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________________ जीव अध्ययन ७४. अभवसिद्धिया अणंतगुणा, ७५. परिवडियसम्मत्ता अणंतगुणा, ७६. सिद्धा अणंतगुणा, ७७. बायरवणस्सइकाइया पज्जत्तगा अणंतगुणा, ७८. बायरपज्जत्तया विसेसाहिया, ७९. बायरवणस्सइकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, ८०. बायर अपज्जत्तगा विसेसाहिया, ८१. बायरा विसेसाहिया, ८२. सुहुमवणस्सइकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, ८३. सुहुमा अपज्जत्तगा विसेसाहिया, ८४. सुहुमवणस्सइकाइया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा, ८५. सुहुमपज्जत्तगा विसेसाहिया, ८६. सुहमा विसेसाहिया, ८७. भवसिद्धिया विसेसाहिया, ८८. निगोदजीवा विसेसाहिया, ८९. वणप्फइजीवा विसेसाहिया, ९०. एगिंदिया विसेसाहिया, ९१. तिरिक्खजोणिया विसेसाहिया, ९२. मिच्छदिट्ठी विसेसाहिया, ' ९३. अविरया विसेसाहिया, ९४. सकसाई विसेसाहिया, ९५. छउमत्था विसेसाहिया, ९६. सजोगी विसेसाहिया, ९७. संसारत्था विसेसाहिया, ९८. सव्वजीवा विसेसाहिया, -पण्ण. प.३ सु.३३४ १३९. दसविह विवक्खया संसारी जीवाणं अप्पबहुत्तंप. एएसि णं भंते ! पुढविकाइयाणं, आउकाइयाणं, तेउकाइयाणं, वाउकाइयाणं, वणस्सइकाइयाणं, बेइंदियाणं, तेइंदियाणं, चउरिंदियाणं, पंचेंदियाणं, अणिंदियाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा? उ. गोयमा !१.सव्वत्थोवा पंचेंदिया, २.चउरिंदिया विसेसाहिया, ३.तेइंदिया विसेसाहिया, ४.बेइंदिया विसेसाहिया, ५.तेउकाइया असंखेज्जगुणा, ६.पुढविकाइया विसेसाहिया, ७.आउकाइया विसेसाहिया, ८.वाउकाइया विसेसाहिया, - २३५ ) ७४. (उनसे) अभवसिद्धिक अनन्तगुणे हैं, ७५. (उनसे) सम्यक्त्व से भ्रष्ट अनन्तगुणे हैं, ७६. (उनसे) सिद्ध अनन्तगुणे हैं, ७७. (उनसे) बादर वनस्पतिकायिक पर्याप्तक अनन्तगुणे हैं, ७८. (उनसे) बादर पर्याप्तक विशेषाधिक हैं, ७९. (उनसे) बादर वनस्पतिकायिक अपर्याप्तक असंख्यातगुणे हैं, ८०. (उनसे) बादर अपर्याप्तक विशेषाधिक हैं, ८१. (उनसे) बादर विशेषाधिक हैं, ८२. (उनसे) सूक्ष्म वनस्पतिकायिक अपर्याप्तक असंख्यातगुणे हैं, . . ८३. (उनसे) सूक्ष्म अपर्याप्तक विशेषाधिक हैं, ८४. (उनसे) सूक्ष्म वनस्पतिकायिक पर्याप्तक संख्यातगुणे हैं, ८५. (उनसे) सूक्ष्म पर्याप्तक विशेषाधिक हैं, ८६. (उनसे) सूक्ष्म विशेषाधिक हैं, ८७. (उनसे) भवसिद्धिक विशेषाधिक हैं, ८८. (उनसे) निगोद के जीव विशेषाधिक हैं, ८९. (उनसे) वनस्पतिजीव विशेषाधिक हैं, ९०. (उनसे) एकेन्द्रिय जीव विशेषाधिक हैं, ९१. (उनसे) तिर्यञ्चयोनिक विशेषाधिक हैं, ९२. (उनसे) मिथ्यादृष्टि जीव विशेषाधिक हैं, ९३. (उनसे) अविरत जीव विशेषाधिक हैं, ९४. (उनसे) सकषायी जीव विशेषाधिक हैं, ९५. (उनसे) छद्मस्थ जीव विशेषाधिक हैं, ९६. (उनसे) सयोगी जीव विशेषाधिक हैं, ९७. (उनसे) संसारस्थ जीव विशेषाधिक हैं, ९८. (उनसे) सर्वजीव विशेषाधिक हैं। १३९. दसविध विवक्षा से संसारी जीवों का अल्पबहुत्वप्र. भंते ! इन पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेंद्रिय और अनिन्द्रियों में कौन किनसे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं? उ. गौतम ! १. सबसे अल्प पंचेंद्रिय हैं, २. (उनसे) चतुरिन्द्रिय विशेषाधिक हैं, ३.(उनसे) त्रीन्द्रिय विशेषाधिक हैं, ४.(उनसे) द्वीन्द्रिय विशेषाधिक हैं, ५. (उनसे) तेजस्कायिक असंख्यातगुणे हैं, ६.(उनसे) पृथ्वीकायिक विशेषाधिक हैं, ७.(उनसे) अप्कायिक विशेषाधिक हैं, ८.(उनसे) वायुकायिक विशेषाधिक हैं,
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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