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________________ आहार अध्ययन ३७५ तेसि णं देवाणं चउद्दसहिं वाससहस्सेहिं आहारट्ठे समुप्पज्जइ। -सम. सम. १४, सु.१५, १७ १५. जे देवा णंदं सुणंदं णंदावत्तं णंदप्पभं णंदकंतं णंदवण्णं णंदलेसं णंदज्झयं णंदसिंग णंदसिट्ठ णंदकूडं णंदुत्तरवडेंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णातेसि णं देवाणं पण्णरसहिं वाससहस्सेहिं आहारट्ठे समुप्पज्जइ। _ -सम. सम.१५, सु.१३,१५ १६. जे देवा आवत्तं वियावत्तं नंदियावत्तं महाणंदियावत्तं अंकुसं अंकुसपलंबं भदं सुभदं महाभदं सव्वओभर्द भद्दुत्तरवडेंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णातेसि णं देवाणं सोलसवाससहस्सेहिं आहारट्ठे समुप्पज्जइ। -सम. सम.१६, सु.१३,१५ १७. जे देवा सामाणं सुसामाणं महासामाणं पउमं महापउमं कुमुदं महाकुमुदं नलिणं महानलिणं पोंडरीअं महापोंडरीअं सुक्कं महासुक्कं सीहं सीओवकंतं सीहवीयं भाविअं विमाणं देवत्ताए उववण्णातेसि णं देवाणं सत्तरसहिं वाससहस्सेहिं आहारट्ठे समुप्पज्जइ। -सम. सम. १७, सु. १८,२० १८. जे देवा कालं सुकालं महाकालं अंजणं रिट्ठ सालं समाणं दुमं महादुमं विसालं सुसालं पउमं पउमगुम्म कुमुद कुमुदगुम्म नलिणं नलिणगुम्म पुंडरीअं पुंडरीयगुम्म सहस्सारवडेंसग विमाणं देवत्ताए उववण्णातेसि णं देवाणं अट्ठारसहिं वाससहस्सेहिं आहारट्ठे समुप्पज्जइ। -सम. सम.१८, सु.१५,१७ १९. जे देवा आणतं पाणतंणतं विणतं घणं सुसिरं इंदं इंदोकतं इंदुत्तरवडेंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा उन देवों को चौदह हजार वर्षों के बाद भोजन की इच्छा उत्पन्न होती है। १५. जो देव नन्द, सुनन्द, नन्दावर्त, नन्दप्रभ, नन्दकान्त, नन्दवर्ण, नन्दलेश्य, नन्दध्वज, नन्दशृंग, नन्दसृष्ट, नन्दकूट, नन्दोत्तरावतंसक विमानों में देवरूप में उत्पन्न हुए हैंउन देवों को पन्द्रह हजार वर्षों के बाद भोजन की इच्छा उत्पन्न होती है। १६. जो देव आवर्त, व्यावर्त्त, नन्द्यावर्त्त, महानंद्यावर्त, अंकुश, अंकुशप्रलंब, भद्र, सुभद्र, महाभद्र, सर्वतोभद्र और भद्रोत्तरावतंसक विमानों में देवरूप में उत्पन्न हुए हैंउन देवों को सोलह हजार वर्षों के बाद भोजन की इच्छा उत्पन्न होती है। १७. जो देव सामान, सुसामान, महासामान, पद्म, महापद्म, कुमुद, महाकुमुद, नलिन, महानलिन, पौंडरीक, महापौंडरीक, शुक्ल, महाशुक्ल, सिंह, सिंहावकान्त, सिंहवीत और भावित विमानों में देवरूप में उत्पन्न हुए हैंउन देवों को सतरह हजार वर्षों के बाद भोजन की इच्छा उत्पन्न होती है। १८. जो देव काल, सुकाल, महाकाल, अंजन, रिष्ट, शाल, समान, दुम, महादुम विशाल सुशाल, पदम, पद्मगुल्म, कुमुद, कुमुदगुल्म, नलिन, नलिनगुल्म, पुंडरीक, पुंडरीकगुल्म और सहस्रारावतंसक विमानों में देवरूप में उत्पन्न हुए हैंउन देवों को अठारह हजार वर्षों के बाद भोजन की इच्छा उत्पन्न होती है। १९. जो देव आनत, प्राणत, नत, विनत, घन, झुषिर, इन्द्र, इन्द्रावकान्त और इन्द्रोत्तरावतंसक विमानों में देवरूप में उत्पन्न हुए हैं तेसि णं देवाणं एगूणवीसाए वाससहस्सेहिं आहारट्ठे समुप्पज्जइ। -सम. सम.१९, सु. १२,१४ २०. जे देवा सातं विसातं सुविसातं सिद्धत्थं उप्पलं रुइलं तिगिच्छं दिसासोवत्थियं वद्धमाणयं पलंबं पुर्फ सुपुर्फ पुप्फावत्तं पुष्फप्पभं पुष्फकंतं पुष्फवण्णं पुष्फलेसं पुप्फज्झयं पुप्फसिंगं पुप्फसिट्ठ पुप्फकूडं पुप्फुत्तरवडेंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णातेसि णं देवाणं वीसाए वाससहस्सेहिं आहारट्टे समुप्पज्जइ। -सम. सम.२०, सु.१४,१६ २१. जे देवा सिरिवच्छं सिरिदामगंडं मल्लं किट्ठि चावोण्णतं आरण्णवडेंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णातेसि णं देवाणं एक्कवीसाए वाससहस्सेहिं आहारट्ठे समुप्पज्जइ। -सम. सम. २१, सु. ११,१३ २२. जे देवा महितं विसतं विमलं पभासं वणमालं अच्चुयवडेंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा तेसि णं देवाणं बावीसाए वाससहस्सेहिं आहारट्ठे समुप्पज्जइ। -सम. सम.२२,सु.११,१३ उन देवों को उन्नीस हजार वर्षों के बाद भोजन की इच्छा उत्पन्न होती है। २०. जो देव सात, विसात, सुविसात, सिद्धार्थ, उत्पल, रुचिर, तिगिच्छ, दिशासौवस्तिक, वर्द्धमानक, प्रलंब, पुष्प, पुष्पावत, पुष्पप्रभ, पुष्पकान्त, पुष्पवर्ण, पुष्पलेश्य, पुष्पध्वज, पुष्पशृंग पुष्पसृष्ट, पुष्पकूट और पुष्पोत्तरावतंसक विमानों में देवरूप में उत्पन्न हुए हैंउन देवों को बीस हजार वर्षों के बाद भोजन की इच्छा उत्पन्न होती है। २१. जो देव श्रीवत्स, श्रीदामगंड, माल्य, कृष्टि, चापोन्नत और आरण्यावतंसक विमानों में देवरूप में उत्पन्न हुए हैंउन देवों को इक्कीस हजार वर्षों के बाद भोजन की इच्छा उत्पन्न होती है। २२. जो देव महित, विश्रुत, विमल, प्रभास, वनमाल और अच्युतावतंसक विमानों में देवरूप में उत्पन्न हुए हैंउन देवों को बाईस हजार वर्षों के बाद भोजन की इच्छा उत्पन्न होती है।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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