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________________ ३१२ द्रव्यानुयोग-(१) उत्कृष्ट तीन पल्योपम। संहरण की अपेक्षा-जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट देशऊण पूर्वकोटि। प्र. भन्ते ! अन्तरद्वीपज अकर्मभूमिज मनुष्य स्त्रियों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जन्म की अपेक्षा जघन्य देशऊण पल्योपम अर्थात् पल्योपम के असंख्यावतें भाग न्यून। उत्कृष्ट पल्योपम का असंख्यातवां भाग। संहरण की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट देशऊण पूर्वकोटि। उक्कोसेण तिण्णि पलिओवमाई। संहरणं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहत्तं, उक्कोसेण देसूणा पुवकोडी। प. अंतरदीवग-अकम्मभूमग-मणुस्सित्थीणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जम्मणं पडुच्च जहण्णेण देसूणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागं पलिओवमस्स असंखेज्जभागेणं ऊणगं, उक्कोसेण पलिओवमस्स असंखेज्जइभागं। संहरणं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण देसूणा पुवकोडी। -जीवा. पडि.२, सु. ४७(२) ५०. ओहेण देवाणं ठिई प. देवाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण दस वाससहस्साई, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं।' प. अपज्जत्तय देवाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण वि, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। प. पज्जत्तय-देवाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण दस वाससहस्साई अंतोमुहत्तूणाई, उक्कोसेण तेत्तीसं सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई। पण्ण. प.४, सु. ३४३ प. पढमसमयदेवाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? ५०. सामान्यतः देवों की स्थिति प्र. भन्ते ! देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? उ. गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष की, उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की। प्र. भन्ते ! अपर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की। प्र. भन्ते ! पर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम दस हजार वर्ष की, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तेतीस सागरोपम की। उ. गोयमा ! एगं समयं ठिई पण्णत्ता। प. अपढमसमयदेवाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण दस वाससहस्साई समयूणाई, उक्कोसेण तेत्तीसं सागरोवमाई समयूणाई। -जीवा. पडि.७, सु. २२६ ५१. ओहेण देवीणं ठिई प. देवीणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण दस वाससहस्साई, उक्कोसेणं पणपण्णं पलिओवमाइं३| प. अपज्जत्तय-देवीणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? प्र. भन्ते ! प्रथम समय देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! एक समय की स्थिति कही गई है। प्र. भन्ते ! अप्रथम समय देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य स्थिति एक समय कम दस हजार वर्ष की, उत्कृष्ट स्थिति एक समय कम तेतीस सागरोपम की कही गई है। ५१. सामान्यतः देवियों की स्थिति प्र. भन्ते ! देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष की, - उत्कृष्ट पचपन पल्योपम की। प्र. भन्ते ! अपर्याप्त देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गोयमा !जहण्णेण वि, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं। प. पज्जत्तय-देवीणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण दस वाससहस्साई अंतोमुत्तूणाई, उक्कोसेणं पणपण्णं पलिओवमाई अंतोमुत्तूणाई। पण्ण.प.४,सु.३४४ उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की। प्र. भन्ते ! पर्याप्त देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम दस हजार वर्ष की, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम पचपन पल्योपम की। १. जीवा.पडि.१,सु.४२ जीवा.पडि.६,सू.२२५ २. (क) देवाणं जहा नेरइयाणं संक्षिप्त वाचना का विस्तृत पाठ है। (ख) जीवा. पडि.३,सु.२०६ (ग) जीवा. पडि.७, सु.२२६ २. जीवा. पडि.२,सु.४७ (३)
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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