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________________ ३६० नो परंपरखेत्तोगाढे पोग्गले अत्तमायाए आहारैति। दं.२-२४.जहा नेरइया तहा जाव वेमाणियाणं दंडओ। -विया. स.६, उ.१०, सु. १२-१३ १२. सेयकालं चउवीसदंडएहिं पोग्गल आहरण-णिज्जरण परूवणंप. दं.१.नेरइया णं भंते ! जे पोग्गले आहारत्ताए गेण्हंति, द्रव्यानुयोग-(१) और न ही परम्पर-क्षेत्रावगाढ़ पुद्गलों को आत्मा द्वारा ग्रहण द्वारा करते हैं। दं.२-२४. जिस प्रकार नैरयिकों के लिए कहा, उसी प्रकार वैमानिकों-पर्यन्त आलापक कहना चाहिए। १२. भविष्यकाल में चौबीस दण्डकों द्वारा पुद्गलों का आहरण और निर्जरण का प्ररूपणप्र. दं. १. भन्ते ! नैरयिक जिन पुद्गलों को आहार रूप में ग्रहण करते हैं, भन्ते ! उन पुद्गलों का कितना भाग भविष्यकाल में आहार रूप में ग्रहण होता है और कितना भाग त्यागा जाता है? उ. माकन्दिकपुत्र ! असंख्यातवें भाग का आहार रूप में ग्रहण ___होता है और अनन्तवाँ भाग त्यागा जाता है। प्र. भन्ते ! क्या कोई जीव उन निर्जरा पुद्गलों पर बैठने यावत् सोने (करवट बदलने) में समर्थ हैं ? उ. माकन्दिकपुत्र ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। हे आयुष्यमन् श्रमण! ये निर्जरा पुद्गल अनाधार रूप वाले कहे गये हैं। दं.२-२४. इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त कहना चाहिए। तेसि णं भंते ! पोग्गलाणं सेयकालंसि कइभागं आहारेंति, कइभागं निज्जरेंति? उ. मागंदियपुत्ता। असंखेज्जइभागं आहारेंति, अणंतभागं निज्जरेंति। प. चक्किया णं भंते ! केइ तेसु निज्जरापोग्गलेसु आसइत्तए वा जाव तुयट्टित्तए वा? उ. मागंदियपुत्ता ! नो इणठे समठे, अणाहरणमेयं बुइयं समणाउसो! दं.२-२४.एवं जाव वेमाणियाणं । -विया.स.१८, उ.३,सु. २४-२६ १३. चउवीसदंडएसु-णिज्जरापोग्गलाणं जाणण-पासण- आहरण परूवणंप. दं.१.णेरइया णं भंते ! ते णिज्जरापोग्गले किं जाणंति, पासंति, आहारैति? उदाहु ण जाणंति, ण पासंति, ण आहारैति? .उ. गोयमा ! णेरइया णं ते णिज्जरापोग्गले ण जाणंति, ण पासंति,आहारेंति। दं.२-२०.एवं जाव पंचेंदिय-तिरिक्खजोणिया। पाता प. दं. २१. मणूसा णं भंते ! णिज्जरापोग्गले किं जाणंति, पासंति, आहारेंति? उदाहु ण जाणंति, ण पासंति, ण आहारेंति? उ. गोयमा ! अत्थेगइया जाणंति,पासंति,आहारेंति, अत्थेगइया ण जाणंति,ण पासंति, आहारेंति, १३. चौबीस दण्डकों में निर्जरा पुद्गलों के जानने देखने और आहरण का प्ररूपणप्र. दं.१. भंते ! क्या नारक उन निर्जरा पुद्गलों को जानते-देखते हैं और आहार करते हैं, अथवा उन्हें नहीं जानते नहीं देखते ___ और नहीं आहार करते हैं ? उ. गौतम ! नैरयिक उन निर्जरा-पुद्गलों को जानते नहीं, देखते नहीं किन्तु आहार (ग्रहण) करते हैं। दं. २-२०. इसी प्रकार पंचेंन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों पर्यन्त के लिए कहना चाहिए। प्र. दं. २१. भंते ! क्या मनुष्य निर्जरा पुद्गलों को जानते-देखते हैं और (उनका) आहार करते हैं ? अथवा (उन्हें) नहीं जानते, नहीं देखते और न ही आहार करते हैं ? उ. गौतम ! कोई-कोई मनुष्य (उनको) जानते-देखते हैं और (उनका) आहार करते हैं, कोई-कोई मनुष्य नहीं जानते, नहीं देखते और (उनका) आहार करते हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि'कोई-कोई मनुष्य (उनको) जानते-देखते हैं और (उनका) आहार करते हैं। कोई-कोई मनुष्य नहीं जानते, नहीं देखते और आहार करते हैं ? उ. गौतम ! मनुष्य दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. संज्ञीभूत, २.असंज्ञीभूत। १. उनमें से जो असंज्ञीभूत हैं, वे (निर्जरा-पुद्गलों को) नहीं जानते, नहीं देखते किन्तु आहार करते हैं। २. उनमें से जो संज्ञीभूत हैं, वे दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. उपयोग युक्त २. उपयोग अयुक्त। प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ अत्थेगइया जाणंति, पासंति, आहारेंति, अत्थेगइया ण जाणंति,ण पासंति, आहारेंति। उ. गोयमा ! मणूसा दुविहा पण्णत्ता,तं जहा १. सण्णिभूया, २. असण्णिभूया य। १. तत्थ णं जे ते असण्णिभूया ते णं ण जाणंति, ण पासंति,आहारेंति, २. तत्थ णं जे ते सण्णिभूया ते दुविहा पण्ता, तं जहा१. उवउत्ता य,२.अणुवउत्ता य।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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