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________________ आहार अध्ययन ३५९ दं.२-२४.एवं जाव वेमाणिए। एवं उववण्णे वि जाव वेमाणिए। दं.२-२४. इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त कहना चाहिए। इसी प्रकार उत्पन्न हुए के भी वैमानिक पर्यन्त कहने चाहिए। एवं उव्वट्टमाणे वि, उव्वदृ वि दो दंडगा जाव वेमाणिए। -विया. स. १, उ.७, सु.६ चउवीसदंडएसु वीचि-अवीचिदव्वाहारण परूवणं प. दं.१. नेरइया णं भंते ! किं वीचिदव्वाई आहारेंति, अवीचिदव्वाइं आहारेंति? उ. गोयमा ! नेरइया वीचिदव्वाइं पि आहारेंति, अवीचिदव्वाइं पि आहारेंति। प. सेकेणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ "नेरइया वीचिदव्वाइं पि आहारेंति,अवीचिदव्वाई पि आहारेंति?" उ. गोयमा ! जेणं नेरइया एगपएसूणाई पि दव्वाइं आहारेंति, इसी प्रकार उद्वर्तमान और उद्वर्तित के भी वैमानिकों पर्यन्त दो दंडक कहने चाहिए। ९. चौबीस दण्डकों में वीचि-अवीचिद्रव्यों के आहारण का प्ररूपणप्र. द.१. भन्ते ! नैरयिक जीव वीचिद्रव्यों का आहार करते हैं, ___अथवा अवीचिद्रव्यों का आहार करते हैं ? उ. गौतम ! नैरयिक जीव वीचिद्रव्यों का भी आहार करते हैं और अवीचिद्रव्यों का भी आहार करते हैं। प्र. भन्ते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "नैरयिक जीव वीचिद्रव्यों का भी आहार करते हैं और अवीचिद्रव्यों का भी आहार करते हैं?" उ. गौतम ! जो नैरयिक एक प्रदेश न्यून (कम) द्रव्यों का आहार करते हैं, वे नैरयिक वीचिद्रव्यों का आहार करते हैं, जो नैरयिक परिपूर्ण द्रव्यों का आहार करते हैं, वे नैरयिक अवीचिद्रव्यों का आहार करते हैं। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"नैरयिक जीव वीचिद्रव्यों का भी आहार करते हैं और अवीचिद्रव्यों का भी आहार करते हैं।" दं.२-२४. इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त कहना चाहिए। ते णं नेरइया वीचिदव्वाइं आहारेंति, जेणं नेरइया पडिपुण्णाई दव्वाई आहारेंति, तेणं नेरइया अवीचिदव्वाइं आहारेंति। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"नेरइया वीचिदव्वाइं पि आहारेंति, अवीचिदव्वाई पि आहारेंति।" दं.२-२४. एवं जाव वेमाणिया। -विया. स.१,उ.६, सु. ४-५ १०. चउवीसदंडएसुआहाराभोगता परूवणंप. दं.१.णेरइयाणं भंते ! आहारे किं आभोगणिव्वत्तिए अणाभोगणिव्वत्तिए? उ. गोयमा ! आभोगणिव्वत्तिए वि, अणाभोगणिव्वत्तिए वि। दं.२-२४. एवं असुरकुमाराणं जाव वेमाणियाणं। णवर-एगिदियाणं णो आभोगणिव्वत्तिए, अणा भोगणिव्वत्तिए। -पण्ण.प.३४, सु. २०३८-२०३९ ११. चउवीसदंडएसु आहारखेत्त परूवणं प. दं.१.नेरइया णं भंते ! जे पोग्गले अत्तमायाए आहारेंति, १०. चौबीस दंडकों में आहार-आभोगता का प्ररूपण प्र. दं.१. भंते ! नैरयिकों का आहार आभोगनिर्वर्तित होता है या ____ अनाभोगनिवर्तित होता है? उ. गौतम ! उनका आहार आभोगनिर्वर्तित भी होता है और अनाभोगनिर्वर्तित भी होता है। दं. २-२४. इसी प्रकार असुरकुमारों से वैमानिकों पर्यन्त कहना चाहिए। विशेष-एकेन्द्रिय जीवों का आहार आभोगनिवर्तित नहीं होता है किन्तु अनाभोगनिवर्तित होता है। ११. चौबीसदण्डकों में आहार क्षेत्र का प्ररूपणप्र. दं. १. भन्ते ! नैरयिक जीव, जिन पुद्गलों को आत्मा द्वारा आहार रूप में ग्रहण करते है, क्या वे आत्म शरीर क्षेत्रावगाढ़ पुद्गलों को आत्मा द्वारा ग्रहण करते हैं? अनन्तर क्षेत्रावगाढ़ पुद्गलों को आत्मा द्वारा ग्रहण करते हैं ? परम्पर क्षेत्रावगाढ़ पुद्गलों को आत्मा द्वारा ग्रहण करते हैं ? उ. गौतम ! वे आत्मा-शरीर क्षेत्रावगाढ़ पुद्गलों को आत्मा द्वारा ग्रहण करते हैं, किन्तु न तो अनन्तर क्षेत्रावगाढ़ पुद्गलों को आत्मा द्वारा ग्रहण करते हैं, ते किं आयसरीरक्खेत्तोगाढे पोग्गले अत्तमायाए आहारेंति, अणंतरखेत्तोगाढे पोग्गले अत्तमायाए आहारेंति, परंपरखेत्तोगाढे पोग्गले अत्तमायाए आहारेंति? उ. गोयमा ! आयसरीरखेत्तोगाढे पोग्गले अत्तमायाए आहारेंति, नो अणंतरखेत्तोगाढे पोग्गले अत्तमायाए आहारेंति,
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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