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________________ योनि अध्ययन : आमुख जीव के जन्म ग्रहण करने के स्थान को योनि कहते हैं। वह जन्म उपपात से, गर्भ से अथवा सम्मूर्छिम में किसी भी प्रकार से हो सकता है। योनि के भिन्न-भिन्न अपेक्षाओं से भेद किए जाते हैं। स्पर्श की अपेक्षा योनि के तीन प्रकार हैं-१.शीत योनि, २. उष्ण योनि और ३.शीतोष्ण योनि। चेतना की अपेक्षा योनि तीन प्रकार की है-१.सचित्त, २. अचित्त और ३. मिश्र। आवरण की अपेक्षा उसके तीन भेद हैं-१. संवृत्त (ढकी हुई)२. विवृत (खुली हुई)३. संवृत-विवृत (कुछ ढकी हुई तथा कुछ खुली हुई)। आकृति की अपेक्षा भी योनि तीन प्रकार की है-१. कछुए के पृष्ठ भाग जैसी २. शंख के आवर्त सदृश और ३. बांस के पत्तों जैसी। स्पर्श की अपेक्षा समस्त देवों एवं गर्भज जीवों (तिर्यञ्च व मनुष्यों) की मात्र शीतोष्ण योनि है। तेजस्कायिक जीवों की योनि मात्र उष्ण है। नैरयिक जीवों की योनि शीत और ऊष्ण है किन्तु शीतोष्ण नहीं है। शेष एकेन्द्रियों, विकलेन्द्रियों एवं सम्मूर्छिम पंचेन्द्रिय जीवों के तीनों प्रकार की योनियाँ होती हैं। चेतना की अपेक्षा नैरयिक एवं देवों की योनि अचित्त होती है, गर्भज जीवों की योनि मिश्र होती है तथा शेष जीवों की योनि तीनों प्रकार की होती है। आवरण की अपेक्षा एकेन्द्रिय, नैरयिक तथा देवों की योनि संवृत होती है, विकलेन्द्रियों की विवृत होती है तथा गर्भज पंचेन्द्रिय जीवों की योनि संवृत्त-विवृत होती है। आकृति की दृष्टि से जिन तीन योनियों का उल्लेख है, वे संभवतः मनुष्य की माताओं में ही उपलब्ध होती हैं। कूर्मोन्नता योनि अरिहन्त, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव जैसे उत्तमपुरुषों की माताओं के होती है। शंखावर्ता योनि स्त्रीरत्न की होती है तथा बांस के पत्ते जैसी योनि सामान्य जनों की माता के होती है। सिद्ध जीवजन्म नहीं लेते अतः अल्प-बहुत्व की चर्चा में उन्हें अयोनिक कहा गया है। योनि के आधार पर जीवों को आठ प्रकार का कहा गया है-अण्डज, पोतज आदि। शाली, व्रीहि आदि वनस्पतिकायिक जीवों की योनि विशेष परिस्थितियों में जघन्य अन्तर्मुहूर्त एवं उत्कृष्ट तीन वर्षों में म्लान हो जाती है, उसमें उत्पादक क्षमता समाप्त हो जाती है, बीज अबीज बन जाता है। इस प्रकार मटर, मसूर आदि की योनि का उत्कृष्ट काल विशेष परिस्थितियों में पाँच वर्ष तथा अलसी कुसुम्भ आदि का सात वर्ष होता है, उसके पश्चात् उन बीजों में योनित्व (उत्पादन क्षमता) समाप्त हो जाता है। जैनागम में चौरासी लाख प्रकार की जीव योनियों का उल्लेख है। उनके भेदों का संक्षिप्त विवरण प्रतिक्रमण सूत्र में उपलब्ध है। योनियों की जाति विशेष को कुलकोटि कहते हैं। कुलकोटियों का वर्णन प्रस्तुत अध्ययन में ध्यातव्य है। २७३
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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