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________________ आहार अध्ययन ३५१ १३. आहार अज्झयणं १३. आहार-अध्ययन सूत्र १. आहार पगारा चउविहे आहारे पण्णत्ते,तं जहा१.असणे, २. पाणे, ३. खाइमे, ४. साइमे। चउविहे आहारे पण्णत्ते,तं जहा१. उवक्खरसंपण्णे, २. उवक्खडसंपण्णे, ३. सब्भावसंपण्णे, ४. परिजुसियसंपण्णे। -ठाणं.अ.४, उ.२,सु.२९५ अट्ठविहे आहारे पण्णत्ते, तं जहा१-४. मणुण्णे असणे जाव साइमे। १-४.अमणुण्णे असणे जाव साइमे। -ठाणं. अ. ८, सु. ६२३ २. चउगईणं आहार रूवं (१) नेरइयाणं चउविहे आहारे पण्णत्ते, तं जहा१. इंगालोवमे, २. मुम्मुरोवमे, ३.सीतले, ४. हिमसीतले। सूत्र १. आहार के प्रकार आहार चार प्रकार का कहा गया है, यथा१. अशन, २. पान, ३. खादिम, ४. स्वादिम। आहार चार प्रकार का कहा गया है, यथा१. उपस्कर-सम्पन्न-वघार से युक्त मसाले डालकर छौंका हुआ, २. उपस्कृत-सम्पन्न-पकाया हुआ, ओदन आदि, ३. स्वभाव सम्पन्न-स्वभाव से पका हुआ, फल आदि, ४. पर्युषित-सम्पन्न-रात वासी रखने से जो तैयार हो। आहार आठ प्रकार का कहा गया है, यथा१-४ मनोज्ञ अशन यावत् मनोज्ञ स्वाद्य। १-४ अमनोज्ञ अशन यावत् अमनोज्ञ स्वाद्य। २. चारों गतियों के आहार का रूप (१) नैरयिकों का आहार चार प्रकार का कहा गया है, यथा१. अंगारोपम-अल्पकालीन दाहवाला, २. मुर्मुरोपम-दीर्घकालीन दाहवाला, (तुष या भूसे की अग्नि के समान दाहवाला)३.शीतल ४. हिमशीतल। (२) तिर्यञ्चों का आहार चार प्रकार का कहा गया है, यथा१. कंकोपम-सुख पूर्वक भक्ष्य और सुजीर्ण, २. बिलोपम-जो चबाए बिना निगल लिया जाता है, ३. पाणमांसोपम-चण्डाल के मांस की भाँति घृणित, ४. पुत्रमांसोपम-पुत्र मांस की भाँति दुःख भक्ष्य। (३) मनुष्यों का आहार चार प्रकार का कहा गया है, यथा१.अशन, २. पान, ३. खाद्य, ४. स्वाद्य। (४) देवताओं का आहार चार प्रकार का कहा गया है, यथा१. वर्णवान् २. गंधवान् ३. रसवान् ४. स्पर्शवान्। (२)तिरिक्खजोणियाणं चउव्विहे आहारे पण्णत्ते, तं जहा१. कंकोवमे, २. बिलोवमे, ३. पाणमंसोवमे, ४. पुत्तमंसोवमे। (३) मणुस्साणं चउव्विहे आहारे पण्णत्ते,तं जहा१. असणे, २.पाणे, ३.खाइमे, ४.साइमे। (४) देवाणं चउव्विहे आहारे पण्णत्ते,तं जहा१.वण्णमंते, २.गंधमते, ३.रसमंते, ४.फासमंते। -ठाणं. अ.४, उ.४, सु. ३४० ३. गब्भगयजीवस्स आहार गहण परूवणंप. जीवे णं भंते ! गब्भ वक्कममाणे तप्पढमयाए किमाहारमाहारेइ? उ. गोयमा ! माउओयं पिउसुक्कं तं तदुभयसंसिट्ठ कलुसं किविसं तप्पढमयाए आहारमाहारेइ। ३. गर्भगत जीव के आहार ग्रहण का प्ररूपणप्र. भन्ते ! गर्भ में उत्पन्न होता हुआ जीव सर्वप्रथम क्या आहार करता है? उ. गौतम ! परस्पर एक दूसरे में मिला हुआ माता का आर्तव (रज)और पिता का शुक्र (वीर्य),जो कि कलुष और किल्विष है, जीव गर्भ में उत्पन्न होते ही सर्वप्रथम उसका आहार करता है। प्र. भन्ते ! गर्भ में गया (रहा) हुआ जीव क्या आहार करता है ? उ. गौतम ! उसकी माता जो नाना प्रकार की (दुग्धादि) . रसविकृतियों का आहार करती है; उसके एक भाग के साथ गर्भगत जीव माता के आर्तव का आहार करता है। प्र. भन्ते ! क्या गर्भ में रहे हुए जीव के मल होता है, मूत्र होता है, कफ होता है, नाक का मैल होता है, वमन होता है या पित्त होता है? प. जीवेणं भंते ! गब्भगए समाणे किमाहारमाहारेइ? उ. गोयमा ! जं से माता नाणाविहाओ रसविगईओ . आहारमाहारेइ तदेक्कदेसेणं ओयमाहारेइ। प. जीवस्स णं भंते ! गब्भगयस्स समाणस्स अस्थि उच्चारे इ वा, पासवणे इ वा, खेले इ वा, सिंघाणे इ वा, वंते इ वा, पित्ते इ वा?
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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