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________________ द्रव्यानुयोग-(१) ९. (उनसे) अनिन्द्रिय अनन्तगुणे हैं, १०.(उनसे) वनस्पतिकायिक अनन्तगुणे हैं। ( २३६ ९.अणिंदिया अणंतगुणा, १०. वणस्सइकाइया अणंतगुणा। " -जीवा. पडि. ९, सु. २५८ १४०. जोगं पडुच्च चोद्दसविहं संसारी जीवाणं अप्पबहुत्तं प. एएसि णं भंते ! चोद्दसविहाणं संसारसमावन्नगाणं ___ जीवाणं जहन्नुक्कोसगस्स जोगस्स कयरे कयरेहितो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा? उ. गोयमा!१.सव्वत्थोवे सुहमस्स अपज्जत्तगस्स जहन्नए जोए, २. बायरस्स अपज्जत्तगस्स जहन्नए जोए असंखेज्जगुणे, ३. बेइंदियस्स अपज्जत्तगस्स जहन्नए जोए असंखेज्जगुणे, ४. तेइंदियस्स अपज्जत्तगस्स जहन्नए जोए असंखेज्जगुणे, ५. चउरिदियस्स अपज्जत्तगस्स जहन्नए जोए असंखेज्जगुणे, ६.असन्निस्स पंचेंदियस्स अपज्जत्तगस्स जहन्नए जोए असंखेज्जगुणे, ७. सन्निस्स पंचेंदियस्स अपज्जत्तगस्स जहन्नए जोए असंखेज्जगुणे, ८.सुहुमस्स पज्जत्तगस्स जहन्नए जोए असंखेज्जगुणे, ९.बायरस्स पज्जत्तगस्स जहन्नए जोए असंखेज्जगुणे, १४०. योगापेक्षा चौदह प्रकार के संसारी जीवों का अल्पबहुत्व प्र. भंते ! इन चौदह प्रकार के संसारसमापन्नक जीवों का योग जघन्य और उत्कृष्ट की अपेक्षा कौन किनसे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं? उ. गौतम ! १. अपर्याप्तक सूक्ष्म एकेन्द्रिय का जघन्य योग सबसे अल्प है, २. (उनसे) बादर अपर्याप्तक एकेन्द्रिय का जघन्य योग असंख्यातगुणा है, ३. (उनसे) अपर्याप्तक द्वीन्द्रिय का जघन्य योग असंख्यातगुणा है, . ४. (उनसे) अपर्याप्तक त्रीन्द्रिय का जघन्य योग असंख्यातगुणा है, ५. (उनसे) अपर्याप्तक चतुरिन्द्रिय का जघन्य योग असंख्यातगुणा है, ६. (उनसे) अपर्याप्तक असंज्ञी पंचेंद्रिय का जघन्य योग असंख्यातगुणा है, ७. (उनसे) अपर्याप्तक संज्ञी पंचेंद्रिय का जघन्य योग असंख्यातगुणा है, ८. (उनसे) पर्याप्तक सूक्ष्म एकेन्द्रिय का जघन्य असंख्यातगुणा है, ९. (उनसे) पर्याप्तक बादर एकेन्द्रिय का जघन्य योग असंख्यातगुणा है, १०.(उनसे) अपर्याप्तक सूक्ष्म एकेन्द्रिय का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है। ११. (उनसे) अपर्याप्तक बादर एकेन्द्रिय का उत्कृष्ट असंख्यातगुणा है, १२. (उनसे) पर्याप्तक सूक्ष्म एकेन्द्रिय का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है, १३. (उनसे) बादर पर्याप्तक एकेन्द्रिय का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है, १४. (उनसे) पर्याप्तक द्वीन्द्रिय का जघन्य योग असंख्यातगुणा है, १५-१८. (उनसे) पर्याप्तक त्रीन्द्रिय इसी प्रकार यावत (पर्याप्तक चतुरिन्द्रिय पर्याप्तक असंज्ञी पंचेंद्रिय) पर्याप्तक संज्ञी पंचेन्द्रिय का जघन्य योग उत्तरोत्तर असंख्यातगुणा है, १९. (उनसे) अपर्याप्तक द्वीन्द्रिय का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है, २०-२३. (उनसे) अपर्याप्तक त्रीन्द्रिय इसी प्रकार यावत् (अपर्याप्तक चतुरिन्द्रिय, अपर्याप्तक असंज्ञी पंचेंद्रिय) और अपर्याप्तक संज्ञी पंचेंद्रिय का उत्कृष्ट योग उत्तरोत्तर असंख्यातगुणा है, १०. सुहुमस्स अपज्जत्तगस्स उक्कोसेए जोए असंखेज्जगुणे। ११. बायरस्स अपज्जत्तगस्स उक्कोसए जोए असंखेज्जगुणे, १२. सुहुमस्स पज्जत्तगस्स उक्कोसए जोए असंखेज्जगुणे, १३. बायरस्स पज्जत्तगस्स उक्कोसए जोए असंखेज्जगुणे, १४. बेइंदियस्स पज्जत्तगस्स जहन्नए जोए असंखेज्जगुणे, १५-१८. तेइंदियस्स एवं जाव सन्निस्स पंचेंदियस्स पज्जत्तगस्स जहन्नए जोए असंखेज्जगुणे। १९. बेइंदियस्स अपज्जत्तगस्स उक्कोसए जोए असंखेज्जगुणे, २०-२३. एवं तेइंदियस्स वि एवं जाव सण्णिपंचेंदियस्स अपज्जत्तगस्स उक्कोसए जोए असंखेज्जगुणे, १. जीवा. पडि.८, सु. २२८
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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