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________________ ४०० प. परिसप्प-थलयर-तिरिक्खजोणिय-पंचेंदिय ओरालियसरीरेणं भंते ! कइविहे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा१. उरपरिसप्प-थलयर-तिरिक्खजोणिय-पंचेंदिय ओरालियसरीरे य, २. भुयपरिसप्प-थलयर-तिरिक्खजोणिय-पंचेंदिय___ओरालियसरीरे य। प. उरपरिसप्प-थलयर-तिरिक्खजोणिय-पंचेंदिय ओरालियसरीरेणं भंते ! कइविहे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते,तं जहा१. सम्मुच्छिम-उरपरिसप्प-थलयर-तिरिक्खजोणिय पंचेंदिय ओरालियसरीरे य, २. गब्भवक्कंतिय-उरपरिसप्प-थलयर-तिरिक्ख जोणिय-पंचेन्दिय ओरालियसरीरे य। सम्मुच्छिमे दुविहे पण्णत्ते, तंजहा१. पज्जत्तय-सम्मुच्छिम-उरपरिसप्प-थलयर तिरिक्खजोणिय-पंचेंदिय-ओरालियसरीरे य, २. अपज्जत्तय-सम्मुच्छिम-उरपरिसप्प-थलयर तिरिक्खजोणिय-पंचेंदिय-ओरालियसरीरे य। एवं गब्भवक्कंतिय-उरपरिसप्प-चउक्कओ भेदो। द्रव्यानुयोग-(१) प्र. भंते ! परिसर्प स्थलचर तिर्यञ्चयोनिक पंचेंद्रिय औदारिक शरीर कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! वह दो प्रकार का कहा गया है, यथा१. उर:परिसर्प स्थलचर तिर्यञ्चयोनिक पंचेंद्रिय औदारिक शरीर, २. भुजपरिसर्प स्थलचर तिर्यञ्चयोनिक पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर। प्र. भंते ! उरःपरिसर्प स्थलचर तिर्यञ्चयोनिक पंचेंद्रिय औदारिक शरीर कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! वह दो प्रकार का कहा गया है, यथा१. सम्मूर्छिम उरःपरिसर्प स्थलचर तिर्यञ्चयोनिक पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर, २. गर्भज उरःपरिसर्प स्थलचर तिर्यञ्चयोनिक पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर। सम्मूर्छिम दो प्रकार का कहा गया है, यथा१. पर्याप्तक सम्मूर्छिम उरःपरिसर्प स्थलचर तिर्यञ्चयोनिक पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर, २. अपर्याप्तक-सम्मूर्छिम-उर परिसर्प-स्थलचर तिर्यञ्चयोनिक पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर। इसी प्रकार गर्भज उरःपरिसर्प के भी चार भेद समझ लेने चाहिए। इसी प्रकार भुजपरिसर्प पर्याप्तक और अपर्याप्तक के भी चार भेद समझ लेने चाहिए। खेचर (तिर्यञ्चयोनिक पंचेंद्रिय औदारिक शरीर) भी दो प्रकार कहा गया है, यथा१. सम्मूर्छिम, २. गर्भज। सम्मूर्छिम दो प्रकार का कहा गया है, यथा१. पर्याप्तक, २. अपर्याप्तक। गर्भज भी पर्याप्तक और अपर्याप्तक कहा गया है। प्र. भंते ! मनुष्य पंचेंद्रिय औदारिक शरीर कितने प्रकार का कहा ____ गया है? उ. गौतम ! वह दो प्रकार का कहा गया है, यथा १. सम्मूर्छिम मनुष्य पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर, २. गर्भज मनुष्य पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर। प्र. भंते ! गर्भज मनुष्य पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! वह दो प्रकार का कहा गया है, यथा १. पर्याप्तक गर्भज मनुष्य पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर, एवं भुयपरिसप्पा वि। खहयरा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा १. सम्मुच्छिमा य, २. गब्भवक्कंतिया य। सम्मुच्छिमा दुविहा पण्णत्ता,तं जहा१. पज्जत्ता य, , २. अपज्जत्ता य। गब्भवक्कंतिया विपज्जत्ता य,अपज्जत्ताय। प. मणूसपंचेंदिय-ओरालियसरीरेणं भंते ! कइविहे पण्णते? उ. गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा १. सम्मुच्छिम-मणूस-पंचेंदिय-ओरालियसरीरे य, २. गब्भवक्कंतिय-मणूस-पंचेंदिय-ओरालियसरीरे य। प. गब्भवक्कंतिय-मणूस-पंचेंदिय-ओरालियसरीरे णं भंते! कइविहे पण्णत्ते? उ. गोयमा !दुविहे पण्णत्ते,तं जहा१. पज्जत्तय-गब्भवक्कंतिय-मणूस-पंचेंदिय ओरालियसरीरे य, २. अपंज्जत्तय-गब्भवक्कंतिय-मणूस-पंचेंदिय ओरालियसरीरेय। -पण्ण.प.२१,सु. १४७६-१४८७ २. अपर्याप्तक गर्भज मनुष्य पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर। १. सम.सु.१५२.
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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