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________________ | ३४२ उक्कोसेण एगूणतीसं सागरोवमाइं। प. उवरिमहेट्ठिमगेवेज्जग अपज्जत्तय देवाणं भंते ! __ केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण वि, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। द्रव्यानुयोग-(१) उत्कृष्ट उन्तीस सागरोपम की। प्र. भंते ! उपरितन-अधस्तन ग्रैवेयक अपर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की। प्र. भंते ! उपरितन-अधस्तन ग्रैवेयक पर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम अट्ठाईस सागरोपम की, प. उवरिमहेट्ठिमगेवेज्जग पज्जत्तय देवाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण अट्ठावीसं सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई। उक्कोसेण एगूणतीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई। प. ८. उवरिममज्झिमगेवेज्जग देवाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण एगूणतीसं सागरोवमाइं, उक्कोसेण तीसं सागरोवमाइं२। प. उवरिममज्झिमगेवेज्जग अपज्जत्तय देवाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण वि, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं। उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम उन्तीस सागरोपम की। प्र. ८. भंते ! उपरितन-मध्यम (ऊपर के त्रिक के बीच वाले) ग्रैवेयक देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य उन्तीस सागरोपम की, उत्कृष्ट तीस सागरोपम की। प्र. भंते ! उपरितन-मध्यम ग्रैवेयक अपर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की। प्र. भंते ! उपरितन-मध्यम ग्रैवेयक पर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम उन्तीस सागरोपम की, प. उवरिममज्झिमगेवेज्जग पज्जत्तय देवाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण एगणतीसं सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई। उक्कोसेण तीसं सागरोवमाइं अंतोमुत्तूणाई। प. ९. उवरिमउवरिमगेवेज्जगदेवाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण तीसं सागरोवमाइं, उक्कोसेण एक्कतीसं सागरोवमाइं३। प. उवरिमउवरिमगेवेज्जग अपज्जत्तय देवाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण वि, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तीस सागरोपम की। प्र. ९. भंते ! उपरितन-उपरितन (ऊपर के त्रिक के सबसे ऊपर वाले) ग्रैवेयक देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य तीस सागरोपम की, उत्कृष्ट इकतीस सागरोपम की। प्र. भंते ! उपरितन-उपरितन ग्रैवेयक अपर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की। प. उवरिमउवरिमगेवेज्जग पज्जत्तय देवाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण तीसं सागरोवमाइं अंतोमुत्तूणाई। उक्कोसेण एक्कतीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुतूणाई। -पण्ण. प. ४, सु. ४२७-४३५ ११६. अणुत्तर देवाणं ठिई___प. १.विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजिएसुणं भंते ! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? . प्र. भंते ! उपरितन-उपरितन ग्रैवेयक पर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम तीस सागरोपम की, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम इकतीस सागरोपम की। ११६. अनुत्तर देवों की स्थिति प्र. १. भंते ! विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित विमानों में देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? १. (क) उत्त.अ.३६,गा.२४० (ख) अणु.सु.३९१(८) (ग) सम.सम.२८,सु.११(ज) (घ) सम.सम.२९,सु.१५(उ) २. (क) उत्त.अ.३६,गा.२४१ (ख) अणु.सु.३९१(८) (ग) सम.सम.२९,सु.१४ (ज) (घ) सम.सम.३०,सु.१३ (उ) ३. (क) उत्त.अ.३६,गा.२४२ (ख) अणु.सु.३९१ (८) (ग) सम.सम.३०,सु.१२ (ज) (घ) सम.सम.३१,सु.११(उ) (ङ) सम.सम.सु.१५०(१)
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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