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________________ स्थिति अध्ययन मज्झिमियाए परिसाए देवीणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? - ३२९ ) मध्यम परिषदा की देवियों की स्थिति कितने काल की कही बाहिरियाए परिसाए देवीणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? बाह्य परिषदा की देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! देवेन्द्र देवराज शक्र की आभ्यन्तर परिषदा की देवियों की स्थिति तीन पल्योपम की कही गई है। मध्यम परिषदा की देवियों की स्थिति दो पल्योपम की कही उ. गोयमा ! सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो अभिंतरियाए परिसाए देवीणं तिण्णि पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता। मज्झिमियाए परिसाए देवीणं दुण्णि पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता। बाहिरियाए परिसाए देवीणं एगं पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता। -जीवा. पडि. ३, उ. २, सु. १९९ ८६. ईसाणे कप्पे देव-देवीणं ठिई प. ईसाणे कप्पेणं भंते ! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? बाह्य परिषदा की देवियों की स्थिति एक पल्योपम की कही गई है। ८६. ईशान कल्प के देव-देवियों की स्थिति प्र. भन्ते ! ईशानकल्प में देवों की स्थिति कितने काल की कही उ. गोयमा !जहण्णेण साइरेगं पलिओवम, उक्कोसेण साइरेगाई दो सागरोवमाई। प. अपज्जत्तयाणं भंते ! ईसाणे कप्पे देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण वि, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। प. पज्जत्तयाणं भंते ! ईसाणे कप्पे देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण साइरेगं पलिओवमं, उक्कोसेण साइरेगाई दो सागरोवमाइं अंतोमुहत्तूणाई। प. ईसाणे कप्पेणं भंते ! देवीणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गौतम ! जघन्य एक पल्योपम से कुछ अधिक की, उत्कृष्ट दो सागरोपम से कुछ अधिक की। प्र. भन्ते ! ईशानकल्प में अपर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की। प्र. भन्ते ! ईशानकल्प में पर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम कुछ अधिक एक पल्योपम की, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम दो सागरोपम से कुछ अधिक की। प्र. भन्ते ! ईशानकल्प में देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य एक पल्योपम से कुछ अधिक की, उत्कृष्ट पचपन पल्योपम की। प्र. भन्ते ! ईशानकल्प में अपर्याप्त देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूत की। प्र. भन्ते ! ईशानकल्प में पर्याप्त देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम एक पल्योपम से कुछ अधिक की, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम पचपन पल्योपम की। उ. गोयमा !जहण्णेण साइरेगं पलिओवम, उक्कोसेण पणपण्णं पलिओवमाई। प. अपज्जत्तियाणं भंते ! ईसाणे कप्पे देवीणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण वि, उक्कोसेण वि अंतोमुत्तं। प. पज्जत्तियाणं भंते ! ईसाणे कप्पे देवीणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण साइरेगं पलिओवमं अंतोमुत्तूणं, उक्कोसेण पणपण्णं पलिओवमाइं अंतोमुत्तूणाई। -पण्ण.प.४,सु.४१३-४१४ ८७. ईसाणे कप्पे अत्थेगइय देवाणं ठिई ईसाणे कप्पे अत्थेगइयाणं देवाणं एगं पलिओवमं ठिई पण्णत्ता। -सम. सम.१,सु.४२ ईसाणे कप्पे अत्थेगइयाणं देवाणं दो पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता। -सम. सम.२,सु.१५ ८७. ईशान कल्प में कतिपय देवों की स्थिति ईशानकल्प के कतिपय देवों की स्थिति एक पल्योपम की कही गई है। ईशानकल्प के कतिपय देवों की स्थिति दो पल्योपम की कही गई है। १. ठाण.अ.३,उ.४,सु.२०२/२ २. (क) विया.स.३,उ.१,सु.५३ (ख) अणु.कालदारे सु.३९१/३ (ग) उत्त.अ.३६,गा.२२३ (घ) ठाणं अ.२,उ.४,सु.१२४/३ (ङ) सम.सम.१.सु.४१ (ज.)' (च) सम.सम.२,सु.१७(उ.)
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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