SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 483
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३७६ २३. चउवीसदंडएसु एगेंदियाइसरीराहारकरण परूवणं प. दं. १ रइयाणं भंते! किं एगिदियसरीराई आहारेति जाव पंचेंदियसरीराई आहारेंति ? उ. गोयमा ! पुव्वभावपण्णवणं पडुंच्च एगिंदियसरीराई पि आहारेति जाब पंचेदियसरीराई पि आहारैति पपण्णभावपण्णवणं पडुच्च णियमा पवेदियसरीराई आहारेति । ६. २११. एवं जाय धणियकुमारा । प. दं. १२. पुढविकाइया णं भंते! किं एगिंदियसरीराई आहारेंति जाव पंचेंदियसरीराई आहारेंति ? उ. गोवमा ! पुव्यभावपण्णवर्ण पहुच्च एवं चेव, पडुप्पण्णभावपण्णवणं पडुच्च णियमा एगिंदियसरीराई आहारैति । दं. १३-१६. आउकाइयाणं जाव वणप्फइकाइयाणं एव चेव । दं. १७. बेइंदिया पुव्वभावपण्णवणं पडुच्च एवं चेव, पडुप्पण्णभावपण्णवणं पडुच्च णियमा बेइंदियसरीराई आहारेंति । दं. १८-१९. एवं जाव चउरिंदिया जाव पुव्वभावपण्णवणं पडुच्च, पडुप्पण्णभावपण्णवणं पडुच्च णियमा जस्स जइ इंदियाई तरस तह इंदियसरीराई ते आहारेति । दं. २०-२४. सेसा जहा णेरड्या जाय वैमाणिया? - पण्ण. प. २८, उ. १, सु. १८५३-१८५८ २४. चउवीसदंडएसु लोमाहार- पक्खेवाहार परूवणंप. णेरइया णं भंते! किं लोमाहारा, पक्खेवाहारा ? उ. गोयमा ! लोमाहारा, णो पक्खेवाहारा। एवं एगिंदिया सब्बे देवा य माणिवया जाय बेमाणिया । बेदिया जाव मणूसा लोमाहारा वि, पक्खेवाहारा वि। - पण्ण. प. २८, उ. १, सु. १८५९-१८६१ २५. चउवीसदंडएसु ओयाहारं मणभक्खणं च परूवणंप. णेरइया णं भंते! किं ओयाहारा, मणभक्खी ? द्रव्यानुयोग - (१) २३. चौबीस दण्डकों में एकेन्द्रियादि जीवों के शरीरों का आहार करने का प्ररूपण प्र. दं. १ भन्ते क्या नैरयिक एकेन्द्रिय शरीरों का यावत् पंचेन्द्रिय शरीरों का आहार करते हैं ? उ. गौतम ! पूर्वभाव प्रज्ञापना की अपेक्षा से वे एकेन्द्रिय शरीरों का भी आहार करते हैं यावत् पंचेन्द्रिय शरीरों का भी आहार करते हैं। वर्तमान भाव प्रज्ञापना की अपेक्षा से नियम से वे पंचेन्द्रिय शरीरों का आहार करते हैं। दं. २- ११. असुरकुमारों से स्तनित कुमारों पर्यन्त इसी प्रकार समझना चाहिए। प्र. दं. १२. भन्ते । पृथ्वीकायिक जीव क्या (एकेन्द्रिय शरीरों) का यावत् पंचेन्द्रिय शरीरों का आहार करते हैं ? उ. गौतम ! पूर्वभाव प्रज्ञापना की अपेक्षा से नारकों के समान वे एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक का पूर्ववत् आहार करते हैं। वर्तमान भाव प्रज्ञापना की अपेक्षा से नियमतः वे एकेन्द्रिय शरीरों का आहार करते हैं। दं. १३-१६. अप्काय से वनस्पतिकाय पर्यन्त इसी प्रकार है। दं. १७. द्वीन्द्रिय जीवों के सम्बन्ध में पूर्वभाव प्रज्ञापना की अपेक्षा से इसी प्रकार कहना चाहिए। वर्तमान भाव प्रज्ञापना की अपेक्षा से वे नियमतः दीन्द्रिय शरीरों का आहार करते हैं, दं. १८-१९. इसी प्रकार चतुरिन्द्रिय पर्यन्त पूर्वभाव प्रज्ञापना की अपेक्षा से पूर्ववत् कथन करना चाहिए। वर्तमान भाव प्रज्ञापना की अपेक्षा से जिसके जितनी इन्द्रियाँ हैं, उतनी ही इन्द्रियों वाले शरीर का आहार करते हैं। दं. २०-२४. शेष वैमानिकों पर्यन्त का कथन नैरयिकों के समान जानना चाहिए। २४ चौबीस दण्डकों में लोमाहार और प्रक्षेपाहार का प्ररूपणप्र. भन्ते ! नारक जीव लोमाहारी हैं या प्रक्षेपाहारी हैं ? उ. गौतम ! वे लोमाहारी हैं, प्रक्षेपाहारी नहीं हैं। इसी प्रकार सभी एकेन्द्रिय जीवों और वैमानिकों पर्यन्त सभी देवों के लिए जानना चाहिए। द्वीन्द्रियों से मनुष्यों पर्यन्त लोमाहारी भी हैं प्रक्षेपाहारी भी हैं। २५. चौबीस दण्डकों में ओज आहार और मनोभक्षण का प्ररूपणप्र. भन्ते ! नैरयिक जीव ओज-आहारी होते हैं या मनोभक्षी होते हैं ? उ. गौतम ! वे ओज-आहारी होते हैं, मनोभक्षी नहीं होते हैं। इसी प्रकार सभी औदारिक शरीरधारी जीव भी ओज-आहार वाने होते हैं। उ. गोयमा ! ओयाहारा, णो मणभक्खी । एवं सव्वे ओरालियसरीरा वि । देवा सव्वे जाव वेमाणिया ओयाहारा वि मणभक्खी वि। १. (क) तेसि णं देवाणं बत्तीस वाससहस्सेहिं आहारट्ठे समुप्पज्जइ । सम. सम. ३२, सु. १३ असुरकुमारों से वैमानिकों पर्यन्त सभी प्रकार के देव ओज-आहारी भी होते हैं और मनोभक्षी भी होते हैं। (ख) सम. सम. ३३, सु. १३
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy