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________________ ( २९६ प. पढमसमय-तिरिक्खजोणियाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण वि, उक्कोसेण वि एगं समय। प. अपढमसमय-तिरिक्खजोणियाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !अपढमसमय-तिरिक्खजोणियाण जहण्णेण खुड्डागं भवग्गहणं समयूणं, उक्कोसेण तिण्णि पलिओवमाई समयूणाई। -जीवा. पडि.७, सु. २२६ २२. एगिदिय जीवाणं ठिई प. एगिदियस्सणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण अंतोमुहत्तं, उक्कोसेण बावीसं वाससहस्साई। प. एगिंदियअपज्जत्तगस्स णं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण वि, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। द्रव्यानुयोग-(१) प्र. भन्ते ! प्रथम समय तिर्यग्योनिकों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट एक समय की है। प्र. भन्ते ! अप्रथम समय तिर्यग्योनिकों की स्थिति कितने काल की कही गई है। उ. गौतम ! अप्रथम समय तिर्यग्योनिकों की जघन्य स्थिति एक समय न्यून क्षुल्लक भवग्रहण की है। उत्कृष्ट एक समय कम तीन पल्योपम की है। २२. एकेन्द्रिय जीवों की स्थिति प्र. भन्ते! एकेन्द्रिय जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की। ____उत्कृष्ट बावीस हजार वर्ष की है। प्र. भन्ते ! एकेन्द्रिय अपर्याप्तक की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। प्र. भन्ते ! एकेन्द्रिय पर्याप्तक की स्थिति कितने काल की कही उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम बावीस हजार वर्ष की है। प. एगिदियपज्जत्तगस्स णं भंते ! केवइयं कालं ठिई __पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण बावीसं वाससहस्साई अंतोमुत्तूणाई। -जीवा. पडि.४,सु. २०७ प. पढमसमयएगिंदियस्स णं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! एगं समय। प्र. भन्ते ! प्रथमसमय एकेन्द्रिय की स्थिति कितने काल की कही प. अपढमसमयएगिंदियस्स णं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण खुड्डागं भवग्गहणं समयूणं, उक्कोसेण बावीसं वाससहस्साई समयूणाई। -जीवा. पडि.९, सु. २२९ २३. पुढविकाइयाणं ठिई प. पुढविकाइयाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गौतम ! (जघन्य और उत्कृष्ट) एक समय की स्थिति कही गई है। प्र. भन्ते ! अप्रथमसमय एकेन्द्रिय की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य एक समय न्यून क्षुल्लक भवग्रहण की है। उत्कृष्ट एक समय कम बावीस हजार वर्ष की है। उ. गोयमा !जहण्णेण अंतोमुहत्तं, उक्कोसेण बावीसं वाससहस्साई। प. अपज्जत्तय-पुढविकाइयाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण वि, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। प. पज्जत्तय-पुढविकाइयाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण अंतोमुहत्तं, २३. पृथ्वीकायिक जीवों की स्थितिप्र. भन्ते ! पृथ्वीकायिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष की। प्र. भन्ते ! अपर्याप्त पृथ्वीकायिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की। प्र. भन्ते ! पर्याप्त पृथ्वीकायिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की, १. जीवा. पडि.५, सु.२११
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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