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________________ ( २७२ - पा द्रव्यानुयोग-(१) २. सम्मुच्छिम-गमवक्कंतिय-पंचेंदिय-तिरिक्ख-जोणियाणं २. सम्मूर्छिम-गर्भज पंचेंद्रिय तिर्यञ्चयोनिकों और मनुष्यों के मणुस्साण य सण्णीआई परूवणं संज्ञी आदि का प्ररूपणप. सम्मुच्छिम पंचेंदियतिरिक्खजोणियजलयराणं भंते ! किं प्र. भंते ! सम्मूच्छिम पंचेंद्रिय तिर्यञ्चयोनिक जलचर क्या संज्ञी, सण्णि, असण्णी, णोसण्णी णोअसण्णी? असंज्ञी या नोसंज्ञी नोअसंज्ञी हैं? उ. गोयमा ! णो सण्णी,असण्णी। उ. गौतम ! वे संज्ञी नहीं हैं, असंज्ञी हैं। सम्मुच्छिमथलयराखहयरावि एवं चेव। इसी प्रकार सम्मूर्छिम स्थलचरों-खेचरों के लिए भी जानना -जीवा. पडि.१,सु.३५३६ चाहिए। प. गब्भवक्कंतिय पंचेंदियतिरिक्खजोणिया जलयराणं भंते ! प्र. भंते ! गर्भज पंचेंद्रिय तिर्यञ्चयोनिक जलचर क्या संज्ञी हैं, किं सण्णी,असण्णी,णोसण्णी,णोअसण्णी? असंज्ञी हैं या नोसंज्ञी नोअसंज्ञी हैं ? उ. गोयमा ! सण्णी,णो असण्णी। उ. गौतम ! वे संज्ञी हैं, असंज्ञी नहीं हैं। थलयराखहयरा वि एवं चेव। गर्भज स्थलचरों खेचरों के लिए भी इसी प्रकार जानना ___ -जीवा. पडि. १, सु.३८-३९ चाहिए। प. सम्मुच्छिम-मणुस्साणं भंते ! किं सण्णी, असण्णी, -प्र. भंते ! सम्मूर्छिम मनुष्य क्या संज्ञी हैं, असंज्ञी हैं या नोसंज्ञी णोसण्णी-णोअसण्णी? नोअसंज्ञी हैं। उ. गोयमा !णो सण्णी, असण्णी। उ. गौतम ! वे संज्ञी नहीं हैं, असंज्ञी हैं। प. गब्भवक्कंतिय-मणुस्साणं भंते ! किं सण्णी, असण्णी, णो प्र. भंते ! गर्भज मनुष्य या मंजी हैं, अमंत्री हैं या नोदंती . सण्णी-णो असण्णी? नोअसंज्ञी हैं? उ. गोयमा ! सण्णी वि, णो असण्णी, णोसण्णी णो असण्णी उ. गौतम ! असंज्ञी नहीं हैं, संज्ञी भी हैं और नोसंज्ञी _ वि। -जीवा. पडि. १, सु.४१ नोअसंज्ञी भी हैं। ३. सण्णिआईणं कायट्ठिई परूवणं ३. संज्ञी आदि की कायस्थिति का प्ररूपणप. सण्णी णं भंते ! सण्णीत्ति कालओ केवचिर होइ? प्र. भंते ! संज्ञी जीव संज्ञी रूप में कितने काल तक रहता है? उ. गोयमा !जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उक्कोसेणं सागरोवमसयपुहत्तं साइरेग। उत्कृष्ट कुछ अधिक सागरोपमशतपृथक्त्वकाल तक रहता है। प. असण्णी णं भंते ! असण्णीत्ति कालओ केवचिरं होइ? प्र. भंते ! असंज्ञी जीव असंज्ञी रूप में कितने काल तक रहता है ? उ. गोयमा !जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उ. गौतम ! वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उक्कोसेणं वणफइकालो। उत्कृष्ट वनस्पतिकाल तक रहता है। प. णोसण्णी-णोअसण्णी णं भंते ! णोसण्णी णोअसण्णी त्ति प्र. भंते ! नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी जीव नोसंज्ञी नोअसंज्ञी रूप में कितने कालओ केवचिरं होइ? काल तक रहता है? उ. गोयमा ! साईए अपज्जवसिए। उ. गौतम ! वह सादि-अपर्यवसित है। -पण्ण.प.१८,सु.१३८९-१३९१ ४. सण्णीआईणं अंतरकाल परवणं ४. संज्ञी आदि के अन्तर काल का प्ररूपण१. सण्णिस्स जहण्णेणं अंतरं अंतोमुहत्तं, १. संज्ञी का अन्तर काल जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त, उक्कोसेणं वणस्सइकालो, उत्कृष्टतः वनस्पतिकाल है। २. असण्णिस्स जहणेणं अंतरं अंतोमुहुत्तं, २. असंज्ञी का अन्तरकाल जघन्यतःअन्तर्गहर्त. उक्कोसेणं सागरोवमसयपुहत्तं साइरेगं, उत्कृष्टतः साधिक सागरोपम शतपृथक्त्व है। ३. नोसण्णी नोअसण्णिस्स नत्थि अंतरं। ३. नोसंज्ञी नोअसंज्ञी का कोई अन्तरकाल नहीं है। -जीवा. पडि.९, सु. २४१ ५. सण्णी आईणं अप्प बहुत्तं ५. संज्ञी आदि का अल्प बहुत्वप. एएसिं णं भंते ! जीवाणं, सण्णीणं, असण्णीणं, नोसण्णी प्र. भंते ! संज्ञी, असंज्ञी और नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी जीवों में से कौन नोअसण्णीणं य कयरे कयरेहितो अप्पा वा जाव किनसे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं ? विसेसाहिया वा? उ. गोयमा!१.सव्वत्थोवा जीवा सण्णी, उ. गौतम ! १. सबसे अल्प संज्ञी जीव हैं, २.नो सण्णी-नोअसण्णी अणंतगुणा। २.नासण्णा नाज २. उनसे नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी जीव अनन्तगुणे हैं, ३.असण्णी अणंतगुणा। -पण्ण. प.३, सु. २६८ ३. उनसे असंज्ञीजीव अनन्तगुणे हैं। . १. जीवा.पडि.९,सु.२४१ २. जीवा.पडि.९, सु.२४१
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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