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________________ आहार अध्ययन ३५५ देसेणं समोहन्नमाणे पुब्बिं आहारेत्ता पच्छा उवज्जिज्जा, सव्वेणं समोहन्नमाणे पुब्बिं उववज्जित्ता पच्छा आहारेज्जा, से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"पुव्विं उववज्जित्ता पच्छा आहारेज्जा, पुट्विं आहारेत्ता पच्छा उववज्जेज्जा।" एवं पढम-दोच्चाणं अंतरा समोहयओ जाव ईसिपब्भाराए य उववाएयव्यो। एवं एएणं कमेणं जाव तमाए अहे सत्तमाए य पुढवीए अंतरा समोहए, समोहणित्ता जाव ईसिपब्भाराए उववाएयव्यो आउकाइयत्ताए। प. आउयाए णं भंते ! सोहम्मीसाणाणं सणंकुमार-माहिंदाण य कप्पाणं अंतरा समोहए, समोहणित्ता, जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए घणोदहिवलएसु आउकाइयत्ताए उववज्जित्तए से णं भंते ! किं पुव्विं उववज्जित्ता पच्छा आहारेज्जा, पुव्विं आहारेत्ता पच्छा उववज्जेज्जा? उ. गोयमा ! सेसं जहा पुढविकाइयाणं। देश से समवहत होने पर पूर्व में आहार करता है और पीछे उत्पन्न होता है। सर्व से समवहत होने पर पूर्व में उत्पन्न होता है और पीछे आहार करता है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"वह पहले उत्पन्न होकर पीछे भी आहार करता है और पहले आहार करके पीछे भी उत्पन्न होता है।" इसी प्रकार पहली और दूसरी पृथ्वी के अन्तराल में मरणसमुद्घात करके अप्कायिक जीवों का (सौधर्म कल्प की तरह) ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी पर्यन्त उपपात आदि जानना चाहिए। इसी प्रकार इसी क्रम में तमःप्रभा और अधःसप्तम पृथ्वी पर्यन्त के अन्तराल में मरणसमुद्घात करके अप्कायिक जीवों का ईषत्याग्भारा पृथ्वी पर्यन्त अकायिक रूप में उपपात आदि जानना चाहिए। प्र. भंते ! जो अप्कायिक जीव सौधर्म-ईशान और सनत्कुमार-माहेन्द्रकल्प के अन्तराल में मरणसमुद्घात करके रत्नप्रभा-पृथ्वी के घनोदधिवलयों में अकायिक-रूप में उत्पन्न होने योग्य है तो भंते ! पहले उत्पन्न होकर पीछे आहार करता है या पहले आहार करके पीछे उत्पन्न होता है? गौतम ! शेष सब कथन पृथ्वीकायिक के समान जानना चाहिए। इसी प्रकार इन अन्तरालों में मरणसमुद्घात को प्राप्त अप्कायिक जीवों का अधःसप्तम पृथ्वी पर्यन्त के घनोदधिवलयों में अकायिक रूप से उपपात आदि जानना चाहिए। इसी प्रकार यावत् अनुत्तरविमान और ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी के अन्तराल में मरणसमुद्घात प्राप्त अप्कायिक जीवों का अधःसप्तमपृथ्वी पर्यन्त के घनोदधिवलयों में अकायिक के। रूप में उपपात जानना चाहिए। प्र. भंते ! जो वायुकायिक जीव इस रत्नप्रभा और शर्कराप्रभापृथ्वी के अन्तराल में मरणसमुद्घात से समवहत होकर सौधर्मकल्प में वायुकायिक रूप में उत्पन्न होने के योग्य है, तो भंते ! वह पहले उत्पन्न होकर पीछे आहार करता है या पहले आहार कर के पीछे उत्पन्न होता है? उ. गौतम ! पृथ्वीकायिक जीवों के समान वायुकायिक जीवों का भी कथन करना चाहिए। विशेष-वायुकायिक जीवों में चार समुद्घात कहे गए हैं, यथा१. वेदनासमुद्घात, २. कषायसमुद्घात ३. मारणांतिक समुद्घात, ४. वैक्रिय-समुद्घात। मारणान्तिक समुद्घात से समवहत होकर देश से भी समुद्घात करता है और सर्व से भी समुद्घात करता है। एवं एएहिं चेव अंतरा समोहयओ जाव अहे सत्तमाए पुढवीए घणोदधिवलएसु आउकाइयत्ताए उववाइयव्यो। एवं जाव अणुत्तरविमाणाणं ईसिपब्भाराए य पुढवीए अंतरा समोहए जाव अहे सत्तमाए घणोदधिवलएसु उववाएयव्यो। प. वाउकाइए णं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए सक्करप्पभाए य पुढवीए अंतरा समोहए समोहणित्ता जे भविए सोहम्मे कप्पे वाउकाइयत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते ! किं पुव्विं उववज्जित्ता पच्छा आहारेज्जा, पुव्विं आहारेज्जा पच्छा उववज्जेज्जा?" उ. गोयमा ! जहा पुढविकाइओ तहा वाउकाइओ वि। णवरं-वाउकाइयाणं चत्तारि समुग्घाया पण्णत्ता, तं जहा१. वेयणासमुग्घाए, २. कसाय समुग्घाए, ३. मारणंतिय समुग्घाए, ४. वेउब्वियसमुग्घाए। मारणंतियसमुग्घाएणं समोहण्णमाणे देसेण वा समोहण्णइ, सव्वेण वा समोहण्णइ,
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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