SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 405
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २९८ प. खरपुढवीणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण अंतोमुहत्तं, उक्कोसेण बावीसं वाससहस्साई। -जीवा. पडि. ३, सु.१०१ २४. आउकाइयाणं ठिई प. आउकाइयाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण अंतोमुहत्तं, उक्कोसेण सत्त वाससहस्साई। प. अपज्जत्तय-आउकाइयाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण वि, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं। प. पज्जत्तय-आउकाइयाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण सत्त वाससहस्साइं अंतोमुत्तूणाई। सुहुमआउकाइयाणं ओहियाणं अपज्जत्तयाण पज्जत्तयाण यजहा सुहुमपुढविकाइयाणं तहा भाणियब्वं। द्रव्यानुयोग-(१) प्र. भन्ते ! खर पृथ्वी की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष की। २४. अप्कायिक जीवों की स्थितिप्र. भन्ते ! अप्कायिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट सात हजार वर्ष की। प्र. भन्ते ! अपर्याप्त अकायिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की। प्र. भन्ते ! पर्याप्त अप्कायिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम सात हजार वर्ष की। सूक्ष्म अकायिकों के औधिक, अपर्याप्तक और पर्याप्तकों की स्थिति सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों की स्थिति जैसी कही गई है वैसी ही कहनी चाहिए। प्र. भन्ते ! बादर अप्कायिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट सात हजार वर्ष की। प्र. भन्ते ! अपर्याप्त बादर अप्कायिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की। प्र. भन्ते ! पर्याप्त बादर अप्कायिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम सात हजार वर्ष की। प. बायरआउकाइयाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण सत्त वाससहस्साई। प. अपज्जत्तय-बायरआउकाइयाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण वि, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। प. पज्जत्तय-बायरआउकाइयाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण अंतोमुहत्तं, उक्कोसेण सत्त वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तूणाई। -पण्ण. प.४,सु.३५७-३५९ २५. तेउकाइयाणं ठिई प. तेउकाइयाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कोसैण तिण्णि राइंदियाइं६। प. अपज्जत्तयाणं तेउकाइयाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण वि, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं । २५. तेजस्कायिक जीवों की स्थितिप्र. भन्ते ! तेजस्कायिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट तीन रात्रि-दिन की। प्र. भन्ते ! अपर्याप्त तेजस्कायिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की। १. (क) अणु.कालदारे सु.३८५/२ (ख) उत्त.अ.३६,गा.८८ (ग) जीवा.पडि.५,सु.२११ (ग) जीवा.पडि.८,सु.२२८ २. जीवा.पडि.५,सु.२११ ३. अणु.कालदारे सु.३८५/२ ४. ठाणं.अ.७,सु.५७३/१ जीवा. पडि.सु.१७ ५. अणु.कालदारे सु. ३८५/२ ६. (क) अणु. कालदारे सु.३८५/३ (ख) उत्त.अ.३६,गा.११३ (ग) जीवा.पडि.१,सु.२४ (घ) जीवा.पडि.५,सु.२११ (ङ) जीवा.पडि.८,सु.२२८ (च) विया.स.१,उ.१.सु.६/१३/१
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy