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________________ ३२८ कल द्रव्यानुयोग-(१)) प्र. भन्ते ! सौधर्म कल्प में अपर्याप्त परिगृहीता देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की। प्र. भन्ते ! सौधर्म कल्प में पर्याप्त परिगृहीता देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम एक पल्योपम की। उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम सात पल्योपम की। प. अपज्जत्तियाणं भंते ! सोहम्मे कप्पे परिग्गहियाणं देवीणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? . उ. गोयमा !जहण्णेण वि, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। प. पज्जत्तियाणं भंते ! सोहम्मे कप्पे परिग्गहियाणं देवीणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण पलिओवमं अंतोमुहत्तूणं, उक्कोसेण सत्त पलिओवमाई अंतोमुत्तूणाई, -पण्ण.प.४, सु.४११ ८३. सोहम्मिंद सक्कस्स अग्गमहिसीणं ठिई सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो अग्गमहिसीणं देवीणं सत्त पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता। -ठाणं.अ.७, सु.५७५/२ ८४.सोहम्मे कप्पे अपरिग्गहियाणं देवीणं ठिईप. सोहम्मे कप्पे णं भंते ! अपरिग्गहियाणं देवीणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? । उ. गोयमा !जहण्णेण पलिओवमं, उक्कोसेण पण्णासं पलिओवमाई। प. अपज्जत्तियाणं भंते ! अपरिग्गहियाणं देवीणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण वि, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। प. पज्जत्तियाणं भंते ! अपरिग्गहियाणं देवीणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण पलिओवमं अंतोमुहुत्तूणं, उक्कोसेण पण्णासं पलिओवमाई अंतोमुहत्तूणाई, -पण्ण.प.४, सु. ४१२ ८५. सोहम्मिंद सक्कस्स परिसागय देव-देवीणं ठिई-. प. सक्कस्स णं भंते ! देविंदस्स देवरण्णो अभिंतरियाए परिसाए देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? मज्झिमियाए परिसाए देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? ८३. सौधर्मेन्द्र शक्र की अग्रमहिषियों की स्थिति देवेन्द्र देवराज शक्र की अग्रमहिषी देवियों की स्थिति सात पल्योपम की कही गई है। ८४. सौधर्म कल्प में अपरिग्रहीता देवियों की स्थितिप्र. भन्ते ! सौधर्म कल्प में अपरिगृहीता देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य एक पल्योपम की, उत्कृष्ट पचास पल्योपम की। प्र. भन्ते ! सौधर्म कल्प में अपर्याप्त अपरिगृहीता देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की। प्र. भन्ते ! सौधर्म कल्प में पर्याप्त अपरिगृहीता देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम एक पल्योपम की, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम पचास पल्योपम की। साका, बाहिरियाए परिसाए देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो अभिंतरियाए परिसाए देवाणं पंच पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता। मज्झिमियाए परिसाए देवाणं चत्तारि पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता बाहिरियाए परिसाए देवाणं तिण्णि पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता। फ. सक्कस्स णं भंते ! देविंदस्स देवरण्णो अभिंतरियाए परिसाए देवीणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? ८५. सौधर्मेन्द्र शक्र की परिषदागत देव-देवियों की स्थितिप्र. भन्ते ! देवेन्द्र देवराज शक्र की आभ्यन्तर परिषदा के देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? मध्यम परिषदा के देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? बाह्य परिषदा के देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! देवेन्द्र देवराज शक्र की आभ्यन्तर परिषदा के देवों की स्थिति पांच पल्योपम कही गई है। मध्यम परिषदा के देवों की स्थिति चार पल्योपम की कही गई है। बाह्य परिषदा के देवों की स्थिति तीन पल्योपम की कही गई है। प्र. भन्ते ! देवेन्द्र देवराज शक्र की आभ्यन्तर परिषदा की देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है? १. अणु. कालदारे सु. ३९१/२ २. ठाण.अ.५,उ.१,सु.४०५ ३. ठाण.अ.४, उ.१,सु.२६०/१ ४. ठाण.अ.३, उ.४,सु.२०२/१
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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