंख्येय वर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्य पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है? गौतम ! संख्येय वर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्य पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है, किन्तु असंख्येय वर्षायुष्क कर्मभूमिक पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर नहीं होता है। यदि संख्येय वर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्य पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है तो क्या पर्याप्तक संख्येय वर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्य पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है या अपर्याप्तक संख्येय वर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है? उ. गौतम ! पर्याप्तक संख्येय वर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्य पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है, किन्तु अपर्याप्तक संख्येय वर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्य पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर नहीं होता है। प्र. यदि देव पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है, तो क्या भवनवासी देव पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है यावत् वैमानिक देव पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है? उ. गौतम ! भवनवासी देव पंचेन्द्रियों के भी वैक्रिय शरीर होता है यावत् वैमानिक देव पंचेन्द्रियों के भी वैक्रिय शरीर होता प. जइ भवणवासि-देवपंचेंदिय-वेउव्वियसरीरे किं असुरकुमार-भवणवासि देव पंचेंदिय-वेउव्वियसरीरे जाव थणियकुमार-भवणवासि-देवपंचेंदिय वेउव्वियसरीरे? उ. गोयमा ! असुरकुमार जाव थणियकुमार भवणवासि-देव पंचेंदिय-वेउव्वियसरीरे वि। प. जइ असुरकमार-भवणवासिदेवपंचेंदिय-वेउव्वियसरीरे किं पज्जत्तय-असुरकुमार भवणवासिदेव पंचेंदिय वेउव्वियसरीरे? अपज्जत्तय असुरकुमार भवणवासि देव पंचेंदिय वेउव्वियसरीरे? उ. गोयमा ! पज्जत्तय असुरकुमार भवणवासि देवपंचेंदिय वेउव्वियसरीरे वि, अपज्जत्तय असुरकुमार भवणवासि देव पंचेंदिय वेउव्विय सरीरे वि। एवं जाव थणियकुमारे विणं दुगओ भेदो। यदि भवनवासी देव पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है, तो क्या असुरकुमार भवनवासी देव पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है यावत् स्तनितकुमार भवनवासी देव पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है? उ. गौतम ! असुरकुमार भवनवासी देव पंचेन्द्रियों के भी वैक्रिय शरीर होता है यावत् स्तनितकुमार भवनवासी देव पंचेन्द्रियों के भी वैक्रिय शरीर होता है। यदि असुरकुमार भवनवासी देव पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है तो क्या पर्याप्तक असुरकुमार भवनवासी देव पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है या अपर्याप्तक असुरकुमार भवनवासी देव पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है? उ. गौतम ! पर्याप्तक असुरकुमार भवनवासी देव पंचेन्द्रियों के भी वैक्रिय शरीर होता है, अपर्याप्तक असुरकुमार भवनवासी देव पंचेन्द्रियों के भी वैक्रिय शरीर होता है। इसी प्रकार स्तनितकुमारों पर्यन्त के दोनों भेदों के लिए जानना चाहिए।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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