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________________ ३९३ उ. गौतम ! केवली-अनाहारक दो प्रकार के कहे गए है, यथा १.सिद्धकेवली-अनाहारक २. भवस्थकेवली-अनाहारक। आहार अध्ययन उ. गोयमा ! केवलिअणाहारगे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा १. सिद्धकेवलिअणाहारगे य, २. भवत्थकेवलि अणाहारगे य। प. सिद्धकेवलिअणाहारगे णं भंते ! सिद्धकेवलिअणाहारगे त्तिकालओ केवचिर होइ? उ. गोयमा ! साइएअपज्जवसिए। प. भवत्थकेवलिअणाहारगे णं भंते ! भवत्थकेवलि- अणाहारगे त्तिकालओ केवचिर होइ? उ. गोयमा ! भवत्थकेवलिअणाहारगे दुविहे पण्णत्ते, तंजहा१. सजोगिभवत्थकेवलिअणाहारगे य, २. अजोगिभवत्थकेवलिअणाहारगे य। प. सजोगिभवत्थकेवलिअणाहारगे णं भन्ते ! सजोगि भवत्थकेवलिअणाहारगे त्ति कालओ केवचिर होइ? प्र. भन्ते ! सिद्धकेवली-अनाहारक, सिद्धकेवली-अनाहारक के रूप में कितने काल तक रहता है ? उ. गौतम !(वह) सादि-अपर्यवसित रहता है। प्र. भन्ते ! भवस्थकेवली-अनाहारक, भवस्थकेवली-अनाहारक रूप में कितने काल तक रहता है। उ. गौतम ! भवस्थकेवली-अनाहारक दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. सयोगि-भवस्थकेवली-अनाहारक, २. अयोगि-भवस्थकेवली-अनाहारक। प्र. भन्ते ! सयोगि-भवस्थकेवली-अनाहारक, सयोगि भवस्थकेवली अनाहारक के रूप में कितने काल तक रहता है? उ. गौतम ! अजघन्य अनुत्कृष्ट तीन समय तक रहता है। प्र. भन्ते ! अयोगि भवस्थकेवली अनाहारक, अयोगि भवस्थकेवली अनाहारक रूप में कितने काल तक रहता है? उ. गोयमा ! अजहण्णमणुक्कोसेणं तिण्णि समया। प. अजोगिभवत्थकेवलिअणाहारगे णं भन्ते ! अजोगि__भवत्थकेवलिअणाहारगे त्ति कालओ केवचिरं होइ? उ. गौतम !जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त तक रहता उ. गोयमा !जहण्णेण वि, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्त। -पण्ण. प.१८, सु.१३६४-१३७३ ३७. आहारगाणाहारगाणं अंतरकाल परूवणं प. छउमत्थआहारगस्सणं भंते ! केवइयं कालं अंतर होइ? ३७. आहारकों अनाहारकों के अन्तर काल का प्ररूपण प्र. भन्ते ! छद्मस्थ आहारक का अन्तर काल कितना कहा गया है? उ. गोयमा !जहण्णेण एक्कं समय, उक्कोसेण दो समया। केवलिआहारगस्स अंतरं अजहण्णमणुक्कोसेणं तिण्णि समया। छउमत्थअणाहारगस्स अंतरं जहण्णेणं खुड्डागभवग्गहणं दुसमयूणं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं जाव अंगुलस्स असंखेज्जइभाग। . प. सजोगि भवत्थकेवलि अणाहारगस्स णं भंते ! केवइयं कालं अंतर होइ? उ. गोयमा !जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं। उ. गौतम ! जघन्य एक समय उत्कृष्ट दो समय। केवली आहारक का अन्तर न जघन्य न उत्कृष्ट तीन समय का है। छद्मस्थ अनाहारक का अन्तर जघन्य दो समय कम क्षुल्लक भवग्रहण जितना है। उत्कृष्ट असंख्यातकाल यावत् अंगुल के असंख्यातवें भाग के प्रदेशों प्रमाण है। प्र. भन्ते ! सयोगि भवस्थ केवली अनाहारक का अन्तर काल कितना कहा गया है? उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त तक रहता है। अयोगि भवस्थकेवली अनाहारक का अन्तर नहीं है। सादि अपर्यवसित सिद्ध केवली अनाहारक का कोई अन्तर .. . नहीं है। ३८. आहारकों अनाहारकों का अल्पबहुत्व: प्र. भन्ते ! इन आहारक और अनाहारकों में से कौन किनसे अल्प __यावत् विशेषाधिक है? ' उ. गौतम !१. सबसे अल्प अनाहारक जीव हैं, २. (उनसे) आहारक जीव असंख्यातगुणे हैं। २. जीवा. पडि.९, सु. २३४ अजोगिभवत्थकेवलिअणाहारगस्स णथि अंतरं। सिद्धकेवलिअणाहारगस्स साइयस्स अपज्जवसियस्स , णत्थि अंतर। -जीवा. पडि.९,सु.२३४ ३८. आहारगाणाहारगाणं अप्पबहुत्तं :प. एएसि णं भंते ! आहारगाणं अणाहारगाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा? उ. गोयमा !१. सव्वत्थोवा जीवा अणाहारगा, २. आहारगा असंखेज्जगुणा। -पण्ण. प. ३, सु. २६३ १. जीवा. पडि.९, सु.२३४ .
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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