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________________ स्थिति अध्ययन - ३३५ ) १००.बंभदेविंदस्स परिसागय देवाणं ठिई १००. ब्रह्म देवेन्द्र की परिषदागत देवों की स्थितिप. बंभस्स णं भंते ! देविंदस्स देवरण्णो प्र. भंते ! देवेन्द्र देवराज ब्रह्म कीअभिंतरियाए परिसाए देवाणं केवइयं कालं ठिई आभ्यन्तर परिषदा के देवों की स्थिति कितने काल की कही पण्णत्ता? गई है? मज्झिमियाए परिसाए देवाणं केवइयं कालं ठिई मध्यम परिषदा के देवों की स्थिति कितने काल की कही पण्णत्ता? गई है? बाहिरियाए परिसाए देवाणं केवइयं कालं ठिई बाह्य परिषदा के देवों की स्थिति कितने काल की कही पण्णत्ता? गई है? उ. गोयमा ! बंभस्स णं देविंदस्स देवरण्णो उ. गौतम ! देवेन्द्र देवराज ब्रह्म कीअभिंतरियाए परिसाए देवाणं अद्धणवमाई आभ्यन्तर परिषदा के देवों की स्थिति पांच पल्योपम सहित सागरोवमाइं पंच य पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता। साढ़े आठ सागरोपम की कही गई है। मज्झिमियाए परिसाए देवाणं अद्धणवमाई सागरोवमाई मध्यम परिषदा के देवों की स्थिति चार पल्योपम सहित साढ़े चत्तारि य पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता। आठ सागरोपम की कही गई है। बाहिरियाए परिसाए देवाणं अद्धणवमाई सागरोवमाइं। बाह्य परिषदा के देवों की स्थिति तीन पल्योपम सहित साढ़े तिण्णि य पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता। आठ सागरोपम की कही गई है। -जीवा. पडि. ३, उ.२, सु. १९९(ई) १०१. लंतयकप्पे देवाणं ठिई १०१. लान्तक कल्प में देवों की स्थितिप. लंतए कप्पे णं भंते ! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? प्र. भन्ते ! लान्तककल्प में देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गोयमा !जहण्णेण दस सागरोवमाई, उ. गौतम ! जघन्य दस सागरोपम की, उक्कोसेण चउद्दस सागरोवमाई। उत्कृष्ट चौदह सागरोपम की। प. अपज्जत्तयाणं भंते ! लंतए कप्पे देवाणं केवइयं कालं प्र. भन्ते ! लान्तककल्प में अपर्याप्त देवों की स्थिति कितने ठिई पण्णत्ता? काल की कही गई है? उ. गोयमा !जहण्णेण वि, उक्कोसेण वि अंतोमुत्तं। उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की। प. पज्जत्तयाणं भंते ! लंतए कप्पे देवाणं केवइयं कालं ठिई प्र. भन्ते ! लान्तककल्प में पर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल पण्णत्ता? की कही गई है? उ. गोयमा !जहण्णेण दस सागरोवमाइं अंतोमुत्तूणाई, उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम दस सागरोपम की, उक्कोसेण चोद्दस सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई। उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम चौदह सागरोपम की। -पण्ण. प.४,सु.४२० १०२. लतएकप्पे अत्यंगइया देवाणं ठिई १०२. लान्तक कल्प में कतिपय देवों की स्थितिलंतए कप्पे अत्थेगइयाणं देवाणं एक्कारस सागरोवमाई ठिई लान्तक कल्प के कतिपय देवों की स्थिति ग्यारह सागरोपम की पण्णत्ता) -सम. सम.११,सु.१२ कही गई है। लंतए कप्पे अत्थेगइयाणं देवाणं बारस सागरोवमाई ठिई लान्तक कल्प के कतिपय देवों की स्थिति बारह सागरोपम की पण्णत्ता। -सम.सम.१२,सु.१६ कही गई है। लंतए कप्पे अत्थेगइयाणं देवाणं तेरस सागरोवमाई ठिई लान्तक कल्प के कतिपय देवों की स्थिति तेरह सागरोपम की पण्णत्ता। -सम. सम.१३, सु.१३ कही गई है। १०३. लंतयदेविंदस्स परिसागय देवाणं ठिई १०३. लान्तक देवेन्द्र के परिषदागत देवों की स्थितिप. लंतगस्स णं भंते ! देविंदस्स देवरण्णो प्र. भन्ते ! देवेन्द्र देवराज लान्तक कीअभिंतरियाए परिसाए देवाणं केवइयं कालं ठिई आभ्यन्तर परिषदा के देवों की स्थिति कितने काल की कही पण्णत्ता? गई है। १. (क) ठाणं,अ.१०,सु.७५७/१८(ज) (ख) सम.सम.१०,सु.२१ (ज) (ग) अणु.कालदारे सु.३९१/७ (घ) उत्त.अ.३६,गा.२२७ (ङ) सम.सम.१४, सु. १३ (उ.)
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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