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________________ ३५३ आहार अध्ययन उ. गोयमा ! पुव्विं वा उववज्जित्ता, पच्छा आहारेज्जा, पुव्विं वा आहारेज्जा पच्छा उववज्जेज्जा। प. से केणढेणं भंते ! एवं वुच्चइ "पुव्विं वा उववज्जित्ता पच्छा आहारेज्जा, पुव्विं वा आहारेत्ता पच्छा उववज्जेज्जा?" उ. गोयमा ! पुढविकाइयाणं तओ समुग्घाया पण्णत्ता, तंजहा१.वेयणासमुग्घाए २. कसाय समुग्धाए ३. मारणंतिय समुग्घाए। मारणंतिय समुग्घाएणं समोहण्णमाणे देसेण वा समोहण्णइ सव्वेण वा समोहण्णइ, देसेणं समोहन्नमाणे पुव्विं आहारेत्ता पच्छा उववज्जिज्जा उ. गौतम ! वह पहले उत्पन्न होकर पीछे भी आहार करता है, पहले आहार करके पीछे भी उत्पन्न होता है। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "वह पहले उत्पन्न होकर पीछे भी आहार करता है, पहले आहार करके पीछे भी उत्पन्न होता है।" उ. गौतम ! पृथ्वीकायिकों में तीन समुद्घात कहे गये हैं-यथा सव्वेणं समोहन्नमाणे पुव्विं उववज्जित्ता पच्छा आहारेज्जा प. से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"पुव्विं उववज्जित्ता पच्छा आहारेज्जा, पुव्विं आहारेत्ता पच्छा उववज्जेज्जा।" पुढविकाइए णं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए सक्करप्पभाए य पुढवीए अंतरा समोहए समोहणित्ता, जे भविए ईसाणे कप्पे पुढविकाइयत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते ! किं पुव्विं उववज्जित्ता पच्छा आहारेज्जा, पुव्विं आहारेत्ता पच्छा उववज्जेज्जा? उ. गोयमा ! एवं चेव। एवं जाव ईसिपब्भाराए उववाएयव्यो १. वेदना समुद्घात, २. कषाय समुद्घात, ३. मारणांतिक समुद्घात। मारणांतिक समुद्घात से समवहत होकर देश से भी समवहत होता है और सर्व से भी समवहत होता है। देश से समवहत होने पर पूर्व में आहार करता है और पीछे उत्पन्न होता है। सर्व से समवहत होने पर पूर्व में उत्पन्न होता है और पीछे आहार करता है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"वह पहले उत्पन्न होकर पीछे भी आहार करता है और पहले आहार करके पीछे भी उत्पन्न होता है।" प्र. भंते ! जो पृथ्वीकायिक जीव, इस रत्नप्रभापृथ्वी और शर्कराप्रभा पृथ्वी के अन्तराल में मरणसमुद्घात करके ईशानकाल्प में पृथ्वीकायिक रूप से उत्पन्न होने योग्य है, तो भंते ! पहले उत्पन्न होकर पीछे आहार करता है या पहले आहार करके पीछे उत्पन्न होता है? उ. गौतम ! पूर्ववत् समझना चाहिए। . इसी प्रकार ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी पर्यन्त उपपात और आहार करता है ऐसा आलापक कहना चाहिए। इसी क्रम से शर्कराप्रभा वालुकाप्रभा से लेकर तमःप्रभा और अधःसप्तम पृथ्वी पर्यन्त के अन्तराल में मरणसमुद्घात करके पृथ्वीकायिक जीवों में सौधर्मकल्प से ईषत्याग्भारा पृथ्वी पर्यन्त (पूर्ववत्) उपपात (आलापक) कहने चाहिए। प्र. भंते ! जो पृथ्वीकायिक जीव सौधर्म-ईशान और सनत्कुमार-माहेन्द्रकल्प के अन्तराल में मरणसमुद्घात करके इस रत्नप्रभापृथ्वी में पृथ्वीकायिक के रूप में उत्पन्न होने योग्य है तो भंते । वह पहले उत्पन्न होकर पीछे आहार करता है यां पहले आहार करके पीछे उत्पन्न होता है? उ. गौतम ! पूर्ववत् समझना चाहिए। प्र. भंते ! जो पृथ्वीकायिक जीव, सौधर्म-ईशान और सनत्कुमार-माहेन्द्रकल्प के अन्तराल में मरणसमुद्घात करके शर्कराप्रभा पृथ्वीकायिकरूप से उत्पन्न होने योग्य है एएणं कमेण सक्करप्पभाए वालुयप्पभाए य तमाए अहेसत्तमाए य पुढवीए अंतरा समोहए समाणे जे भविए सोहम्मे जाव ईसिपब्भाराए उववाएयव्यो। प. पुढविकाइए णं भंते ! सोहम्मीसाणाणं सणंकुमार माहिंदाण य कप्पाणं अन्तरा समोहए समोहणित्ता, जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पुढविकाइयत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते ! किं पुव्विं उववज्जित्ता पच्छा आहारेज्जा, पुव्विं आहारेत्ता पच्छा उववज्जेज्जा, उ. गोयमा ! एवं चेव। प. पुढविकाइए णं भंते ! सोहम्मीसाणाणं सणंकुमार माहिंदाण य कप्पाणं अंतरा समोहए समोहणित्ता, जे भविए सक्करप्पभाए पुढवीए पुढविक्काइयत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते ! किं पुव्विं उववज्जित्ता पच्छा आहारेज्जा, पुव्विं आहारेत्ता पच्छा उववज्जेज्जा? उ. गोयमा ! एवं चेव। तो भंते ! वह पहले उत्पन्न होकर पीछे आहार करता है या पहले आहार करके पीछे उत्पन्न होता है? उ. गौतम ! पूर्ववत् समझना चाहिए।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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