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________________ ३१३ स्थिति अध्ययन ५२. भवणवासीदेवाणं ठिई प. भवणवासीणं भंते ! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? ५२. भवनवासी देवों की स्थिति प्र. भन्ते ! भवनवासी देवों की स्थिति कितने काल की कही उ. गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष की, उत्कृष्ट कुछ अधिक एक सागरोपम की। प्र. भन्ते ! अपर्याप्त भवनवासी देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की। प्र. भन्ते ! पर्याप्त भवनवासी देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम दस हजार वर्ष की, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम कुछ अधिक एक सागरोपम की। ५३. भवनवासी देवियों की स्थिति प्र. भन्ते ! भवनवासी देवियों की स्थिति कितने काल की कही उ. गोयमा !जहण्णेण दस वाससहस्साई, उक्कोसेण साइरेगं सागरोवमं। प. अपज्जत्तयाणं भंते ! भवणवासीणं देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण वि, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं। प. पज्जत्तयाणं भंते ! भवणवासीणं देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण दस वाससहस्ताई अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेण साइरेगं सागरोवमं अंतोमुहत्तूणाई। -पण्ण.प.४, सु. ३४५ ५३. भवणवासीदेवीणं ठिईप. भवणवासिणीणं भंते ! देवीणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण दस वाससहस्साई, उक्कोसेण अद्धपंचमाई पलिओवमाई। प. अपज्जत्तियाणं भंते ! भवणवासिणीणं देवीणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण वि, उक्कोसेण वि अंतोमुत्तं। प. पज्जत्तियाणं भंते ! भवणवासिणीणं देवीणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण दस वाससहस्साई अंतोमुहत्तूणाई, उक्कोसेण अद्धपंचमाइं पलिओवमाई अंतोमुत्तूणाई। -पण्ण. प.४, सु.३४६ ५४. असुरकुमाराणं ठिई प. असुरकुमाराणं भंते ! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष की, उत्कृष्ट साढ़े चार पल्योपम की। प्र. भन्ते ! अपर्याप्त भवनवासी देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की। प्र. भन्ते ! पर्याप्त भवनवासी देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम दस हजार वर्ष की, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम साढ़े चार पल्योपम की। उ. गोयमा !जहण्णेण दस वाससहस्साइं३, उक्कोसेण साइरेगं सागरोवम । प. अपज्जत्तयाणं भंते ! असुरकुमाराणं देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण वि, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं। प. पज्जत्तयाणं भंते ! असुरकुमाराणं देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण दस वाससहस्साई अंतोमुत्तूणाई, उक्कोसेण साइरेगं सागरोवमं अंतोमुहतूणाई। -पण्ण.प.४,सु.३४७ ५४. असुरकुमार देवों की स्थितिप्र. भन्ते ! असुरकुमार देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष की, उत्कृष्ट कुछ अधिक एक सागरोपम की। प्र. भन्ते ! अपर्याप्त असुरकुमार देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की। प्र. भन्ते ! पर्याप्त असुरकुमार देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम दस हजार वर्ष की, . उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम एक सागरोपम से कुछ अधिक की। १. उत्त.अ.३६,गा.२१९ २. जीवा. पडि.२,सु.४७ (३) ३. (क) सम.सम.१०,सु.१४ (ज.) (ख) असुरकुमाराणं जहण्णेणं दसवास सहस्साई ठिई पण्णत्ता, एवं जाब थणियकुमाराणं)-ठाणं अ.१० सु.७५७/६ ४. (क) अणु. कालदारे सु.३८४/१ (ख) विया.स.१, उ.१,सु.६/२/१ (ग) सम.सम.१ सु.९ (उ.)
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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