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________________ । २८६ । द्रव्यानुयोग-(१) २४ सागोपम तथा उत्कृष्ट २५ सागरोपम होती है। इसी प्रकार चौथे प्रैवेयक देवों की जघन्य २५ एवं उत्कृष्ट २६, पाँचवें ग्रैवेयक देवों की जघन्य २६ एवं उत्कृष्ट २७, छठे ग्रैवेयक देवों की जघन्य २७ एवं उत्कृष्ट २८, सातवें ग्रैवेयक देवों की जघन्य २८ एवं उत्कृष्ट २९, आठवें ग्रैवेयक देवों की जघन्य २९ एवं उत्कृष्ट ३० तथा नौवें प्रैवेयक देवों की जघन्य ३० एवं उत्कृष्ट ३१ सागरोपम स्थिति होती है। पाँच अनुत्तर विमान के देवों में प्रथम चार विमानों के देवों की स्थिति जघन्य ३१ सागरोपम व उत्कृष्ट ३३ सागरोपम होती है। सर्वार्थसिद्ध विमान के देवों की स्थिति ३३ सागरोपम होती है। यह जघन्य एवं उत्कृष्ट से रहित है। सनत्कुमार से लेकर अच्युत कल्प के देवेन्द्रों एवं उनकी त्रिविधा परिषद् के देवों की स्थिति का काल इस अध्ययन में अवश्य निरूपित हुआ है। अध्ययन के अन्त में कुछ विशिष्ट विमानवासी देवों की स्थिति बतलायी गई है। ___तिर्यग्योनिक जीवों में एकेन्द्रियों की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त एवं उत्कृष्ट स्थिति २२ हजार वर्ष है। एकेन्द्रयों में पृथ्वीकाय, अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय एवं वनस्पतिकाय के जीवों की स्थिति पर औधिक तथा सूक्ष्म एवं बादर भेदों के आधार पर विचार किया गया है। पर्याप्त एवं अपर्याप्त द्वारों को सबकी भांति यहाँ भी लिया गया है। पृथ्वीकायिक जीवों की स्थिति का उल्लेख करते समय कोमल पृथ्वी, शुद्ध पृथ्वी, बालुका पृथ्वी, मनोसिल पृथ्वी, शर्करा पृथ्वी एवं खरपृथ्वी की जघन्य एवं उत्कृष्ट स्थिति का भी वर्णन किया गया है। पृथ्वीकाय आदि के सूक्ष्म जीवों की स्थिति अपर्याप्तक पर्याप्तक तथा औधिक तीनों अवस्थाओं में जघन्य व उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है। इसका तात्पर्य है कि एकेन्द्रिय सूक्ष्मजीव अन्तर्मुहूर्त से अधिक काल तक जीवन धारण नहीं करते हैं। वनस्पतिकाय के वर्णन में निगोद के जीव सूक्ष्म होते हैं स्थिति भी जघन्य एवं उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त होती है। त्रसकायिक जीवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त एवं उत्कृष्ट ३३ सागरोपम होती है क्योंकि त्रसकायिक जीवों में नैरयिकों एवं देवों की भी गणना होती है। इसी प्रकार पंचेंद्रिय जीवों की स्थिति समझनी चाहिए। द्वीन्द्रिय जीवों की स्थिति जघन्यअन्तर्मुहर्त एवं उत्कृष्ट बारह वर्ष होती है। त्रीन्द्रिय जीवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त एवं उत्कृष्ट ४९ दिन रात होती है। चतुरिन्द्रिय जीवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त एवं उत्कृष्ट छह मास होती है। पंचेंद्रिय तिर्यग्योनिक जीवों की स्थिति जघन्य अन्तमुहूर्त एवं उत्कृष्ट तीन पल्योपम है और यही उनमें गर्भज जीवों की स्थिति है, किन्तु सम्मूच्छिम पंचेंद्रिय तिर्यग्जीवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त एवं उत्कृष्ट पूर्व कोटि होती है। तिर्यग्योनिक स्त्रियों की स्थिति औधिक की भांति जघन्य अन्तर्मुहूर्त एवं उत्कृष्ट तीन पल्योपम है। तिर्यञ्च पंचेंद्रिय जीव जलचर, चतुष्पद स्थलचर, उरपरिसर्प, भुजपरिसर्प एवं खेचर के भेद से पाँच प्रकार के हैं। ये प्रत्येक सामूच्छिम एवं गर्भज के भेद से दो प्रकार के हैं। प्रस्तुत स्थिति अध्ययन में जलचर आदि जीवों की स्थिति का औधिक, पर्याप्तक एवं अपर्याप्तक द्वारों से वर्णन करने के अनन्तर उनके सम्मूच्छिम एवं गर्भज भेदों का भी इन्हीं औधिक आदि द्वारों से वर्णन किया गया है। इनमें सबसे अधिक स्थिति चतुष्पद स्थलचर गर्भज जीवों एवं उनकी स्त्रियों की तीन पल्योपम है। सम्मूर्छिम मनुष्यों की स्थिति जघन्य एवं उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है जबकि मनुष्यों की औधिक स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त एवं उत्कृष्ट तीन पल्योपम है। यह उनकी गर्भज स्थिति है। मनुष्य स्त्रियों की स्थिति का वर्णन दो प्रकार से मिलता है-क्षेत्र की अपेक्षा एवं धर्माचरण की अपेक्षा। यहाँ क्षेत्र शब्द भरतादि क्षेत्रों का द्योतक है तथा धर्माचरण शब्द उनके संयमी जीवन का सूचक है। अकर्म-भूमिज एवं अन्तर्वीपज स्त्रियों की स्थिति का वर्णन जन्म एवं संहरण के भेदों में विभक्त है। औधिक, अपर्याप्त एवं पर्याप्त द्वारों से समस्त जीवों की स्थिति का वर्णन किए जाने के साथ कुछ जीवों की स्थिति का वर्णन प्रथम समय एवं अप्रथम समय के द्वारों से भी किया गया है। प्रथम समय में जीव की स्थिति एक समय होती है तथा अप्रथम समय में एक समय कम लघुभव ग्रहण होती है।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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