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________________ २५७ जीव अध्ययन २. णो भवसिद्धिय णोअभवसिद्धिया अणंतगुणा, २. (उनसे) नो भवसिद्धिक नो अभवसिद्धिक जीव अनन्तगुणे हैं, ३. (उनसे) भवसिद्धिक जीव अनन्तगुणे हैं। १४९. त्रसादि जीवों का अल्पबहुत्व प्र. भंते ! इन त्रस, स्थावर और नो त्रस नो स्थावरों में से कौन किनसे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं? उ. गौतम ! १. सबसे अल्प त्रस हैं, २. (उनसे) नो त्रस नो स्थावर (सिद्ध) अनन्तगुणे हैं, ३. (उनसे) स्थावर अनन्तगुणे हैं। १५०. पर्याप्तकादि जीवों का अल्पबहुत्वप्र. भंते ! इन पर्याप्तक, अपर्याप्तक और नोपर्याप्तक नो अपर्याप्तक जीवों में से कौन किनसे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं? उ. गौतम ! १. सबसे अल्प नो पर्याप्तक नो अपर्याप्तक जीव ३. भवसिद्धिया अणंतगुणा'। -पण्ण.प.३.सु.२६९ १४९ तसाई जीवाणं अप्पबहुत्तं प. एएसि णं भंते ! तसाणं, थावराणं, नो तस-नो थावराण यकयरे कयरेहिंतो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा? उ. गोयमा !१. सव्वत्थोवा तसा, २. नो तसा-नो थावरा अणंतगुणा, ३. थावरा अणंतगुणा। -जीवा. पडि. ९, सु.२४३ १५०. पज्जत्ताइ जीवाणं अप्पबहुत्तंप. एएसि णं भंते ! जीवाणं पज्जत्तगाणं, अपज्जत्तगाणं, नो पज्जत्त नो अपज्जत्तगाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा? उ. गोयमा ! १. सव्वत्थोवा जीवा नो पज्जत्तग नो अपज्जत्तगा, २. अपज्जत्तगा अणंतगुणा, ३. पज्जत्तगा संखेज्जगुणारे। -पण्ण.प.३, सु. २६६ १५१. नवविह विवक्खया एगिदियाइ जीवाणं अप्पबहुत्तंप. एएसि णं भंते ! एगिंदियाणं, बेइंदियाणं, तेइंदियाणं, चउरिदियाणं, णेरइयाणं, पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं, मणुस्साणं, देवाणं, सिद्धाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा? उ. गोयमा !१.सब्वत्थोवा मणुस्सा, २.णेरइया असंखेज्जगुणा, ३. देवा असंखेज्जगुणा, ४. पंचेंदियतिरिक्खजोणिया असंखेज्जगुणा, ५. चउरिंदिया विसेसाहिया, ६. तेइंदिया विसेसाहिया, ७. बेइंदिया विसेसाहिया, 8. सिद्धा अणंतगुणा, ९. एगिदिया अणंतगुणा। -जीवा. पडि.९, सु.२५६ १५२. पढमापढमसमयविवक्खया एगिंदियाइ अप्पबहत्तं २. (उनसे) अपर्याप्तक जीव अनन्तगुणे हैं, ३. (उनसे) पर्याप्तक जीव संख्यातगुणे हैं। १५१. नवविध विवक्षा से एकेन्द्रियादि जीवों का अल्पबहुत्व प्र. भंते ! इन एकेन्द्रियों, द्वीन्द्रियों, त्रीन्द्रियों, चतुरिन्द्रियों, नैरयिकों, पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों, मनुष्यों, देवों और सिद्धों में कौन किनसे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं ? उ. गौतम ! १. सबसे अल्प मनुष्य हैं, २. (उनसे) नैरयिक असंख्यातगुणे हैं, ३. (उनसे) देव असंख्यातगुणे हैं, ४. (उनसे) पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक असंख्यातगुणे हैं, . ५. (उनसे) चतुरिन्द्रिय विशेषाधिक हैं, ६. (उनसे) त्रीन्द्रिय विशेषाधिक हैं, ७. (उनसे) द्वीन्द्रिय विशेषाधिक हैं, ८. (उनसे) सिद्ध अनन्तगुणे हैं, ९. (उनसे) एकेन्द्रिय अनन्तगुणे हैं। १५२. प्रथमाप्रथमसमय की विवक्षा से एकेन्द्रियादिकों का अल्पबहुत्वप्र. भंते ! इन प्रथम समय एकेन्द्रियों यावत् प्रथम समय __ पंचेन्द्रियों में कौन किनसे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं ? प. एएसिणं भंते ! पढमसमय एगिदियाणं जाव पढमसमय पंचिंदियाण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा? उ. गोयमा!१.सव्वेसिं सव्वत्थोवा पढमसमयपंचेंदिया, २. पढमसमयचरिंदिया विसेसाहिया, ३. पढमसमयतेइंदिया विसेसाहिया, ४. पढमसमयबेइंदिया विसेसाहिया, ५. पढमसमयएगिंदिया विसेसाहिया। उ. गौतम !१. सबसे अल्प प्रथमसमय पंचेन्द्रिय हैं, २. (उनसे) प्रथमसमयचतुरिन्द्रिय विशेषाधिक है, ३. (उनसे) प्रथमसमयत्रीन्द्रिय विशेषाधिक हैं, ४. (उनसे) प्रथमसमयद्वीन्द्रिय विशेषाधिक है, ५. (उनसे) प्रथमसमयएकेन्द्रिय विशेषाधिक है, २. जीवा. पडि.९, सु. २३९ १. जीवा. पडि.९, सु. २४२
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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